#BreakingSilence: मामा का हाथ कमर से काफी ऊपर, देशभर की औरतों की कहानियां

दिवाली का वक्त था. सामान घरों के भीतर कम और बाहर ज्यादा रखे दिख रहे थे. हॉस्टल से बाहर मार्केट भी जाओ तो साफ-सफाई का नजारा आम था. मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही थी. पहला मौका था, जब त्योहार पर घर से बाहर थी. तभी घर से फोन आया. मामा का फोन था. दिल्ली में ही रहते थे और मुझे त्योहार पर घर बुला रहे थे.

खुशी से गदबदाते हुए मैंने फटाफट दो जोड़ी कपड़े डाले. दिवाली पर पहनने के लिए एक सुर्ख कुरता रखा, जिसपर जरी का हल्का काम था. सोने के बुंदे और कुछ पैसे पर्स में रखे. और रूम में ताला डालकर निकल गई. बात 2006 की है. तब दिल्ली में मेट्रो आई नहीं थी. बस से मामा-घर जाते हुए रास्तेभर गुनगुनाती रही. खुश थी कि दिवाली मुझे हॉस्टल के कमरे में नहीं मनानी पड़ेगी.

वो मां के सगे भाई थे लेकिन घर आना-जाना बहुत कम हुआ था. दिल्ली में ही रहे. शादी से पहले भी और शादी के बाद भी. हम बिहार के एक गांव में रहते. किसी शादी-ब्याह में भी मिलना नहीं के बराबर था. 12वीं के बाद दिल्ली में दाखिला मिला तब पहली बार उनके घर जाना हुआ. वे मेरे लोकल गार्जियन बनाए गए. दिल्ली के मालवीय नगर में सुंदर सा फ्लैट. छोटा था लेकिन सजा हुआ. सर्दियों में जमीन पर कार्पेट बिछ जाती, गर्मी में दीवारों पर खस की चटाइयां टंग जाती. बैठक में कई तस्वीरें भी थीं. लैंडस्केप भी और भगवानों की भी. तोरई और ब्रोकली का अच्छा-खासा मेल उस घर में दिखता था.

दो बसें बदलकर घर पहुंची तो हांफती हुई मामी ने दरवाजा खोला. चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान. मैं हल्के से गले मिली तो उन्होंने कसकर चपोट (गले लगाना) लिया. दिवाली पर मामा-घर आने का फैसला सही लगने लगा. मामा से मेरी हल्की-फुल्की बातचीत थी. लोकल गार्जियन के नाते हफ्ते में एकाध बार उनका फोन आया, हालचाल पूछे और बस. राखी पर मां जरूर मुझे फोन करके इसरार करतीं कि ‘वहीं हैं तो मामा से मिल आ, मेरे हिस्से की राखी तू ही बांध देना’.

पहली बार कई दिनों के वहां रहने आई थी. मामी ने जैसा अपनापन दिखाया, उसके बाद मैं बढ़-चढ़कर घर के कामों में हिस्सा लेने लगी. मामी, मैं ये कर दूं, ये बना दूं, ऐसे सजा दूं. हंसती हुई मामी ने हाथ से बरज दिया- तू पहली बार आई है. आराम कर.

मैं टीवी के सामने धंस गई. मामा सामने ही बैठे थे. मुझे गौर से देखते हुए. हॉस्टल और पढ़ाई के बारे में पूछने लगे. तभी मामी की आवाज आई- मिन्नी, जरा मामा के साथ मिलकर छज्जी से टोकरियां तो उतरवा दे. मामा का घर छोटा और पुराने तरीके से बना था. सामान रखने के लिए वहां कमरे में दीवारों पर बनी अलमारी के ऊपर ही एक छोटी दीवार समानांतर निकली हुई थी. उसमें कम जरूरी सामान जैसे फालतू पंखे, बड़े बर्तन रखे होते. पुराने कपड़ों की पोटलियां भी खुलने और पहने जाने या फेंके जाने का इंतजार करती सुस्ताती रहतीं.

मैं फौरन उठी. छज्जी पर टोकरी दिख तो रही थी लेकिन मेरी पहुंच से दूर थी. कुर्सी लगाई. पंजों के बल खड़ा होकर हाथ फैलाए. तब भी हाथ नहीं पहुंचा. इतने में मामा आ गए. कहा- लाओ, मैं तुम्हारी मदद कर दूं. और बिना मेरी ‘हां’ या ‘न’ सुने तपाक से मुझे कमर से उठा लिया.

17 साल की लड़की. एकदम दुबली-पतली. पेट अंदर था और कपड़े भी ऐसे पहनती कि जींस और शर्ट के बीच अंगुलभर का ही फर्क रहता होगा. ऊपर से सामान उठाने की कोशिश में टी-शर्ट काफी ऊपर उठी हुई थी. मुझे थामे हुए मामा के हाथ सिर्फ पेट तक नहीं रहे, वो काफी ऊपर बढ़ते हुए मेरा ब्रेस्ट टटोल रहे थे. धक्! मेरा दिल जोरों से धड़का. मामा की आंखों में अजीब सी वहशियत थी. मैंने जैसे-तैसे टोकनियां नीचे गिराईं और तब जाकर मामा के हाथ हटे. सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि समझने में कई दिन लग गए. दिवाली पर मैं चुपचुप रही और अगली ही सुबह बहाने से हॉस्टल लौट आई.

दिमाग कहता- क्या कुछ गलत हुआ! मामा हैं. मां के सगे भाई. मैं तो उन्हें मां की राखी बांधती हूं. फिर बगल के कमरे में मामी भी तो थीं. वो गलत कैसे कर सकते हैं. उधर दिल कहता कि मामा के हाथों में जो थर्राहट थी, आंखों में जो भाव था, वो गलत था. थोड़े दिनों तक अपने मन में गुनती-बुनती रही. तब जाकर यकीन हुआ कि मामा ने मुझे सेक्सुअली एब्यूज किया है. समझने के बाद भी मैं किसी से कह नहीं सकी. मां से भी नहीं. बस, मामा-घर जाना बंद कर दिया.

फास्ट फॉरवर्ड टू 2013…

मैं मां बनने वाली थी. एक रोज दफ्तर से लौटते हुए उल्टी तरफ एक शख्स दिखा. वो मेरी तरफ आ रहा था. उसकी चाल से लगा कि उसका इरादा गलत है. मैं तेजी से एक ओर हटी, तब तक उसका कंधा मेरे कंधे से जोरों से टकरा चुका था. मैं संभली. पीछे मुड़ी. वो कुछ ही कदमों की दूरी पर खड़ा बेशर्मी से हंस रहा था. मैंने जूता निकाला और उसे दनादन मारने लगी. उसे पीटते हुए मैं दिल्ली में सीखी हुई सारी गालियां उच्चार रही थी. जूते लगाते हुए मुझे मामा का ख्याल भी बार-बार आ रहा था.

मुझे घूरा गया. मैंने अश्लील इशारे देखे. जबरन छुआ गया. मनचाहे की कोशिश में उठाया-पटका गया. दुनिया देखी, तब जाना कि मैं अकेली नहीं. ज्यादातर औरतें हमेशा चुपचाप सहती रहीं.

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