कोरोना वायरस: भारतीय स्ट्रेन अब ‘वैश्विक चिंता का वेरिएंट’

नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के भारतीय स्ट्रेन को ‘वैश्विक चिंता का वेरिएंट’ बताया है। इससे पहले बी.1.1617 नाम का यह वेरिएंट, विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए ‘जिज्ञासा का विषय’ था लेकिन चिंता का नहीं। अब सामने आया है कि यह भारतीय वेरिएंट, कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह है और डाटा के मुताबिक ज्यादा संक्रमण फैलाने और इम्यून सिस्टम में सेंध मारने में ज्यादा सक्षम है।

बी.1.617-यह वेरिएंट सबसे पहले महाराष्ट्र में पिछले अक्टूबर में पाया गया और अब यह भारत में कोरोना वायरस का सबसे आम वेरिएंट बन गया है जिसे बहुत हद तक दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक चिंता का वेरिएंट घोषित किया है। इसे डबल म्यूटेंट के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन इसके सिर्फ दो नहीं, कई म्यूटेंट हैं जिनमें ई484क्यू और एलए52आर के जरिए वायरस मानव शरीर की कोशिकाओं को संक्रमित करता है और वायरस को हमला करने में मदद करता है. इन्हीं के जरिए वायरस इम्यून सिस्टम पर धावा बोलता है।

कोरोना वायरस की जीनोम सीक्वेंस में होने वाले बदलाव पर नजर रखने वाली संस्था GISAID के आंकड़े बताते हैं कि यह भारतीय वेरिएंट, कोविड के मूल स्ट्रेन से 2.6 गुना ज्यादा तेज़ी से फैल सकता है। यही नहीं यह यूके के स्ट्रेन से 60 फीसदी ज्यादा संक्रमित करने वाला है. अगर यह डाटा सही है तो भारतीय वेरिएंट अब तक का सबसे ज्यादा संक्रामक वेरियंट है

वैज्ञानिक यह पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि किस तरह म्यूटेशन की प्रक्रिया वैक्सीन पर असर डालती है या दूसरे शब्दों में कहें तो क्या यह वैक्सीन को बेअसर करने के काबिल है। हालांकि भारतीय वेरिएंट के म्यूटेशन से मेल खाता दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट बताता है कि किस तरह वैक्सीन से गंभीर रूप से बीमार पड़ने या मृत्यु का खतरा कम हो जाता है।

यहां आपको बता दें कि वायरस को वेरिएंट तब कहा जाता है जब वेरिएंट की जेनेटिक सीक्वेंस, उसके मूल यानी पेरेंट वायरस से अलग होती है। यह वेरिएंट अपनी कई कॉपी बनाता है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर कॉपी एक जैसी हो। इसी दौरान अगर गलती से या वातावरण की वजह से जब किसी प्रजाति के डीएनए सीक्वेंस में बदलाव आता है, तो नए लक्षणों के साथ जो नया जीव या वायरस तैयार होगा, उसे म्यूटेंट कहेंगे। हालांकि म्यूटेशन वायरस का एक आम लक्षण हैं और इसमें से ज्यादा तो सामान्य होते हैं और वायरस की प्रकृति में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं करते हैं। अकेले कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में ही 4000 से अधिक लक्षण रिकॉर्ड किये जा चुके हैं।

क्या होता है स्पाइक प्रोटीन
इसको ऐसे समझ सकते हैं कि जो वायरस होता है वो एक कवच के अंदर कैद होता है। ये कवच ही वायरस की असली ताकत होती है। क्योंकि कवच के टूटते ही वायरस कमज़ोर पड़ जाता है। इसलिए आमतौर पर अल्कोहल से सेनिटाइज करने या साबुन से हाथ धोने के लिए कहा जाता है क्योंकि इन दोनों प्रक्रिया से वायरस का ये कवच टूट जाता है। ये कवच तीन प्रोटीन से मिलकर बना होता है, जिसमें मेम्ब्रेन प्रोटीन, एनवेलप प्रोटीन और स्पाईक प्रोटीन शामिल होते हैं। स्पाइक प्रोटीन ही वायरस को होस्ट सेल में घुसकर संक्रमण फैलाने में मदद करता है। इसी के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘जिज्ञासा का विषय’ और ‘वैश्विक चिंता का वेरिएंट’ कौन सा हो सकता है वो तय करता है।

‘जिज्ञासा का विषय’ और ‘वैश्विक चिंता का वेरियंट’
विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिसाब से ‘जिज्ञासा का विषय’ वायरस के उस म्यूटेशन के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है जो प्रकोप फैलाने का कारण बनता है और एक देश से कई देशों में जिसकी वजह से महामारी फैल जाती है। वहीं ‘वैश्विक चिंता का वेरिएंट’ वायरस के उस वेरिएंट को कहा जाता है जिसने अपने अंदर खतरनाक लक्षण विकसित कर लिए हैं। जिसके फैलने की क्षमता बढ़ चुकी हो, जिसकी वजह से होने वाली बीमारी ज्यादा घातक हो और जिसकी वजह से जानें ज्यादा जा रही हों. साथ ही जिस पर वैक्सीन और उपचार का असर भी कम हो।

अन्य ‘वैश्विक चिंता के वेरियंट’

यू.के में सितंबर में पहली बार पाया गया बी. 1.1.7 ऐसा ही यूके वेरिएंट था जो वैश्विक चिंता का कारण बना था, ये वेरिएंट बहुत तेजी से पूरे यूरोप में फैल गया था और भारत में भी प्रवेश कर गया था. ये असली कोरोना वायरस से ज्यादा तेजी से फैलता था. इसी तरह पिछले अक्टूबर में पाया गया दक्षिण अफ्रीकन वेरिएंट बी.1.351 ऐसा वेरिएंट था जिसने युवाओं को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया था. विशेषज्ञों का मानना था कि एंटीबॉडी थेरेपी इस वायरस पर काम नहीं कर पा रही थी. इसी तरह बी.1.1248 ब्राजील वेरिएंट पर अभी जांच चल रही है. ये पहली बार दिसंबर में ब्राजील के मानाउस में मिला था. खास बात ये है कि इसके स्पाइक प्रोटीन पर तीन म्यूटेशन पाए गए थे. मानाउस में दूसरी लहर के दौरान दोबारा संक्रमण के पीछे इसे ही वजह माना जा रहा है.

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