युग-युग से ब्रज में तप कर आसमां में चमक रहा अटल सितारा, ब्रज आएं तो मधुवन आना न भूलें

मधुवन
मधुवन

मथुरा: हींस, करील, कदंब और पीलू के झुरमुटों से घिरे टीले के ऊपर लखोरी ईंट, चूने और लाल पत्थर से बने एक विशाल भवन में भगवान श्रीनारायण के दांयी ओर ध्रुवजी महाराज और बांयी तरफ श्रीनारदजी विराजमान हैं। ये मधुवन है। ध्रुवजी महाराज की ये तपस्थली भी है। उनके विशाल मंदिर से करीब एक किलोमीटर दूर कृष्णकुंड हैं। इसके किनारे श्रीराम के अनुज शत्रुघ्न के मंदिर समेत यहां कई धार्मिक दर्शनीय स्थल भी हैं। इनमें महाप्रभुजी की बैठक भी शामिल हैं। जो आज भी करोड़ों श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र हैं।

ब्रज में तप कर आसमां में चमका रहा युग-युग से अटल सितारा, ब्रज आएं तो मधुवन आना न भूलें

श्तमुवाच सहस्त्राक्षो लवणो नाम राक्षसरू मधुपुत्रो मधुवने न तेऽज्ञां कुरुतेऽनघश्ख्। वाल्मीकि रामायण में मधुवन का जो उल्लेख है, वह आज भी यमुना के तट से शुरू होने वाली ब्रज चौरासी काेस परिक्रमा का पहला पड़ाव स्थल है। जो युग-युगों से तमाम झंझावात देखने के बाद आज भी करीब चालीस बीघा भूमि में प्राचीन हींस, करील, कदंब और पीलू की वृक्षावली से घिरा हुआ है। राजा उत्पानपाद के पुत्र ध्रुव पर उनकी सौतेली मां सुरुचि ने वाक्यबाण छोड़े तो पांच साल की उम्र में अपनी मां सुनीति को विश्वास दिलाकर आए थे कि वह एक दिन परमात्मा की गोद में बैठेंगे। नारदजी को ध्रुव यमुना के तट पर मिले और स्नान करने के बाद इसी वन में तप करने के लिए आ गए थे। ध्रुपजी की तपस्थली का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। हींस, करील, खडिहार और पीलू के झुरमुटों के बीच बैठकर आज भी यहां साधु संत तप कर रहे हैं।

आए थे श्रीराम के भाई

मथुरा ही कभी मधुवन था। इसका मालिक मधु दैत्य था। मधु ने ही मधुपुरी बसाई थी। मधु के पुत्र लवणासुर को अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र और श्रीराम के भाई छोटे भाई ने मारा था। ध्रुव मंदिर से करीब एक किलोमीटर शत्रुघ्न जी का मंदिर भी हैं। जो आज महोली ग्राम पंचायत हैं। ध्रुवटीला पर लवणासुर की गुफा भी है। हालांकि अब इसके अवशेष रह गए हैं। लवाणासुर गुफा में होकर यमुना स्नान करने को जाया करता था। जो मधुवन से यमुना के बीच है। करीब सात-आठ साल पहले मथुरा-दिल्ली के बीच रेलवे लाइन की खोदाई का काम के दौरान इस गुफा के अवशेष श्रीकृष्ण जन्मभूमि के समीप मिले थे।

भगवान श्रीकृष्ण ने की बाल लीलाएं

मधुवन भगवान श्रीकृष्ण की चंचल बाललीला स्थल भी रहा है। वर्तमान में मथुरा से करीब साढ़े तीन मील दूर मधुवन है, जो आज महोली ग्राम पंचायत हैं। मुधवन ब्रज के बारह प्रमुख वनों में एक प्रमुख वन भी है। वर्तमान में महोली गांव को ही मधुवन भी कहते है। मधुवन में कृष्ण कुंड हैं। ग्रामवासी कहते हैं कि एक बार गोकुल से गोपियां भगवान श्रीकृष्ण और ग्वाल बालों के लिए छाक भोजन लेकर आई थी। भगवान श्रीकृष्ण और ग्वालों ने जब भोजन कर लिए थे, तब गोपियों ने कहा था कि हम आपके लिए भोजन लेकर आए हैं और आप हमको पानी भी नहीं पिला सकते हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी भूमि को खोद कर पानी निकाला था। वही स्थल आज कृष्ण कुंड है। कुंड के आसपास कई दर्शनीय स्थल भी हैं।

महप्रभु की बैठक

कुंड के किनारे ही महाप्रभु की बैठक भी है। ब्रज चौरसी कोस परिक्रमा मार्ग की यह पहली बैठक हैं, जबकि इसे महाप्रभु की यहां छठवीं बैठक हैं। मधुवन में महाप्रभुजी भारत का भ्रमण करते हुए पहुंचे थे। उस समय यहां देव मधुवनिया ठाकुर विराजते थे।

ध्रुव महाराज ने यहां पर तप किया था। आज ध्रुवजी आकाश में अटल तारा बनकर चमक रहे हैं। जिसे ध्रुवतारा कहा जाता है। ध्रुव की तपस्थली पर वर्ष में हजारों तीर्थयात्री दर्शन करने के लिए आते हैं।

दान सिंह मंदिर के सेवायत

मधुवन में ही ध्रुव ने तप किया था। यहां लवणासुर की एक गुफा भी है। यह वही लवणासुर दैत्य था जिसका वध श्रीराम के छोटे भाई शत्रघ्न ने किया था। यह एक धार्मिक और रमणीक स्थल है।

योगेश, मंदिर सेवायत

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