चंद्रयान—2: आज रात इतने बजे चांद पर हिन्दुस्तान !

नई दिल्ली। चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात 1.30 से 2.30 बजे के बीच चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा। विक्रम में से रोवर प्रज्ञान सुबह 5.30 से 6.30 के बीच बाहर आएगा। प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर एक लूनर डे (चांद का एक दिन) में ही कई प्रयोग करेगा। चांद का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। हालांकि, चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगा रहा ऑर्बिटर एक साल तक मिशन पर काम करता रहेगा। अगर लैंडर विक्रम चंद्रमा की ऐसी सतह पर उतरता है जहां 12 डिग्री से ज्यादा का ढलान है तो उसके पलटने का खतरा रहेगा।




चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-2 के उतरने की घटना का गवाह बनने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसरो मुख्यालय में मौजूद रहेंगे। मोदी के साथ स्पेस क्विज जीतने वाले देशभर के 60 बच्चे और उनके माता-पिता को भी इसरो ने आमंत्रित किया है। इससे पहले अमेरिका, चीन और रूस के यान चांद के दूसरे हिस्से में उतर चुके हैं।

‘लैंडर की स्पीड कम होगी और सही जगह पहुंचकर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा’
इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर के मुताबिक- विक्रम ऑन बोर्ड कैमरों से सही स्थान का पता लगेगा। जब जगह मैच हो जाएगी, तो उसमें लगे 5 रॉकेट इंजनों की स्पीड 6 हजार किमी प्रति घंटा से शून्य हो जाएगी। लैंडर नियत जगह पर कुछ देर हवा में तैरेगा और धीमे से उतर जाएगा। लैंडर सही जगह उतरे, इसके लिए एल्टिट्यूड सेंसर भी मदद करेंगे। नायर ने यह भी बताया कि सॉफ्ट लैंडिंग कराने के लिए लैंडर में लेजर रेंजिंग सिस्टम, ऑन बोर्ड कम्प्यूटर्स और कई सॉफ्टवेयर लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि यह एक बेहद जटिल ऑपरेशन है। मुझे नहीं लगता कि किसी भी देश ने रियल टाइम तस्वीरें लेकर ऑन बोर्ड कम्प्यूटरों के जरिए किसी यान की चांद पर लैंडिंग कराई है।

लैंडर से रोवर को निकालने में कितना समय लगेगा?
लैंडर के अंदर ही रोवर (प्रज्ञान) रहेगा। यह प्रति 1 सेंटीमीटर/सेकंड की रफ्तार से लैंडर से बाहर निकलेगा। इसे निकलने में 4 घंटे लगेंगे। बाहर आने के बाद यह चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा। यह चंद्रमा पर 1 दिन (पृथ्वी के 14 दिन) काम करेगा। इसके साथ 2 पेलोड जा रहे हैं। इनका उद्देश्य लैंडिंग साइट के पास तत्वों की मौजूदगी और चांद की चट्टानों-मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाना होगा। पेलोड के जरिए रोवर ये डेटा जुटाकर लैंडर को भेजेगा, जिसके बाद लैंडर यह डेटा इसरो तक पहुंचाएगा।




ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर क्या काम करेंगे?
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। इसके साथ ही ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके। लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं। जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।

चांद की धूल से सुरक्षा अहम
वैज्ञानिकों के मुताबिक- चंद्रमा की धूल भी चिंता का विषय है, यह लैंडर को कवर कर उसकी कार्यप्रणाली को बाधित कर सकती है। इसके लिए लैंडिंग के दौरान चार प्रक्षेपक स्वत: बंद हो जाएंगे, केवल एक चालू रहेगा। इससे धूल के उड़ने और उसके लैंडर को कवर करने का खतरा कम हो जाएगा।

