ब्रज भ्रमण: वृंदावन का जयपुर वाला मंदिर

माधव विलास जयपुर मंदिर की अपनी शान निराली है। चार खंभ के मंदिर में पत्थर की कला उछाली है।।

एक सौ आठ दीप की दीवट तुलसी थामरे पत्थर के। कारीगरी देख मन मोहै राजघराने मंदिर के।।

रेलॊ चलाई जयपुर से वृंदावन स्टेशन नाम की। ब्रज में विंदु बखानैं महिमा श्री वृंदावन धाम की।।

मंदिरों के नगर में जयपुर की एक अनूठी विरासत खड़ी है। मुगलिया और जयपुर शैली का समावेश इसे बेजोड़ बनाता है। राजस्थानी पोशाक पहने, कंधे पर शॉल धरे, बांसुरी बजाते माधुर्यमय माधव मन में बस जाते हैं। पेड़ों की कमीशनखोरी से दूर रहने के कारण मंदिर में चहल पहल कम है पर जो एक बार आ जाए, वो इसकी रूप माधुरी को कभी नहीं भूलता।

वृंदावन-मथुरा मार्ग पर रामकृष्ण मिशन के सामने राधा-माधव जयपुर वाला मंदिर स्थित है। राजस्थान सरकार इसका प्रबंधन देखती है। भव्य प्रवेश द्वार से अंदर जाकर विशाल जगमोहन को सामने पाते हैं। गर्भगृह में राधा माधव की नयनाभिराम छवि है। बाईं ओर हंस गोपाल व दाईं ओर आनंद बिहारी विराजमान हैं।

निंबार्क संप्रदाय से जुड़े मंदिर के सेवायत रूप नारायण शर्मा को मंदिर की कारीगरी, वास्तुकला का संपूर्ण ज्ञान है। कहते है। “गर्भगृह के द्वार इटैलियन पत्थर से बने हैं जिन पर पच्चीकारी का काम है। यह ताजमहल वाला पारदर्शी पत्थर है। इन द्वारों पर मंदिर की छाप के लिए कलश उकेरे गए हैं। जगमोहन के सभी मेहराब एक सुई की नोक पर है। जब सूर्य उत्तरायण या दक्षिणायन होता है, उस समय दस दिन का समय ऐसा आता है जब ठाकुर जी को सूर्य की किरणें स्पर्श करती हैं। राजस्थान के सूर्यवंशी राजाओं की यह विशेष पहचान है। समूचे मंदिर में 15 फुव्वारे हैं जो कभी रंगीन जल की वर्षा करते थे। अब सब बंद हैं।”

जगमोहन के खंभों की सरंचना वास्तु के हिसाब से की गई है। इनमें सबसे नीचे चौकी, कलश, रोली और उसके ऊपर आम्र पत्तों की आकृति उभारी गई है। ये खंभे कलाकारी के सुंदर नमूने हैं। लकड़ी के दरवाजे को अंगूर की कुंज लताओं से सजाया गया है। मंदिर प्रांगण में पत्थर से निर्मित तुलसी चौरा है जिसमें एक साथ 108 दीपक जलाए जा सकते हैं।

इतिहास

जयपुर के राजा माधव सिंह ने अपने गुरु ब्रह्मचारी गिरधारी शरण जी की प्रेरणा से सन् 1924 में इस

मंदिर का निर्माण कराया गया था। मंदिर 30 साल में बनकर पूरा हुआ था। मंदिर और राष्ट्रपति भवन एक ही पत्थर के बने हैं। इस पत्थर की जड़ाई बहुत शानदार है। यह वंशी पहाड़, धौलपुर से मंगाया गया था । इसे लाने के लिए राजा माधव सिंह ने मथुरा-वृंदावन के बीच रेलवे लाइन बिछवाई थी।

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