बदला चुनाव प्रचार तरीका: अमरीकी सोशल मीडिया स्ट्रेटजी से एलईडी वैन तक, वर्चुअल वार रूम का बढ़ा क्रेज

नई दिल्ली। पांच राज्‍यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। वहीं चुनाव आयोग ने पश्‍चिम बंगाल के चुनाव प्रचार अभियान से सबक लेते हुए फि‍जिकल रैलियों और जनसभाओं पर बैन लगा दिया है। ऐसे में पॉलिटिकल पार्टियों और लीडर्स के पास डिजिटल मोड का ही सहारा रह गया है। वैसे बीते चुनावों की तरह इन चुनावों में भी डिजिटल के उन तमाम टूल्‍स का सहारा लिया जाएगा, लेकिन उनका इस बार उनका रेंज थोड़ा वाइड देखने को मिलेगा। वहीं कुछेक टूल्‍स ऐसे भी रहेंगे जिनका इस्‍तेमाल पहली बार देखने को मिलेगा। वहीं दूसरी ओर कुछ प्रत्‍याशी अमरीकी चुनाव प्रचार के तरीकों को भी अपनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। मतलब साफ है कि इस बार भारत में अमरीकी सोशल मीडिया कैंपेनिंग की झलक देखने को मिल सकती है।

वचुर्अल वॉर रूम : डिजिटल मार्केटिंग कंपनी मेक यू बिग के आशीष गुप्‍ता बताते हैं कि आख‍िर इस बार पॉलिटिकल पार्टी से लेकर तमाम कैंडिडेट तक अपना वर्चुअल वॉर रूम बनवा रही हैं। जिसमें उनके लिए एक पूरी टीम काम कर रही है। अगर बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा जैसी पार्टियों के वॉर रूम के लिए करीब 150 लोगों की टीम काम कर रही है। वहीं छोटी पार्टियों के लिए यही 80 लोगों की हो जाती है। अगर किसी विधानसभा में एक प्रत्‍याशी का वॉर रूम ऑपरेट करना है तो उसके लिए कम से कम 10 लोगों की टीम की जरुरत पड़ती है।

From American social media strategy to LED vans, parties can use these digital weapons in 5 assembly elections SSA

कॉल सेंटर : पार्टी और नेताओं की ओर से कॉल सेंटर का सहारा भी लिया जा रहा है। यह कॉल सेंटर वॉर रूम का एक हिस्‍सा है, जो डायरेक्‍ट वोटर्स, वोटर्स के प्रेशर ग्रुप्‍स को कॉल करते हैं और पार्टी और संबंध‍ित नेताओं वोट देने के लिए प्रेरित करने, उनके सुझाव मांगने, उनकी समस्‍याओं को सुनने और हल बताने का काम करते हैं। मतलब जो काम पार्टी कार्यकर्ता प्री कोविड में चुनाव के दौरान करते हैं अब वो ही काम कॉल सेंटर की टीम तैयार कर कराया जा रहा है।

वीडियो और फोटो ग्राफिक डिजाइनर्स : अब जब सब कुछ डिजिटली होगा, तो वीडियो और ग्राफ‍िक डिजाइनर्स का अहम रोल हो जाता है। एक वॉर रूम में ऐसे पांच से 6 लोगों की दटीम होती है जो डिफरेंट सोशल मीडिया ऐप के लिए वीडियो और फोटो ग्राफ्र‍िक कंटेंट तैयार करती है। जिसे अलग-अलग प्‍लेटफॉर्म के थ्रू फ्लोट किया जाता है। यह टीम फोटो और वीडियो के माध्यम से पार्टी और लीडर्स की प्रोफाइल तैयार कर रही है। आशीष बताते हैं कि‍ जो पॉलिटिकल लीडर्स या पार्टी पहले से ही सत्‍ता में मौजूद हैं के काम को फोटो ग्राफ‍िक्‍स के माध्‍यम से तमाम सोशल मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है। जिसमें फेसबुक, ट्व‍िटर, इंस्‍टाग्राम, लिंक्‍डइन कू एप जैसे सोशल मीडिया ऐप शामिल हैं। वहीं दूसरी ओर डिफरेंट ऐप के लिए 30 सेकंड से लेकर 6 मिनट के लिए वीडियो भी बनाए जा रहे हैं। जिन्‍हें ट्वि‍टर, फेसबुक, यूट्यूब पर फ्लोट किया जा रहा है।

