प्रदर्शन में फंसे पीड़ित ने कहा, ‘मैं अपने पिता को मरते हुए देख रहा था’

दलित संगठनों की ओर से सोमवार को बुलाए गए भारत बंद के दौरान जगह-जगह प्रदर्शन और हिंसा की खबरें आती रहीं। इन सबके बीच एक दिल झकझोर कर रख देने वाली तस्वीर सामने आई है। यह तस्वीर 68 वर्षीय बीमार बुजुर्ग की है, जिसे उनका बेटा कंधे पर लादकर अस्पताल भागा हुआ जा रहा है। लेकिन बीच सड़क पर प्रदर्शनकारियों के हंगामे की वजह से उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल सका।

बिजनौर के बारुकी गांव निवासी 68 वर्षीय लोक्का सिंह बेहताशा पेट दर्द से पीड़ित थे और सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। अपने पिता को दर्द से कराहते देख बेटे रघुवर सिंह ने अपने बीमार पिता को ऐंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाना चाहा, लेकिन बीच सड़क में प्रदर्शनकारियों के जाम में फंस गए। इसके बाद पिता को कंधे पर लादकर जब रघुवर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों ने पिता को मृत घोषित कर दिया।

32 वर्षीय रघुवर सिंह को जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने अपने बीमार पिता लोक्का सिंह को प्राइवेट अस्पताल या मेरठ के किसी बड़े अस्पताल ले जाने को कहा था, लेकिन समय और पैसों की कमी के चलते रघुवर ने पहला विकल्प चुना। रघुवर ने बताया, ‘ वह क्रोनिक अस्थमा से पीड़ित थे। रविवार रात जब उनकी स्थिति खराब हो गई तो उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। डॉक्टरों ने उनकी जांच कर इलाज करना शुरू किया, लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था।’

‘मेरठ ले जाने के लिए पैसा और समय नहीं था’
रघुवर आगे बताते हैं, ‘सोमवार को सुबह करीब पौने बारह बजे डॉक्टरों ने हमें मेरठ मेडिकल कॉलेज या किसी प्राइवेट अस्पताल ले जाने को कहा गया। मेरे पास उनको मेरठ ले जाने के लिए समय और पैसा नहीं था इसलिए हम उन्हें एंबुलेंस से प्राइवेट अस्पताल लेकर गए।’

‘मैं अपने पिता को मरते हुए देख सकता था’
वह शास्त्री चौक की ओर रवाना हुए जो जिला अस्पताल से एक किमी दूर है, लेकिन जुडगी क्रॉसिंग में उनकी ऐम्बुलेंस फंस गई। वहां सौ से ज्यादा प्रदर्शनकारी नारेबाजी कर रहे थे। चारों ओर शोर शराबा था। रघुवर ने कहा, ‘मैंने उनसे विनती की कि मुझे जाने दें। मैंने एक हद तक जोर लगाकर उनसे पुकार लगाई, लेकिन किसी ने मेरी चीख नहीं सुनी। कोई वहां से नहीं हिला। मैं ऐंबुलेंस के अंदर अपने पिता को मरते हुए देख सकता था। मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मैं किसी भी हालत में उन्हें बचाना चाहता था, इसलिए मैंने उन्हें कंधे में उठाया और दौड़ना शुरू किया।’

‘प्रदर्शन ने हमारे पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया’
रघुवर ने ऐंबुलेंस से आधा किमी का रास्ता कर लिया था और अब उन्हें अस्पताल पहुंचने के लिए 600 मीटर का रास्ता और तय करना था। उन्होंने एक घंटे तक पिता को कंधे में उठाए दौड़ते हुए यह दूरी तय की। मृतक की पत्नी विमला देवी ने कहा, ‘अगर प्रदर्शनकारी ऐंबुलेंस को जाने देते तो आज मेरे पति जिंदा होते। इस प्रदर्शन ने हमारे पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया।’

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जब तक प्रदर्शन खत्म नहीं हुआ, लोक्का का शव सड़क किनारे रखा हुआ था। उनके परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई और शाम 4 बजे तक इंतजार करते रहे। बिजनौर जिला अस्पताल के सीएमओ राकेश दुबे ने बताया, ‘हमने उनका इलाज करने की कोशिश की थी लेकिन उनकी एब्डॉमिनल सर्जरी होनी थी। हमारे पास यहां कोई सर्जन नहीं था, इसलिए हमने उन्हें दूसरे अस्पताल में भर्ती होने को कहा।’

पुलिस कर रही शांतिपूर्ण प्रदर्शन का दावा
उधर बिजनौर पुलिस स्टेशन इनचार्ज फताह सिंह ने दावा किया कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा था और प्रदर्शनकारी ऐंबुलेंस गाड़ियों को जाने दे रहे थे। फतेह सिंह ने कहा, ‘मुझे अभी इस मामले की जानकारी नहीं है न ही इस पर शिकायत दर्ज हुई है। आगे मामले की जांच के बाद ही इस पर कुछ कह पाऊंगा।’ लोक्का की पत्नी और तीन बेटे हैं। परिवार की आर्थिक हालत खराब है।

जाम में फंसी ऐम्बुलेंस, प्रदर्शनकारियों ने नहीं दिया रास्ता, बच्चे की मौत
इसी तरह की एक घटना बिहार से है जहां हाजीपुर में दलित प्रदर्शन के दौरान सड़क पर लगाए गए जाम में एक ऐम्बुलेंस फंस गई। ऐम्बुलेंस में बैठी मां रास्ता खाली करने के लिए जोर-जोर से गुहार लगाती रही लेकिन लोग नहीं हटे। बच्चे की सड़क पर ही मौत हो गई।

(Source: NBT)

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