क्या मोदी सरकार में बिहार विधान सभा चुनाव से पहले शामिल होने जा रही है JDU?

पटना. नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ पूरा विपक्ष जहां लगातार बीजेपी (BJP) पर हमलावर है, वहीं अब वह नई रणनीति पर चलने का मन बना रही है. दरअसल वह एनडीए (NDA) में शामिल अपने सहयोगियों से संबंधों को नई मजबूती प्रदान करने की सोच रही है. ऐसी ही खबरों के बीच बिहार की सियासी गलियारों में फिर चर्चा में आ गया है कि क्या अब जेडीयू (JDU) केन्द्रीय मंत्रीमंडल में शामिल होगी?

दरअसल इस बात की चर्चा है कि आने वाले कुछ समय में केंद्रीय मंत्रिपरिषद का विस्तार हो सकता है. ऐसे में इस विस्तार में इस बार जेडीयू भी शामिल हो सकती है. सूत्रों से खबर है कि जेडीयू के सांसद ललन सिंह और सीएम नीतीश कुमार के करीबी आरसीपी सिंह मोदी मंत्रिपरिषद का हिस्सा हो सकते हैं.

बीजेपी सूत्रों की मानें तो अगर जेडीयू केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होगी तो वे इसका स्वागत करेंगे. खुलकर तो नहीं, लेकिन इशारों में बीजेपी के कई नेताओं ने कहना भी शुरू कर दिया है कि एनडीए की मजबूती के लिए जेडीयू को अब केंद्र सरकार में शामिल हो जाना चाहिए.

गौरतलब है कि सीएए मुद्दे पर जिस तरह से जेडीयू ने बीजेपी का समर्थन किया उससे एक बात साबित हो गई कि दोनों पार्टियों के बीच संबंध मधुर हैं. हालांकि इसमें तब ट्विस्ट आ गया जब प्रशांत किशोर ने इस मुद्दे को लेकर सीएम नीतीश कुमार के स्टैंड को कठघरे में खड़ा कर दिया.

इस मुद्दे पर जेडीयू में भी स्पष्ट विभाजन दिखा और पार्टी का एक धड़ा प्रशांत किशोर की बातों से बिल्कुल ही असहमत दिखता है. पीके से असहमति वाले नामों में सबसे आगे आरसीपी सिंह का नाम भी है जो केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल होने के बड़े दावेदार कहे जाते हैं. हालांकि सियासी गलियारों में इसके साथ ही ये चर्चा आम है कि अगर जेडीयू केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल होगी तो वह अपनी शर्तों पर होगी.

दरअसल कहा जा रहा है कि बिहार विधान सभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी-जेडीयू के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अभी अंतिम सहमति नहीं बनी है. चर्चा ये है कि जेडीयू खुद को बड़े भाई की भूमिका में रखना चाहती है जबकि बीजेपी बराबरी का फॉर्मूला चाह रही है. इन सब के बीच एलजेपी भी अपनी बड़ी दावेदारी पेश कर रही है. ऐसे में अभी बीजेपी के लिए चुनौतियां बाकी हैं.

गौरतलब है कि ट्रिपल तलाक, अनुच्छेद 370 और एनआरसी जैसे मुद्दो पर मुखर रही जेडीयू-बीजेपी के बीच मतभेद तो जगजाहिर हैं. लेकिन, बीते अक्टूबर महीने में दिए गए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान ने कि बिहार में एनडीए सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगा, गठबंधन की मजबूती के तौर पर देखा गया. वहीं जेडीयू ने सीएए पर समर्थन कर इन चर्चाओं को और बल दे दिया.

जाहिर है इन्हीं सियासी रणनीतियों के तहत ये भी बड़ा तथ्य है कि जेडीयू अगर किसी के साथ सबसे अधिक सहज दिखती है तो वह बीजेपी है. बीते दिनों नागरिकता कानून के साथ-साथ आर्थिक स्थिति पर बढ़ते असंतोष की पृष्ठभूमि में  खिलाफ जेडीयू के साथ संबंध मजबूत करना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. ऐसे मे सियासी चर्चा यही है कि जेडीयू जल्दी ही मोदी सरकार का हिस्सा हो सकती है.

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