ब्रज भ्रमण: जहां विदेशी भी फेरते कृष्ण की माला

श्वेत भवन का श्यामल मन मोहन की धूनी रमाये रहता है। सात समंदर पार आए विदेशी ब्रज रंग हरे कृष्णा हरे कृष्णा भजते हैं। श्याम उनका सर्वस्व हैं।पलकें मूंदे कृष्ण नाम की माला फेरते रहते हैं। इस्कॉन मंदिर विदेशी भक्तों जमघट लगा रहता है। इसे अंग्रेजों मंदिर कहा जाता है। स्थापत्य दृष्टि से भी यह अद्भुत है। संगमरमर से निर्मित मंदिर कलात्मक सौष्ठव देखते बनता है। गर्भगृह में कृष्ण-बलराम की मन मोहिनी मूरत है। मोहन के अधरों पर मधुर मुस्कान बिखरी है। इस प्यारी छवि में भक्त अपलक जाता है। गर्भगृह निताई गौर व राधा श्याम सुंदर के विग्रह भी हैं।

वृंदावन-छटीकरा मार्ग पर स्थित इस्कॉन मंदिर देश विदेश से आने वाली श्रद्धा का प्रमुख स्थान है। आसपास का वातावरण भी कृष्णमय है। इस्कॉन की बुनियाद रखने वाले एसी भक्तिवेदांत स्वामी ने भौतिकवादी जगत को भगवद् भक्ति की ओर मोड़ दिया।

उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण कर विदेशी भक्तों ने वृंदावन को अपना घर बना लिया है। गर्भगृह के एक कक्ष में श्रीमद् भक्तिवेदांत स्वामी व उनके गुरु भक्ति सिद्धांत सरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं। सड़क के किनारे बाईं ओर प्रभुपाद की समाधि है। विशाल क्षेत्र में बने इस मंदिर के लिए गीता देवी सर्राफ ने भूमि दान की थी।

अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्णभावनामृत संघ के तत्वावधान में भक्तिवेदांत स्वामी द्वारा सन् 1975 में इस्कॉन मंदिर का निर्माण कराया गया।

प्रभुपाद भक्तिवेदांत स्वामी

सन् 1866 में कलकत्ता में जन्मे प्रभुपाद अभयचरण (एसी) भक्तिवेदांत स्वामी को युवावस्था में अपने गुरू मिल गए थे। सन् 1933 में भक्ति सिद्धांत सरस्वती पाद से गुरू दीक्षा लेकर अपना जीवन भक्ति के प्रचार को समर्पित कर दिया। इनकी दार्शनिक प्रतिभा के साथ शुद्ध भक्ति को देखकर गौड़ीय वैष्णव समाज ने इन्हें सन् 1947 में भक्ति वेदांत की उपाधि से विभूषित किया। युवावस्था में गृहस्थाश्रम का त्याग कर ये वृंदावन आए और राधा दामोदर मंदिर में अध्ययन कार्य किया। इन्होंने श्रीमद्भागवत के तीन खंडों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद दिया। गुरुदेव की आज्ञा से 1965 में अमेरिका गए और वहां श्रीकृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की।

51 पीठ में से एक कात्यायनी

राधाबाग प्रांगण में स्थित कात्यायनी 51 पीठ में से एक मानी जाती। आर्य शास्त्र, बह्मवैवर्त पुराण व आद्य स्त्रोत, भागवत, दुर्गा सप्तशती में मां कात्यायनी का उल्लेख है। विशाल मंदिर गर्भगृह में कात्यायनी देवी, शिव, विष्णु और गणेश जी की मूर्तियां सुशोभित हैं। कात्यायनी और गणेश मूर्ति कलकत्ता से आई है। मंदिर के महंत विद्यानंद पिछले 60 वर्ष से मां की सेवा कर रहे हैं। योगीराज श्यामाचरण लाहिड़ी के शिष्य स्वामी केशवानंद जी ने सन् 1923 में इस पीठ की स्थापना कर मां कात्यायनी को यहां प्रतिष्ठित किया। मंदिर में लगे शिलापट अनुसार इस स्थान पर मां भगवती केश गिरे थे। इस कारण यह कात्यायनी पीठ नाम से प्रसिद्ध है।

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