किसान आंदोलन: बीच का रास्ता निकालने की तैयारी, कई मांगों पर नरम पड़ी सरकार!

नई दिल्ली। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के नेतृत्व में तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधिमंडल की गुरुवार को हुई बैठक भी बेनतीजा रही। लगभग आठ घंटे चली इस बैठक में किसान नेता नए कृषि कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग पर अड़े रहे। किसान आंदोलन को सुलझाने के लिए विज्ञान भवन में हुई चौथे दौर की बैठक भले किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी, लेकिन मांगों को लेकर सरकार का रुख पहले से नरम हुआ है. तीनों कानूनों को लेकर किसानों के तेवर को देखते हुए केंद्र सरकार कई विषयों पर विचार करते हुए बीच का रास्ता निकालने की दिशा में आगे बढ़ गई है। सरकार कानून भले वापस नहीं लेगी, लेकिन किसानों की जिद को देखते हुए कुछ पहलुओं पर नए उपाय करने की तैयारी है।

इन बिंदुओं पर नरम पड़ी सरकार
नए कानून से मंडियों को लेकर उपजी आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार व्यापारियों के रजिस्ट्रेशन की पहल करने की सोच रही है। इनमें एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) को मजबूत करने सहित मंडी प्रणाली, प्रस्तावित निजी मंडियों के साथ टैक्स सिस्टम को आसान बनाने और किसी विवाद की स्थिति में विवाद निपटान के लिए किसानों को हाईकोर्ट में जा सकने की स्वतंत्रता जैसे पहलू शामिल हैं।

सरकार फसल अवशेषों (पराली) को जलाए जाने और बिजली से संबंधित कानून पर अध्यादेश से संबंधित किसानों की चिंताओं पर भी गौर करने के लिए तैयार है।
सरकार ने एमएसपी और खरीद प्रणाली सहित कई प्रस्ताव रखे हैं, जिन पर शनिवार को सरकार के साथ अगली बैठक से पहले किसान संगठनों के साथ चर्चा होगी।

सरकार के मुताबिक, एमएसपी (MSP) पहले की तरह जारी रहेगा. सरकार इस बात पर विचार करेगी कि एमपीएमसी (APMC) सशक्त हो और इसका उपयोग और बढ़े. कांट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर सरकार ने साफ किया है कि किसान की जमीन की लिखा-पढ़ी करार में किसी सूरत में नहीं की जा सकती, फिर भी यदि कोई शंका है तो उसका निवारण करने के लिए सरकार तैयार है।

कानून लागू होने के बाद प्राइवेट मंडी को कृषि कानून के दायरे में लाया जा सकता है। अभी सिर्फ एसडीएम और ट्रिब्यूनल तक जाने की इजाजत है, लेकिन किसानों ने इस मसले को सिविल कोर्ट तक ले जाने की बात कही है। जिसपर अगली बैठक में विचार किया जा सकता है। किसानों की मांग है कि अगर व्यापारी प्राइवेट मंडी में आता है, तो रजिस्ट्रेशन सुविधा होनी चाहिए। सिर्फ पैन कार्ड से काम नहीं चलना चाहिए। सरकार इस पर भी विचार कर सकती है।

अब पांच दिसंबर को दोपहर दो बजे से होने वाली बैठक में किसान संगठनों की ओर से उठाए बिंदुओं पर फिर वार्ता की जाएगी। कृषि मंत्री नरेंद्र को यह बैठक निर्णायक होने की उम्मीद है। हालांकि किसान संगठनों का कहना है कि जब तक तीनों कानून वापस नहीं होते, वे अपने आंदोलन पर डटे रहेंगे।

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