जानें तकनीक: वैज्ञानिकों ने किया बड़ा खुलासा मैसेंजर RNA से होगा इलाज

नई दिल्ली। संभावनाओं से भरपूर शरीर की कोशिकाओं के प्लाज्मा में पाए जाने वाले मैसेंजर आरएनए को शोधकर्ता बहुत सारी संभावनाओं से भरपूर मानते हैं। यह कोशिकाओं को ऐसा मॉलिक्यूलर ब्लूप्रिंट देता है। जिस पर चल कर कोशिकाएं किसी भी तरह का प्रोटीन बनाने में कामयाब हो सकती हैं। फिर यही प्रोटीन शरीर के भीतर होने वाली सभी गतिविधियों पर असर करते हैं। अब अणु के इस गुण का इस्तेमाल कर वैज्ञानिक नए जमाने की दवाएं और टीके बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दवाओं से फेफड़ों के कैंसर से लेकर प्रोस्टेट कैंसर और अन्य कई घातक बीमारियों का प्रभावी रूप से इलाज किया जा सकेगा।
शरीर की कोशिकाओं के प्लाज्मा में पाए जाने वाले मैसेंजर आरएनए को शोधकर्ता बहुत सारी संभावनाओं से भरा मानते हैं। यह कोशिकाओं को ऐसा मॉलिक्यूलर ब्लूप्रिंट देता है, जिस पर चल कर कोशिकाएं किसी भी तरह का प्रोटीन बना सकती हैं। फिर यही प्रोटीन शरीर के भीतर होने वाली सभी गतिविधियों पर असर डालते हैं।
अब इस अणु के इसी गुण का इस्तेमाल कर वैज्ञानिक नए जमाने की दवाएं और टीके बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दवाओं से फेफड़ों के कैंसर से लेकर प्रोस्टेट कैंसर और अन्य कई घातक बीमारियों का प्रभावी रूप से इलाज किया जा सकेगा।खुद कर सकेंगे।
इस जादुई अणु की संभावनाओं को समझ चुका वैज्ञानिक समुदाय इसे दवाओं के रूप में विकसित करवाने के लिए पूरे विश्व की ओर देख रहा है। जर्मनी के ट्यूबिंगन में वैज्ञानिक मैसेंजर आरएनए की खूबियों को समझने में लगे हैं और इसे एक ऐसा अणु बता रहे हैं जो शरीर को खुद अपना इलाज करने की क्षमता दे सकता है।
यहां काम करने वाली जीवविज्ञानी, मारियोला फोटिन म्लेचेक बताती हैं, मैसेंजर आरएनए कमाल का अणु है। आप कह सकते हैं कि इसे कुदरत ने बनाया ही इसलिए है कि यह इलाज में मदद दे सके और यह भी जरूरी नहीं कि ये प्रोटीन इंसान की ही कोशिकाओं से बनें। यह बैक्टीरिया और वायरस से भी बन सकते हैं।हीं डाली जाएंगी
अगर इस संदेशवाहक आरएनए के साथ बैक्टीरिया या वायरस के प्रोटीन को शरीर में भेजा जाए तो शरीर का प्रतिरोधी तंत्र ऐसे प्रोटीन की पहचान करना सीख जाता है और उसके लिए प्रतिक्रिया देता है। नए तरह के इलाज में किसी कृत्रिम चीज को शरीर में नहीं डाला जाएगा, बल्कि प्राकृतिक रूप से संदेशवाहक आरएनए में कुछ ऐसे अंश मिलाए जा रहे हैं, जिससे उसकी गुणवत्ता बढ़ाई जा सके। शोधकर्ता इन बायोमॉलिक्यूल्स की मदद से कैंसर के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता तक हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे कई तरह के संक्रमण वाली बीमारियों के खिलाफ टीके विकसित किए जा सकते हैं।

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