‘चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के अब तक 38 प्रयास हुए, 52% ही सफल’
चांद को छूने की पहली कोशिश 1958 में अमेरिका और सोवियत संघ रूस ने की थी। अगस्त से दिसंबर 1968 के बीच दोनों देशों ने 4 पायनियर ऑर्बिटर (अमेरिका) और 3 लूना इंपैक्ट (सोवियन यूनियन) भेजे, लेकिन सभी असफल रहे। अब तक चंद्रमा पर दुनिया के सिर्फ 6 देशों या एजेंसियों ने सैटेलाइट यान भेजे हैं। कामयाबी सिर्फ 5 को मिली। अभी तक ऐसे 38 प्रयास किए गए, जिनमें से 52% सफल रहे। हालांकि इसरो को चंद्रयान-2 की सफलता का पूरा भरोसा है। माधवन नायर भी कहते हैं कि हम ऐतिहासिक पल के साक्षी होने जा रहे हैं। 100% सफलता मिलेगी।

चंद्रयान-2 की कामयाबी कितनी बड़ी?

अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चांद की सतह पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बनेगा। चंद्रयान-2 दुनिया का पहला ऐसा यान है, जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। इससे पहले चीन के चांग’ई-4 यान ने दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडिंग की थी। अब तक यह क्षेत्र वैज्ञानिकों के लिए अनजान बना हुआ है। चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिजों को खोजने का प्रयास करेगा। वह चांद के वातावरण और इसके इतिहास पर भी डेटा जुटाएगा।
चंद्रयान-2 का सबसे खास मिशन वहां पानी या उसके संकेतों की खोज होगी। अगर चंद्रयान-2 यहां पानी के सबूत खोज पाता है तो यह अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक बड़ा कदम होगा। पानी और ऑक्सीजन की व्यवस्था होगी तो चांद पर बेस कैम्प बनाए जा सकेंगे, जहां चांद से जुड़े शोधकार्य के साथ-साथ अंतरिक्ष से जुड़े अन्य मिशन की तैयारियां भी की जा सकेंगी। अंतरिक्ष एजेंसियां मंगल ग्रह तक पहुंचने के लिए चांद को लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल कर पाएंगी। इसके अलावा यहां पर जो भी मिनरल्स होंगे, उनका भविष्य के मिशन में इस्तेमाल कर सकेंगे।
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी दक्षिणी ध्रुव पर जाने की तैयारी कर रही है। 2024 में नासा चांद के इस हिस्से पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारेगा। जानकारों का मानना है कि नासा की योजना का बड़ा हिस्सा चंद्रयान-2 की कामयाबी पर टिका है।

दक्षिणी ध्रुव : ऐसी जगह जहां बड़े क्रेटर्स हैं और सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पातीं
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अगर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा होगा तो उसे सूर्य क्षितिज रेखा पर दिखाई देगा। वह चांद की सतह से लगता हुआ और चमकता नजर आएगा। सूर्य की किरणें दक्षिणी ध्रुव पर तिरछी पड़ती हैं। इस कारण यहां तापमान कम होता है। स्पेस इंडिया के ट्रेनिंग इंचार्ज तरुण शर्मा बताते हैं कि चांद का जो हिस्सा सूरज के सामने आता है, वहां का तापमान 130 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है। इसी तरह चांद के जिस हिस्से पर सूरज की रोशनी नहीं आती, वहां तापमान 130 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है। लिहाजा, चांद पर हर दिन (पृथ्वी के 14 दिन) तापमान बढ़ता-चढ़ता रहता है, लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होता। यही कारण है कि वहां पानी मिलने की संभावना सबसे ज्यादा है।

चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग कब हुई थी?
चंद्रयान-2 को भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया गया था। इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) थे। चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो था। यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा था। एक बार तकनीकी खराबी आने के बाद यह मिशन 22 जुलाई को लॉन्च हुआ। लॉन्चिंग का समय चुनने के लिए लंबी कैलकुलेशन होती है। पृथ्वी और चांद का मूवमेंट ध्यान में रखा जाता है। चंद्रयान-2 के मामले में पृथ्वी और चांद के ऑर्बिट में घूमने से लेकर लैंडिंग में लगने वाले हर समय की गणना की गई। यान ने 23 दिन पृथ्वी के चक्कर लगाए। इसके बाद चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने में इसे 6 दिन लगे।

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