जब तक लाश लेने जाते, भाप हो चुकी थी’, नागासाकी पर एटम बम की तबाही… सोचकर ही कांप जाता है कलेजा

वो 9 अगस्‍त, 1945 का दिन था। जापान मानवता के सबसे खतरनाक हथियार की पहली चोट से जूझ रहा था। जापानियों को नहीं लगा था कि हिरोशिमा के बाद इस तरह का दूसरा हमला भी होगा। मगर 6 अगस्‍त के ठीक तीन दिन बाद, अमेरिका ने नागासाकी पर दूसरा बम गिरा दिया। कुछ अनुमानों के अनुसार, कम से कम डेढ़ लाख लोग मारे गए। लाखों अपाहिज हुए और दूसरी घातक बीमारियों के शिकार हुए। आज की पीढ़‍ियों में भी उस हमले के निशान मिलते हैं।

इन दो एटमी बमों ने जापान को तोड़कर रख दिया। 15 अगस्‍त को जापान ने सरेंडर कर दिया। दूसरे विश्‍व युद्ध का अंत हो चुका था, मगर लाखों की बलि लेकर। 9 अगस्‍त को नागासाकी में जो कुछ हुआ, उसे अपनी आंखों से देखने वाले क्‍या कहते हैं, पढ़‍िए।

हिरोशिमा में बमबारी से पहले, सचिको मतसुओ के पिता को अमेरिकी विमान से गिरा एक कागज का टुकड़ा मिला था जिसमें आबादी पर हमले की बात थी। वह काम पर निकले मगर बाकी परिवार ने एक और दिन के लिए बैरक में रहने का फैसला क‍िया। कुछ घंटों बाद धमका हुआ और जो लोग केबिन में छिपे हुए थे, वे शुरुआती असर से बच गए मगर जलन और रेडिएशन से नहीं।

मतसुओ के पिता हथियारों की एक फैक्‍ट्री के बाहर तैनात थे। उन्हें भी बहुत चोटें आई थीं। बिना छड़ी के चला नहीं जा रहा था। उनका बड़ा बेटा भी एक सिविल डिफेंस यूनिट के साथ तैनात था, जो धमाके में मारा गया। परिवार को उसकी लाश एक छत पर मिली मगर जब तक वे उसे लेने वहां तक पहुंचते, वह भाप बन चुकी थी। मतसुओ के पिता को रेडिएशन के भयानक दुष्‍प्रभावों से जूझना पड़ा।

कभी भूल नहीं पाएंगे वह खौफनाक मंजर

तब 11 साल की रहीं योशिरो यामावाकी धमाके के अगले रोज अपने पिता को खोजने निकलीं। अधजली लाश जो राख में सनी हुई थी, को देखकर यामावाकी ने जिंदगी का सबसे तकलीफदेह अहसास हुआ। उनके पिता एक पावर प्‍लांट में काम करते थे, वापस नहीं लौट सके। फैक्‍ट्री जाते समय, यामावाकी और उनके दो भाइयों ने जो कुछ देखा, उसे ताउम्र जेहन से हटा नहीं सके।

बकौल योशिरो, रास्‍ते में कुछ लाशें ऐसी थीं जिनकी त्‍वचा यूं बाहर आ रही थी जैसे पके हुए फल का छिलका, भीतर का सफेद मांस दिखता…. एक नौजवान महिला की अंतड़‍ियां ही बची थी… एक 6 से 7 साल के बच्‍चे पर कीड़े रेंग रहे थे…।

12 साल के हिरोयाशु तगावा अपनी बहन के साथ मौसी के यहां रहने लगे थे। का घर नागासाकी से थोड़ी ही दूरी पर था। जो लोग भी मौसी के घर पर थे, सबको हल्‍की चोटें ही आईं। तगावा ने फिर अपने माता-पिता को ढूंढने के लिए शहर जाने का फैसला किया। उन्‍हें रास्‍ते में लाशों के ढेर मिले, लोग अपनों को खोज रहे थे। किस्‍मत से तगावा ने अपने मां-बाप को खोज दिया मगर तीन दिन बाद पिता चल बसे।

अभी दुखों का सिलसिला खत्‍म नहीं हुआ था। तगावां अपने पिता की मौत की खबर देने मौसी के गांव पहुंचे तो पता चला कि उनकी मां जो रेडिएशन के जहर का शिकार हुई थी, अब उनकी हालत बिगड़ गई है। तगावा बस मां के आखिरी वक्‍त में किसी तरह उन्‍हें देखभर सके।

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