चलो,टिकरी का सन्नाटा तोड़ें

प्रिया प्रीतम का निकेतन राजस्थान की भक्ति और कला के रंगों से निखरा है। राजे रजवाड़ों की रानियों की राधा माधव से गहरी प्रीति रही है। ठाकुर जी की सेवा के लिए उन्होंने यहां देवालयों की स्थापना कराई है। राज घरानों का शाही दौर खत्म होते ही उनकी धरोहरें भी सूनी हो गईं। रह गए रानियों के नाम संग जुड़े ठाकुर और इमारत। यमुना तट पर टिकारी वाला मंदिर इंद्रजीत कुंवरि का जश लिए खामोश खड़ा है। पत्थरों में राजस्थानी कला के रंग भरे हैं। पत्थरों में इन्हें राजस्थानी कला रंग भरे हैं। गर्भगृह में राधा इंद्रकिशोर विराजे हैं। चलो, टिकारी के सन्नाटे को तोड़ते हैं।

बादामी प्रस्तर से निर्मित टिकारी वाला मंदिर का मुख्य द्वार कला व सुंदर उदाहरण है। दोनों ओर कुंभ कलश हैं। उनके नीचे मध्य में गणपति व रंभाओं की मूर्तियां शोभायमान हैं। द्वार पर बैठा चौकीदार कैमरा देख टोकने लगता है। बहुत समझाने पर अंदर प्रवेश मिलता है। ऊंची कुर्सी पर बने मंदिर के शिखर पर सुंदर कलश सजाए गए हैं। जगमोहन की पच्चीकारी देखने लायक है। मध्य स्थित फव्वारा न जाने कब से टूटा पड़ा है। गर्भगृह में ताला जड़ा देख जब चौकीदार को टोंका तो बोला, “पुजारी जी कहीं बाहर निकल गए हैं।” जाल में राधा इंद्र किशोर की अनूप झांकी निरखी।

इतिहास

टिकारी के धनाढ्य ब्राह्मण जमींदार राजा हेतुराम की विधवा रानी इंद्रजीत कुंवरि ने ठाकुर सेवा और भजन करने के लिए सन् 1870 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। निंबार्क पीठाधीश्वर आचार्य श्री गोपीश्वर शरण देवाचार्य ने मंदिर का शिलान्यास किया था। मंदिर के निकट टिकारी वाला घाट है जिसका निर्माण रानी विद्यावती कुंवरि ने सन् 1883 में कराया गया था। इसी काल में नारायण स्वामी मंदिर में रासलीला कराया करते थे पर काल के प्रभाव में सब समाप्त हो गया।

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