वृंदावन का ऐसा मंदिर जहां बीमार बच्चे हो जाते हैं ठीक

श्रीजी कुंज श्री ठाकुर आनंद मनोहर जोड़ी है। जिसने अपनी सुंदरता से पीछे उपमा जोड़ी है।।

फूलडोली झूला बंगला सांझी अन्नकूट सरस होरी। दुख दरिद्र हरती श्रीजी मंदिर परसादी जल की मोरी।।

चलो आज श्रीजी कुंज मै है आमै, आनंद कुंवरि के ठाकुर आनंद मनोहर वृंदावनचंद्र की प्यारी जोड़ी की बलैया ले मैं। रेतिया बाजार में श्री जी की कुंज निम्बार्क संप्रदाय का प्रमुख देव स्थान है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता ठाकुर जी के अभिषेक का जल है जिसे दूर दराज के लोग अपने बीमार बच्चों के लिए ले जाते हैं। मंदिर की बाहरी परिक्रमा कर लेने से वृंदावन के सभी मुख्य स्थलों के दर्शन हो जाते हैं। बादामी पाषाण और संगमरमर से निर्मित मुख्य द्वार भव्यतम है। दोनों ओर संगमरमर के गज इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं। जगमोहन और गर्भगृह भी कलात्मक है। गर्भगृह के द्वार पर बेलबूटों व पक्षियों व देवी-देवताओं की मूर्तियों का अलंकरण है।

गर्भगृह में बांसुरी बजाते आनंद मोहन वृंदावन चंद्र व राधा रानी के दर्शन है। बाईं ओर मुरली मनोहर चंद्र व दाईं ओर निंबार्काचार्य जी की मूरत विराजमान है। अनंत श्री विभूषित जगत गुरु निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर राधा सर्वेश्वर शरण देवाचार्य के संरक्षण में मंदिर में सेवा-पूजा होती है।

प्रबंधक गोवर्धन शरण का कहना है कि “निंबार्क संप्रदाय में अष्टयाम सेवा होती है। श्रृंगार आरती के समय निंबार्काचार्य जी की वेदांत दसश्लोकी का गायन किया जाता है। विशेष उत्सवों पर महावाणी के पद गाए जाते हैं। आनंद मनोहर का पाटोत्सव, अन्नकूट, श्रावण का झूलन उत्सव, अक्षय तृतीया, रथयात्रा आदि उत्सव मनाए जाते हैं। श्रीजी कुंज के ग्रंथालय में प्राचीन हस्त लिखित संस्कृत, हिंदी व निंबार्क संप्रदाय के हजारों ग्रंथों का संग्रह है।”

श्री जी मंदिर प्रांगण से छोटी कुंज का रास्ता जाता है जिसे बांदी वाली कुंज भी कहा जाता है। यहां रूप मनोहर जी के विग्रह हैं भटयानी रानी की दासी रूपा बड़ारनि ने सन् 1940 में इसका निर्माण कराया था।

श्रीजी कुंज का इतिहास

जगद्गुरू निंबार्काचार्य श्रीजी महाराज के वर्तमान मंदिरों में प्रधान होने के कारण इसे श्रीजी महाराज की बड़ी कुंज कहते हैं। सन् 1926 ई. में जयपुर नरेश (तृतीय) जय सिंह की माता भटियाणी महारानी श्री आनंद कुंवरि ने इस जीर्णोद्धार कराया था| यहां उनके द्वारा पधराए आनंद मनो वृंदावन चंद्र की जोड़ी है। भगवान के अभिषेक का जल परिक्रमा की पांवड़ी में भरा रहता है, वृंदावन और बाहर लोग अपने बीमार बच्चों के लिए जाते हैं। ऐसी मान्यता कि इस जल से बीमारी दूर हो जाती है।

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