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सोशल मीडिया हैंडलर्स : रेंबो मीडिया एंड कंयूनिकेशंस के फाउंडर पंकज पराशर के अनुसार मौजूदा समय में प्रत्‍येक पार्टी के पास ऐसे हैंडलर्स की भरमार है। चुनावों में पॉलिटिकल पार्टीज ऐसे हैंडलर्स को आउटसोर्स भी करती हैं। जो कि वॉर रूम में तैयार हो रहे कंटेंट को अलग-अलग प्‍लेटफॉर्म में फ्लोट करने का काम करती हैं। इन लोगों का काम काफी अहम और जिम्‍मेदारी भरा होता है। ऐसे हैंडलर्स को इस बात ध्‍यान रखने की बेहद जरुरत होती है कि जो वो सोशल मीडिया में फ्लोट कर रहे हैं वो सही भी है या नहीं। हरेक कंटेंट का इस्‍तेमाल काफी समझदारी के साथ इस्‍तेमाल करना ही इस टीम की जिम्‍मेदारी होती है। ये लोग तमाम वॉट्सऐप ग्रुप तैयार करते हैं। फेसबुक पेज के माध्‍यम से लोगों से कनेक्‍ट होते ळैं और अपनी पार्टी का प्रचार करने का काम करते हैं। जहां ज्‍यादा इंटरनेट की सुविधा नहीं है वहां एमएमएस के थ्रू लोगों से जुड़ने का प्रयास करते हैं।

लाइव वीडियो : पंकज पराशर बताते हैं कि बंगाल चुनाव के दौरान इस टूल का इस्‍तेमाल काफी हुआ था। इन पांचों राज्‍यों के चुनावें में तो और भी ज्‍यादा होने वाला है। फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर के माध्‍म से लाइव वीडियो स्‍ट्रीमिंग की व्‍यवस्‍था की जा रही है। पंकज बताते हैं कि अगर कोविड के प्रोटोकॉल को ध्‍यान में रखते हुए लाइव वीडियो स्‍ट्रीमिंग एक बेहतर ऑप्‍शंस हैं। सभी प्रत्‍याश‍ियों के लिए अलग-अलग व्‍यवस्‍था की जा रही है। विधानसभा वाइज और ब्‍लॉक लेवल एवं बूथ लेवल वाइज सभी सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म के पेज क्रिएट किए गए हैं। जिनपर लोगों को जोड़ा गया है। ताकि लाइव वीडियो स्‍ट्रीमिंग की जा सके। साथ ही लाइफ स्‍ट्ररीमिंग की टाइमकिंग की जानकारी एसएमएस और व्‍हाट्सऐप के माध्‍यम से दी जा रही है। हाईप्रोफाइल नेताओं की लाइव स्‍ट्र‍ीमिंग से पहले ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब प्रोमो भी चलाए जा रहे हैं।

वेबिनार्स: रेंबो मीडिया एंड कंयूनिकेशंस के फाउंडर पंकज पराशर के अनुसार वेबिनर का इस्‍तेमाल प्रत्‍श्‍यायाी और पार्टी की मर्जी के हिसाब से है। वहीं नेता की फेस वैल्‍यू पर भी है। यूपी या पंजाब का कोई बउ़ा नेता वेबिनार करता है तो 50 हजार या एक लाख की लिमिट के आधार पर वो वेबिनार रीजन के हिसाब से डिवाइड किए जा सकते हैं। क्‍योंकि नेता और पार्टी की फेस वैल्‍यू के आधार पर लोगों का जुड़ना स्‍वाभाविक है, लेकिन छोटे नेताओं के इलाकों के लिए एक वेबिनार बहुत है। वहां पर आबादी भी कम होती है और लोगों का रुझान भी थोड़ा कम होता है। साथ ही इस बात पर भसी डिपेंड करता है कि वो अपने इलाके कितना पॉपुलर है।From American social media strategy to LED vans, parties can use these digital weapons in 5 assembly elections SSA

एलसीडी एवं एलईडी वैन: आशीष गुप्‍ता बताते हैं इस बार पॉलिट‍िकल पार्टी और लीडर्स के लिए एलसीडी एवं एलईडी वैन प्रोवाइड करा रहे हैं। यह वैन उन जगहों के लिए हैं जो थोड़े सुदूर इलाकों में रहते हैं और जहां पर टीवी और इंटरनेट की ज्‍यादा व्‍यवस्‍था नहीं है। ये एलसीडी एवं एलईडी वैन आम लोगों को वीडियो के माध्‍यम से पार्टी और लीडर्स के लिए बारे में बता रहे हैं। उनके द्वारा यूपी में 70 से ज्‍यादा एलसीडी एवं एलईडी वैन प्रोवाइड करा रहे हैं।

कितना आ रहा है खर्चा: पंकज पाराशर के अनुसार यह प्रत्‍याशी और डिपेंड करता है कि वो किस तरह की फैसिलिटी चाहता है। अगर कोई नॉर्मल कैंडिडेट किसी नॉर्मल कंपनी के साथ जुड़कर सोश्‍यानल मीडिया कैंपेनिंग की शुरुआत करता है तो पूरे चुनाव में उसका खर्च 5 से 7 लाख रुपए तक में निपट सकता है। वहीं हाई प्रोफाइल नेता वैसी बड़ी कंपनी के साथ टाइमअप करता है तो यह खर्च 40 से 50 लाख रुपए तक आ सकता है। पंकज पराशर के अनुसार चुनाव आयोग ने इस बार बड़े राज्‍यों के लिए चुनाव खर्च की सीमा में इजाफा किया है। यह लिमिट 40 लाख रुपए तक की है। अगर प्रत्‍याशी ठीक से खर्च करें तो 40 से 50 लाख रुपया डिजिटल कैपेंन के लिए बहुत है। फ‍िर चाहे नेता कितना ही बड़ा क्‍यों ना हो।

