कैसे तलाश लेते हैं हाईटेक उपकरण मलबे में दबे जिंदा लोगों को, जाने इनके बारे में

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क्या आपको मालूम है कि भूकंप के बाद मलबे में जिंदा बचे लोगों को तलाशने में अब ऐसे ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल होता है, जो बहुत सटीक तरीके से बता सकते हैं कि मलबे के अंदर कितने लोग हो सकते हैं और कितने लोग जिंदा हो सकते हैं. अगर कोई अचेत पड़ा है, वो कोई हरकत नहीं कर रहा तभी उपकरण ये बता सकते हैं कि इस मलबे में कोई अचेत स्थिति में जीवित है. भूकंप का सर्च और बचाव अभियान भी बहुत साइंटिफिक तरीके से योजनाबद्ध होकर चलता है.

तुर्की और सीरिया में आए भयंकर भूकंप के बाद काफी बड़ा इलाका मलबे में बदला हुआ है. कई देशों ने अपनी बचाव दल उपकरणों के साथ भेजे हैं. ये सभी दल यहां पर संयुक्त राष्ट्र संघ और स्थानीय नियामक संस्था के साथ क्वार्डिनेशन में बचाव अभियान चला रहे हैं. अब भूकंप में बचाव के काम में बहुत ही उन्नत उपकरणों का इस्तेमाल होता है.जानते हैं कि ये उपकरण क्या हैं और बचाव अभियान कैसे शुरू होता है.

जब बचाव अभियान शुरू होता है तो दल के लोग ये अंदाज लगाते हैं कि किस बिल्डिंग के मलबे में ज्यादा लोग फंसे हो सकते हैं. उसमें वो देखते हैं कि क्या उस ध्वस्त बिल्डिंग में कंक्रीट बीम या अन्य तरीके से जगह हैं या हवा आने आने का रास्ता है.

बचाव कार्यकर्ता उसमें जाने के रास्ते और उसमें आने वाली आवाजों को भी देखते-सुनते हैं. वो बिल्डिंग जो पूरी तरह धराशाई हो जाती हैं, उन्हें सबसे बाद में सर्च किया जाता है लेकिन जो बिल्डिंग पूरी तरह ध्वस्त नहीं होती, उसमें आपरेशन पहले शुरू होता है. बचाव अभियान में लगे होते इस तरह के कामों में पूरी तरह दक्ष होते हैं.

मलबे को हटाने या टूटी दीवारों या छतों को हटाने के लिए भारी मशीनरी का इस्तेमाल होता है जिसमें डिगर्स और हाइड्रॉलिक जैक भी होते हैं. कंक्रीट के बड़े स्लैब डिगर्स से हटाए जाते हैं, उसे हटाकर देखा जाता है कि क्या इसके अंदर कोई व्यक्ति मौजूद हो सकता है. बड़े कंक्रीट के टुकड़ों को हटाकर अंदर वीडियो उपकरण भी डाले जाते हैं ताकि अंदर का जायजा लिया जा सके.

विशेषज्ञ इसमें उन खास साउंड उपकरणों की भी मदद लेते हैं, जिससे कुछ मीटर दूर की हल्की हल्की आवाज का भी पता लगाया जा सके.

ये नासा द्वारा भूकंप के लिए बनाया गया खास उपकरण फाइंडर है, जिसमें हार्टबीट, मलबे के अंदर की मानवीय गरमी और आवाज के जरिए ये पता लगाती है कि मलबे के अंदर कितने लोग हैं.
इनमें कॉर्बन डाइऑक्साइड डिटेक्टेटर्स का इस्तेमाल भी होता है ताकि उसके जरिए अंदर जिंदा बचे उन लोगों का अंदाज लगाया जाता है जो अचेत स्थिति में हैं. ये खोजी उपकरण उन जगहों पर लगाए जाते हैं, जहां से लोगों की सांसों के बाद छोड़ी जाती हवा को पकड़ सकें, इससे अंदाज हो जाता है कि अंदर कितने लोग हो सकते हैं और कितने जिंदा स्थिति में हो सकते हैं.

अगर कोई शख्स मलबे में जिंदा तो है लेकिन अचेत हो चुका है. ना कोई हरकत कर सकता है और ना ही आवाज लगा सकता है तो अब ऐसे थर्मल इमेजिंग उपकरण हैं जो बता देंगे अंदर कौन किस स्थिति में है.

इन उपकरणों से मलबे के अंदर के लोगों को सीधे नहीं लगाया जाता बल्कि इन्हें लगाकर उनके शरीर से निकलती गर्म के जरिए उपकरण के सिगनल्स और हरकतों पर नजर रखी जाती है. अगर कोई मलबे के अंदर जिंदा है तो उसके शरीर की गर्मी इन थर्मल इमेजिंग उपकरणों को बता देगी कि अंदर कोई है.

कॉर्बन डाइऑक्साइड डिटेक्टेटर्स भूकंप में खासतौर पर इस्तेमाल में आते हैं. अंदर मलबे में अगर किसी की सांसें चल रही हैं तो उसके शरीर से निकलने वाली कॉर्बन डाई ऑक्साइड से वो पता लगा लेते हैं कि अंदर कोई जिंदा है.

ट्रेंड डॉग गंध के जरिए बता देते हैं कि मलबे के अंदर कोई है या नहीं. ये कुत्ते इसी काम में दक्ष किए जाते हैं. इसी वजह से कई देशों की टीमें डॉग स्क्वॉड के साथ वहां पहुंचकर बचाव में लगी है. कुत्ते ये काम बहुत तेजी से करते हैं और तेजी से प्रभावित इलाके को कवर करते हैं इससे बचाव और खोज अभियान में खासी मदद ही नहीं मिलती बल्कि उनकी गति भी बढ़ जाती है. मैक्सिको के कुत्ते इस काम में माहिर माने जाते हैं. उन्हें तुर्की भेजा गया है.

जब एक बार मशीनों के जरिए भारी-भरकम और लंबे स्लैब्स और संरचना हटा दी जाती हैं तो बचाव दल के लोग अपने हाथों का इस्तेमाल करते हैं. वो तब छोटे उपकरणों जैसे हैमर्स, पिकसेज और शोवेल्स का प्रयोग करते हैं. वो चैनशॉ, डिस्क कटर्स और रबर कटर्स जैसी चीजों को भी यूज में लाते हैं. हां बचाव दल के लोग जरूर प्रोटेक्विट उपकरणों और किट पहनकर ही बचाव के काम में उतरते हैं. उसमें हैलमेट और हाथों में ग्लोव्स बहुत जरूरी होता है.

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