स्मार्टफोन आंखों और दिमाग से भी ज्यादा यहां कर रहा है ज्यादा नुकसान

आधुनिक दौर ने हमें इतना बदल दिया है कि अब हम अपने आसपास के लोगों को भूलने लगे हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण बना है स्मार्टफोन। जिस कारण हम अपनों से दूर होकर बीमारियों के समीप जा रहे हैं। बाजार में बढ़ते विकल्पों और कम कीमतों की वजह से इन दिनों लगभग हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन दिखाई देता है। स्मार्टफोन के फीचर और ऐप्स तकनीकी रूप से बहुत हाईटेक होते जा रहे हैं।

इस वजह से आपका स्मार्टफोन आपके लिए बहुत सी चीजों का इलाज बन चुका है। स्मार्टफोन का असर लोगों पर इस कदर दिख ने लगा की अब लोग इससे एक पल की दूरी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। बड़े तो बड़े अब इस लत का शिकार बच्चे भी होने लगे हैं। घर से बाहर ना जाकर स्मार्टफोन्स की स्क्रीन में कैद होना उन्हें ज्यादा पसंद आने लगा है। फोन की लत बच्चों में साफतौर से देखने को मिल रही है। इसे पाने के लिए वे माता-पिता के सामने कोई भी जिद करने लगते हैं जिसे कई बार उन्हें मानना पड़ता है।

कभी-कभी तो अपने किसी काम को निपटाने के चक्कर में बच्चे को बहलाने के लिए वे उसके हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं, धीरे-धीरे यही उसकी आदत बन जाती है। ज्यादातर कामकाजी माता-पिता में देखा जाता है कि वह अपने बच्चे के सारें काम जल्दी करवाने के चक्कर में उन्हें स्मार्टफोन्स का लालच देते है और यही शुरू होता है उनका बचपन खराब होना। क्या आपको पता है? स्मार्टफोन्स से निकलने वाली तरगें आपके बच्चे के दिमाग पर सबसे ज्यादा असर डालती है। जिसके कारण दिमाग में मौजूद तत्व सिनैप्स धीरे-धीरे कम होने लगता है। सिनैप्स बच्चे के शुरुआती साल में उसके पॉजिटिव कार्यशैली के अनुसार बढ़ते हैं।

कम उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन की लत उनको वक्त से पहला बूढ़ा बना रही है। विशेषज्ञों द्वारा 14 की उम्र में ही बच्चों की रीढ़ की हड्डी की समस्या बढ़ने लगी है। एक सर्वे के अनुसार, पांच में से तीन लोग अपने फोन पर 60 मिनट से ज्यादा का वक्त बिताते हैं। सर्वे में आगे कहा गया है कि स्मार्टफोन यूजर्स अपने दिन के दस घंटे फोन पर बिताता है जो इंसानों के बीच बिताए समय से भी ज्यादा है।

बच्चों की राइटिंग स्किल पर पड़ता गहरा असर–
एक रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि स्मार्टफोन की टच स्क्रीन बच्चों की हथेलियों की मासंपेशियों को कमजोर कर रही है। जिसके कारण बच्चा ठीक तरीके से पेंनिस या पेन भी नहीं पकड़ सकता है और इसका असर उसकी राइटिंग पर पढ़ता है। डाक्टर्स इस बारें कहते हैं कि स्मार्टफोन्स का ज्यादा उपयोग बच्चों की नाजुक हड्डियों को वक्त से पहले कमजोर करता ही है बल्कि फोन चलाते वक्त उनका कई घंटों तक झुक कर फोन देखना भी उनकी शारीरिक बनावट पर असर डालता है। न्यूयॉर्क के स्पाइन सर्जरी एंड रिहैबिलिटेशन हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में सामने आया है कि मेसेज पढऩे के लिए सिर आगे की ओर झुकाने से गर्दन पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इससे पीठ का दर्द भी बढ़ जाता है। हम जितना अधिक गर्दन झुकाते हैं, उस पर उतना ज्यादा भार पड़ता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक गर्दन और रीढ़ की हड्डी पर पडऩे वाला यह दबाव 4 से 27 किलोग्राम तक होता है। सात साल के बच्चे का वजन करीब 27 किलोग्राम होता है। यानी जब हम मोबाइल फोन पर कोई मैसेज देखने के लिए 60 डिग्री एंगल पर गर्दन झुकाते हैं तो गर्दन और रीढ़ की हड्डी पर इतना दबाव पड़ता है कि जैसे कि हमारी गर्दन पर सात साल का बच्चा बैठा हो।

