आर्मी का दावा: हिम मानव ‘येति’ के पेरों के निशान हिमालय पर देखे गए, जानें

नई दिल्ली। येति यानि हिममानव सिर्फ हिमालय के भारतीय भाग ही नहीं बल्कि नेपाल, भूटान और तिब्बत के इलाकों की किस्से-कहानियों का भी हिस्सा हैं. हालांकि इसे एक मिथकीय चरित्र के तौर पर ही माना जाता रहा है लेकिन भारतीय सेना के इसके पैरों के निशान देखने के दावे के बाद फिर से येति चर्चा के केंद्र में आ गए हैं. हालांकि अगर किस्से-कहानियों की मानें तो वाकई हिमालय में येति होते हैं और इतिहास में इसके कई साक्ष्य भी मिलते हैं।

फिलहाल भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कुछ तस्वीरें शेयर की हैं, जिसमें बर्फ के बीच बड़े-बड़े पांव के निशान देखे जा सकते हैं. इन निशानों को हिममानव ‘येति’ का माना जा रहा है।

सेना की तरफ से जारी ट्वीट में कहा गया है, “पहली बार भारतीय सेना की पर्वतारोहण टीम ने 9 अप्रैल 2019 को मकालू बेस कैंप के नजदीक 32×15 इंच वाले हिममानव ‘येति’ के रहस्यमय पैरों के निशान देखे हैं. यह मायावी हिममानव इससे पहले केवल मकालू-बरून नेशनल पार्क में देखा गया था।

कैसा होता है येति?
येति के बारे में कहा जाता है कि यह विशाल वानर जैसा होता है, जिसके पूरे शरीर में बाल होते हैं और वह इंसानों की तरह चलता है। येति के बारे में प्रचलित है कि यह हिमालय की गुफाओं और कंदराओं में रहता है।

हालांकि कई वैज्ञानिकों का मानना है कि येति एक विशालकाय जीव है, जो बंदर की तरह दिखता है लेकिन इंसानों की तरह दो पैरों पर चल सकता है.

सिकंदर के वक्त से मिलते हैं किस्से
येति के किस्से 326 ईसा पूर्व में भी मिल जाते हैं, जब सिकंदर भारत को जीतने आ पहुंचा था, उसने एक येति को देखने की इच्छा जाहिर की थी क्योंकि उसने येति की कहानियां सुन रखी थीं. हालांकि उसे येति देखने को नहीं मिला. इसके अलावा येति के होने का दावा तब पुख्ता होता है, जब एक ब्रिटिश फोटोग्राफर एरिक शिप्टन ने उसे देखने का वादा किया.

फिर से कैसे शुरू हुई येति की खोज?
येति हिमालयी सभ्यता के हिस्से जैसे हैं. लेकिन जब 1951 में ब्रिटिश खोजी एरिक शिप्टन माउंट एवरेस्ट पर जाने के लिए प्रचलित रास्ते से अलग एक रास्ते की तलाश कर रहे थे तो उन्हें बहुत बड़े-बड़े पैरों के निशान दिखे. उन्होंने इन निशानों की तस्वीरें ले लीं. और यहीं से शुरु हुई, आधुनिक युग में येति के रहस्य की चर्चा.

एरिक ने ये तस्वीरें पश्चिमी एवरेस्ट के मेन लोंग ग्लेशियर पर खींची थीं. पैरों के ये निशान करीब 13 इंच लंबे थे और इसे अब तक हिमालय पर ली गई तस्वीरों में सबसे रोचक तस्वीरों में गिना जाता है (हालांकि अभी भारतीय सेना ने जिन पैरों के निशान देखे हैं वे इससे कहीं ज्यादा बड़े हैं). इसके बाद यह उस दौर का इतना बड़ा मुद्दा बना कि नेपाल की सरकार ने येति खोज के लिए 1950 के दशक में लाइसेंस जारी किए. जाहिर सी बात है, एक भी येति खोजा नहीं जा सका.

जिसके बाद कई लोग यह मानने लगे कि यह कोई साधारण काला भालू रहा होगा लेकिन पैरों के निशान देखकर कई लोग इसे येति ही मानते रहे. इसके बाद से येति को देखने के कई मामले सामने आए और कई खोजियों और शेरपाओं ने पैरों के निशान देखने का दावा किया लेकिन कुछ भी पुख्ता साबित नहीं किया जा सका. एक हिमालयी खोजी ब्रायन बार्ने ने 1959 में अरुण घाटी में येति के पैरों के निशान देखे. जिसके बाद एक इटली के पर्वतारोही रैनोल्ड मेसनर ने तो यह दावा भी कर दिया कि उन्होंने येति को देखा है.


येति के नाम पर बिकते हैं कई प्रॉडक्ट्स
जैसा कि पहले कहा गया येति हिमालय की संस्कृति का हिस्सा है. आप येति के नाम से हिमालय के आस-पास के क्षेत्रों में कई चीजें बिकती हुई देख सकते हैं. वहां आपको याक और येति नाम के होटल मिलेंगे. बल्कि येति एयरलाइंस नेपाल की बेहतरीन एयरलाइंस में से एक है.

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