ब्रज भ्रमण: “किशोर वन” गाता है भक्ति की गाथा

वृंदावन की कुंज गली में छिपा एक वन हरित्रयी बनाता है मध्यकाल में भक्ति की जो त्रिवेणी निज धाम में बही, उसकी तीसरी धारा किशोर वन से निकली। इस शांत और निर्जन तपोवन ने व्यास जी की रसोपासना को चिरंतन रखा है। लता-पताएं उनकी भक्ति गाथा गा रही हैं। इनमें उस रसिक के भाव बसते हैं। नित्य धाम में व्यास जी की सगी संबंधी यहीं हैं। उन्हीं की रस लालसा को रटती रहती हैं, “जनम दीजिए मोहि श्री वृंदावन वास” । श्यामा श्याम रूपी वृक्ष वल्लरियों की छांव में व्यास जी की आत्मा सुकून पा रही है।
किशोर वन हरित्रयी (स्वामीहरिदास, हित हरिवंश जी वहरिराम व्यास) के तीसरे स्तंभ का धाम है। विशाखा सखी के अवतार कहे जाने वाले हरिराम व्यास जी ने यहां युगल सरकार गोविंद किशोर की साधना की और यहीं ब्रजरज में लीन हो गए वन में उनकी समाधि है।
लोई बाजार में डाकखाने वाली गली के पास स्थित किशोर वन के आसपास का क्षेत्र व्यास घेरा कहलाता है। वन में युगल किशोर जी का मंदिर है। हरिराम व्यास की 13 वीं पीढ़ी किशोर वनको सहेज रही है। मंदिर के सेवायत गोविंद किशोर गोस्वामी पिछले 46साल से यहीं रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि “हरिराम व्यास जी ओरछा नरेश मधुकर शाह के राज पुरोहित थे।
सब कुछ छोड़ वृंदावन आकर बस गए और किशोर वन को अपनी भजन स्थली बनाया।यहीं उन्होंने युगल किशोर जी का प्राकट्य किया था। विशाखा सखी के भाव से राधाकृष्ण की लीलाएं प्रकट की जिन्हें उन्होंने व्यास वाणी में लिखा। जब मैं यहां आया था तो इस वन की देखरेख करने वाला कोई नहीं था। हमने इसका प्रचार नहीं किया क्योंकि इसे व्यवसायिक नहीं बनाना चाहते।वन में मुत्ता लता हैं। खंडिहार के पेड़ हैं जिन पर मोती जैसे फूल आते हैं। यहां प्राचीन रास मंडल भी है।” किशोर वन के पास व्यास घेरा में प्राचीन युगल किशोर मंदिर का खंडहर देख इसके वैभव का आभास होता है। इस मंदिर का निर्माण मधुकर शाह ने कराया था। राज विप्लव के समय श्री अन्यान्य श्रीविग्रहों की भांति युगल किशोर जी ब्रज के बाहर पन्ना भेज दिए गए। बाद में ओरछा नरेश वीर सिंह ने व्यास जी की भजन स्थली ।किशोर वन में नवीन मंदिर का निर्माण कराकर युगल किशोर जी के प्रतिभू विग्रह पथराई।
व्यास जी

काहू के बल भज कौ, काहू के आचार, व्यास भरोसे कुंवरि के सोवत पांव पसार।रसिकवर हरिराम व्यास जी का जन्म बुंदेलखंड की राजधानी ओरछा में हुआ था। काशी में विद्वानों को शास्तार्थ में पराजित कर व्यास जी की उपाधि पाई। रात्रि में एक साधु स्वपन दिया कि विद्या की पूर्णता प्राप्त करने योग्य पदार्थ को जानकर उसे प्राप्त करने के प्रश्न में है, दूसरो को विवाद में हराकर अहंकार बड़ा में नहीं । भागवत भक्ति न मिली तो विद्या व्यर्थ है। हरिराम जी काशी से ओरछा आए। वहां उन्हें महाप्रभु हित हरिवंश जी के शिष्य जवलदास जी का सत्संग लाभ प्राप्त हुआ। उसके बाद घर द्वार छोड़कर सन् 1534 में वृंदावन आये। व्यास जी हित हरिवंश जी को अपना सद्गुरू मानते थे। सन् 1563 को उन्होंने युगल किशोर जी का प्राकटय किया ! वह रागानुगा भक्ति से अपने आराध्य को रिझाते थे। सन् 1612 में उन्होंने निकुंज प्रवेश किया। ओटा नरेश वीर सिंह बुदेला जे किकेट वज में उनकी समाधि बनवाई|

सगे संबंधियों से मिल लेने दो
राजा मधुकर शाह हरिराम जी को वृंदावन से लियाने आए। उन्होंने कहा, एक दिन को ओरछा चलो पर हरिराम जी
ने वृंदावन से बाहर न जाने का नियम बना लिया था। जब राजा के कर्मचारी बलपूर्वक उन्हें पालकी में बिठाने लगे तो वह
बोले,मुझे अपने सगे संबंधियों से मिल लेने दो। पालकी से उतरकर एक-एक कदंब, तमाल से काले शिलजे लगा रोते हुए बोले, तुम मेरा त्याग क्यों करते हो। मुझे मत त्यागो ।

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