सेल्फी युग आपको बर्बाद कर देगा-
जानकर हैरानी होगी लेकिन अनदेखा मत कीजिए। स्किन स्पेशलिस्ट का कहना है कि सेल्फी का क्रेंज बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी खूब बढ़ा है। जो भविष्य में उनकी स्किन के लिए घातक हो सकता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि बड़े इसके दुष्प्रभाव से बच जाएंगे। दरअसल, सेल्फी लेते समय चेहरे के जिस हिस्से की अधिक तस्वीर ली जाती है, उस पर सबसे ज्यादा असर फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का पड़ता है। जो सीधे हमारे डीएनए पर असर डालती हैं। ये किरणें हमारे डीएनए से त्वचा में प्रवेश करती हैं। जिस वजह से त्वचा सम्बधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

अनिंद्रा-तनाव का कारण-
दक्षिण कोरिया में शोधकर्ताओं ने बताया कि स्मार्टफोन और इंटरनेट की लत दिमाग में मौजूद रसायन गामा एम्यूनोब्यूटीरिक एसिड जोकि दिमाग में न्यूट्रोट्रांसमीटर का काम करता है। इसके प्रभावित होने से दिमाग की शक्ति धीमे हो जाती है और न्यूरोट्रांसमीटर दिमाग की नसों को उत्तेजित बनाए रखता है। यही कारण है जो दिमाग को प्रभावित करने वाली समस्याएं जैसे तनाव, चिंता और अनिद्रा बढ़ जाती हैं

सोने से पहले 99 प्रतिशत लोग फोन पर-
रात को सोने से पहले 99 प्रतिशत लोग फोन पर लगे होते हैं। कुछ चैटिंग करते हैं तो कुछ लोग गेम्स खेलते हैं। हाल ही में हुए एक शोध में साफ हुआ है कि अंधेरे में फोन का अधिक इस्तेमाल करने से सिर दर्द, बेचैनी, कंपन, आंखें कमजोर और डिप्रेशन जैसी बड़ी बीमारियां हो सकती हैं। वैसे तो फोन से दूर ही रहना चाहिए।

प्रजनन क्षमता कम होती-
डॉक्टर्स के अनुसार बांझपन की समस्या के लिए मोबाइल फोन और लैपटॉप का ठीक प्रकार से इस्तेमाल न करना भी बड़ा कारण है। शर्ट की जेब में दिल के पास और पैंट की जेब में रखने पर मोबाइल से निकलने वाली रेज खतरनाक साबित होती हैं। यह पुरुषों के शुक्राणुओं पर बुरा प्रभाव डालती हैं और उनकी संख्या और क्षमता में बीस से तीस प्रतिशत तक की कमी कर देती हैं।

सेलफोन में मौजदू जहरीले रसायन-
हर साल पूरी दुनिया में करोड़ों सेलफोन प्रयोग करने के बाद फेंक दिये जाते हैं। जिसके कारण ये खतरनाक रसायन और धातु मिट्टी और पानी में मिलते हैं और इससे पानी और मिट्टी में जहर फैलता है और कई खतराक बीमारियों को बढ़ा सकता है। इन मोबाइलों में लीड, ब्रोमीन, क्लोरीन, मर्करी और कैडमियम पाया जाता है, जो कि स्वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक होता है। मोबाइल में पॉलीक्लोरीनेटेड बाईफिनायल्स रसायन निकलता है, जिसके कारण शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटती है। मोबाइल का प्रयोग करने से लीवर व थाइराइड से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

रेडियेशन है नुकसानदायक-
आप और हम फोन के नाम पर मौत का खिलौना लेकर घूम रहे हैं। जैसा की आप जानते हैं कि फोन की पूरी प्रक्रिया उसके सिग्नल पर निर्भर करती है और ये सिग्नल उन्हें टॉवर से मिलते हैं। जोकि पूरी प्रक्रिया रेडियेशन पर निर्भर करती है। यह किरणें चारों तरफ हैं। जहां नहीं होना चाहिए वहां भी और जितनी मात्रा में नहीं होनी चाहिए उससे कहीं ज्यादा भी है। ये मोबाइल के जरिए हमारे शरीर को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाती हैं। इससे कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है।

क्या आपके अंदर भी ये आदत-
स्मार्टफोन ही नहीं आपको बीमार करने के पीछे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स भी है। जो लोगों को ‘सोशल मीडिया एंक्‍जाइटी डिस्‍ऑर्डर’ का मरीज बना रहा है। इस बीमारी में व्यक्ति अपनी तुलना दूसरों से करने लगता है। जैसे- स्‍टेट्स अपडेट या फोटो पर औरों से कम लाइक मिलने तथा फोन कॉल या ईमेल के अनदेखा रह जाने पर उसे बेचैनी महसूस होने लगती है। वह खुद को औरों से कमतर आंकने लगता है।

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