साल 2020 में कोविड के दौरान दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्‍शन हुआ और वो था अमरीकी प्रेसीडेंश‍ियल इलेक्‍शन। कोविड पीक के दौरान हुए इस इलेक्‍शन में सोशल मीडिया का अहम रोल देखने को मिला था। आइए आपको भी बताते आख‍िर प्रेसीडेंश‍ियल इलेक्‍शन के दौरान कैंडीडेट ने सोशल मीडिया के थ्रू आम लोगों से जुड़ने के लिए कौन से तरीके अपनाए थे।

लाइव वीडियो ने राजनीतिक सोशल मीडिया पर कब्जा कर लिया है। ट्रेडिशनल कास्‍ट के ऑप्‍शन के रूप में काम करते हुए सोशल मीडिया वीडियो राजनेताओं को अपनी खुद की खबरों को ब्रेक करने और रियल टाइम में अपने क्षेत्र के लोगों के साथ बातचीत करने का अधिकार देता है। उदाहरण के लिए अमरीकी चुनाव में कई राजनेताओं ने वोटर्स और नॉ-वोटर्स के साथ समान रूप से बातचीत करने के लिए फेसबुक और इंस्टाग्राम पर नियमित रूप से लाइव स्ट्रीमिंग का सहारा लिया है। मतदाताओं से सिर्फ बात करने के बजाय, लाइव वीडियो सार्थक और आकर्षक दोनों तरह की बातचीत को प्रोत्साहित करता है।

लाइव सोशल वीडियो छोटे, स्थानीय राजनेताओं के लिए विशेष रूप से शक्तिशाली है, जिन्हें उन मुद्दों को संबोधित करने का मौका मिलता है जिन्‍हें मेनस्‍ट्रीम न्‍यूज कवरेज में जगह नहीं मिल पाती है। उदाहरण के लिए, फ़्लोरिडा हाउस की प्रतिनिधि अन्ना एस्कामानी ने वोटर्स को कोविड 19 के दौरान बेरोजगार हुए लोगों को किस तरह के बेनिफ‍िट्स दिए जाएंगे की जानकारी देने के लिए Facebook Live का उपयोग किया।

अमरीकी चुनाव में फैक्‍ट चेक पर काफी गौर किया गया। जानकारों की माने तो अमरीकीयों के लिए अधि‍कतर न्‍यूज का सोर्स सोशल मीडिया ही है। ऐसे में कुछ पब्‍लि‍श करने से पहले कई उस फैक्‍ट को जांचा गया। इसमें बयान और किसी पर टिप्‍पणी करना भी शामिल हैं। पॉलिटिकल कैंपेन के लिए सोशल मीडिया चलाने वाला जिम्‍मेदार होना काफी जरूरी है। एक बार पब्‍लि‍श होने के बाद झूठे दावे और गलत सूचना को रोकना मुश्किल होता है।

अमरीकी चुनाव में एक बात देखने को मिली कि प्रत्‍याश‍ियों और उनका मीडिया कैंपेन चलाने वाले लोगों ने एक बात पर गौर किया कि हर कोई राजनीति में दिलचस्‍पीी नहीं रखता। ऐसे में उन्‍होंने ऐसे लोगों पर फोकस करना शुरू किया जो उनका समर्थन करते हैं, या फ‍िर वो ऐसे ऑप्‍शंस कीर तलाश में हैं जो उनके लिए परफैक्‍ट हो। अमरीका में देखने को मिला कि कई लोग पॉलिट‍िकल सोशल मीडिया पेज के साथ इसलिए नहीं जुड़ना चाहते क्‍योंकि वो मौजूदा राजनति से रुघ्‍ट हो गए हैं और वो किसी के साथ बहस करने के मूड में नहीं है।

अमरीकी चुनावें में देखने को मिला था कि विपक्षी पार्टियों के कैंडीडेट्स ने सरकार के लोगों से सोशल मीडिया के माध्‍यम से लगातार सवाल किए और उनके सवालों के जवाब दिए। जिससे आम लोगों लागों को भी लगा कि अहम मुद्दों पर कौन सबसे ज्‍यादा सक्रिय है और सरकार और उनसे जुड़े हुए लोग किस तरह से जवाब दे रहे हैं। अगर जवाब मिल रहा है तो वो अनुकूल भी है या नहीं। इससे प्रत्‍योश‍ियों को आम लोगों से जड़ने का सीधा माध्‍यम मिल जाता है।

 

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