जब चिता की लपटों के बीच प्रसूता के पेट में हुआ ब्लास्ट, जमीन पर आ गिरा नवजात

– मामला 28 दिसंबर का है। डॉक्टर्स की लापरवाही की वजह से एक प्रसूता की जान चली गई।
– डॉक्टर ने 22 वर्षीय गर्भवती महिला की डिलिवरी के लिए 17 जनवरी की तारीख दी थी। हाथ-पैर में सूजन देखकर परिजनों ने उसे 24 दिसंबर को हॉस्पिटल में एडमिट कराया। डॉक्टर ने बताया- महिला के शरीर में सिर्फ 5 ग्राम हीमोग्लोबिन है।
– 3 यूनिट ब्लड की जरूरत थी। परिजनों को लैब प्रभारी ने 25 दिसंबर को महिला का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव बताया।
– ब्लड की व्यवस्था कर 24 घंटे बाद (26 दिसंबर) को पहुंचे तो लैब के कर्मचारी ने कहा- ए निगेटिव ग्रुप का ब्लड लाओ।
– परिजन एक बार फिर दलाल के माध्यम से 16 सौ रुपए में ए निगेटिव ब्लड खरीदकर 27 दिसंबर को दिया।
– डॉक्टरों ने अब तो हद कर दी, उन्होंने 2 यूनिट ब्लड की डिमांड और कर दी। 28 दिसंबर की रात परिवार ने दलाल को 4,500 रुपए देकर ब्लड का अरेंज किया।
– 29 दिसंबर को सुबह जब वो ब्लड लेकर गए, तब तक महिला की मौत हो चुकी थी।

अपने कलेजे के टुकड़े को सीने से भी न लगा सका

– महिला के पति राजकुमार ने कहा- सोचा था पत्नी यहां ठीक हो जाएगी और बच्चे के साथ घर लौटूंगा। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पत्नी का शव लेकर लौटना पड़ा।
– डॉक्टरों ने उसके पेट में पल रहे बच्चे के बारे में भी हमें कुछ नहीं बताया।
– पत्नी का अंतिम संस्कार किया तो चिता पर ही उसके पेट से बच्चा बाहर आ गया। हम रोने के सिवाय कुछ नहीं कर पाए। अपने कलेजे के टुकड़े को सीने से भी नहीं लगा सका।
– डॉक्टर और स्टाफ ने मिलक दोनों की जान ले ली। अगर समय पर सही ब्लड ग्रुप की जानकारी दी होती तो पत्नी-बच्चा दोनों सुरक्षित होते।
– कमला के साथ मेरी शादी 2015 में हुई थी। यह हमारा पहला बच्चा होता इसलिए घर में खुशी का माहौल था।
– मेरा संसार तो उजड़ गया पर अस्पताल में इलाज के नाम पर लापरवाही करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि किसी और के घर की खुशियां न छीने।

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