ब्रज भ्रमण: इस मंदिर में होती है सात आरती व पांच भोग की सेवा

श्री जीव प्रकटीकृतं, राधालिंगित विग्रह। राधा दामोदरं वंदे श्री जीव जीवितेश्वरम्।।

संध्या बेला में संकीर्तन के पावन स्वर संपूर्ण वातावरण को सुगंधित किए हैं। बाहर से आती भक्ति की लहरें तरंगित होकर थिरक रही हैं । सबके मुख पर कृष्णा का नाम है। गर्भगृह में नीली ऊनी पोशाक व आभूषणों से अलंकृत ठाकुर जी के विग्रहों की मनोहारी छटा है। आरती का समय हो गया है। घंटे घड़ियाल गूंजते ही श्रद्धालु करबद्ध होकर अपने आराध्य की वंदना करते हैं । जगमोहन में राधा दामोदर की जय-जयकार होने लगती है।

सप्त देवालय के विख्यात स्तंभ राधा दामोदर मंदिर की सांझ ऐसी ही होती है । यह देवालय गौरांग महाप्रभु के परिकरों का प्रमुख धाम है। षट गोस्वामियों में रूप व जीव की भजन स्थली है। यहां चार गौड़ीय आचार्यों के सेवित श्रीविग्रहों के दर्शन हैं । भगवान कृष्ण द्वारा सनातन गोस्वामी को प्रदत्त श्री गिरिराज चरण शिला भी विराजमान हैं। भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद ने इसी दिव्य स्थान पर भजन किया था । उन्होंने यहां भागवत व अन्य ग्रंथों का अंग्रेजी अनुवाद किया था।

गर्भगृह में कृष्णदास कविराज द्वारा सेवित राधा वृंदावन चंद्र,  जीव गोस्वामी के राधा दामोदर,  गीत गोविंद के रचयिता जयदेव के उपास्य राधा माधव व भूगर्भ गोस्वामी के छैल चिकन महाराज स्थापित हैं।

मंदिर के सेवायत आचार्य निर्मल गोस्वामी ने बताया, “मंदिर में चारों आचार्यों की समाधि है। जयदेव गोस्वामी की पुष्प समाधि है। जब वह मथुरा आए थे तो उन्होंने राधा माधव विग्रह की पूजा की थी। करीब 90 साल पहले विग्रह को मंदिर में विराजमान किया गया। रूप गोस्वामी यहीं भजन किया करते थे। जीव गोस्वामी उनके अनुगत होकर यही भगवद् भक्ति में तल्लीन रहते थे। सन् 1558 ईस्वीं में चैतन्य महाप्रभु प्रधान अनुयायी जीव गोस्वामी ने मंदिर का निर्माण कराया था। यहां सात आरती-पांच भोग की सेवा है। माखन मिश्री का भोग विशेष रूप से रखा जाता है।”

 

                   परिक्रमा का पूर्ण फल देती शिला

 

सनातन गोस्वामी नित्य गोवर्धन की परिक्रमा करने जाते थे । वृद्धावस्था में उनकी असमर्थता देकर भगवान कृष्ण ने बालक रूप में आकर उन्हें एक डेढ़ हाथ लंबी वट पत्रकार श्याम रंग की शिला दी| उस पर भगवान ने अपने चरण चिन्ह, गाय के खुर, वंशी और लकुटी अंकित कर कहा कि अब तुम वृद्ध हो गए हो, इस शिला की चार परिक्रमा करने से तुम्हें गिरिराज महाराज की संपूर्ण परिक्रमा का फल मिलेगा। सनातन गोस्वामी के तिरोधान के बाद जीव गोस्वामी ने इस दिव्य शिला को राधा दामोदर मंदिर में स्थापित कर दिया।

                 रूप ने प्रकट किए राधा दामोदर

 

रूप गोस्वामी ने राधा दामोदर को प्रकट कर अपने शिष्य जीव गोस्वामी को सेवा के लिए अर्पण किया । सन् 1542 को राधा दामोदर की स्थापना हुई। ठाकुर जी के बाम भाग में राधा रानी व दाई ओर ललिता सखी के विग्रह हैं जो बंगाल आए थे। औरंगजेब के आतंक काल में कुछ समय के लिए राधा दामोदर के विग्रह जयपुर में विराजमान रहे। बाद में परिस्थितियां अनुकूल होने पर सन् 1803 ई. को पुनः वृंदावन पधारे। तब से यहीं प्रतिष्ठित हैं भूगर्भ गोस्वामी षट गोस्वामियों से पहले वृंदावन आए थे । उन्हें राधा छैल चिकन जी के विग्रह प्राप्त हुए थे। यह उन मूर्तियों में से एक है जो कभी वृंदावन से बाहर नहीं गई। पहले इनकी सेवा छैल चिकन कुंज में होती थी। 80 साल पहले सेवा पूजा की व्यवस्था न होने के कारण इन्हें यहां विराजमान किया गया ।

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