महाराष्‍ट्र में भी हरियाणा की तरह 24 घंटे में पलट देंगे बाजी चाणक्‍य अमित शाह, शिवसेना अपने ही पैर पर मार रही कुल्हाड़ी

बेंगलुरु। महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम आने के 14 दिन बाद भी सरकार बनाने को लेकर पशोपेश की स्थिति कायम है। भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना को मिले स्पष्ट जानदेश के बावजूद मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही रार बरकरार है। शिवसेना बीजेपी के 50-50 फॉर्मूले को बीजेपी कोई तवज्जो नहीं दे रही है। वहीं बीजेपी के बिना सरकार बनाने का दावा करने वाली शिवसेना को एनसीपी सुप्रीमो ने झटका दे दिया है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने साफ कर दिया है कि वह विपक्ष में ही बैठेगे। ऐसे में अटकलें लगायी जा रही है कि ऐसी स्थिति में जल्द ही महाराष्‍ट्र में राष्‍ट्रपति शासन लागू हो सकता हैं। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि महाराष्‍ट्र में सरकार बनाने को लेकर चल रहे नाटक में भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य अमित शाह का कोई भी बयान नहीं आया है।

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इसमें ताज्जुब नहीं है कि वह आने वाले 24 घंटे में हरियाणा की तरह कूटनीतिक चाल चल कर महाराष्‍ट्र में भाजपा की सरकार बनाने का ऐलान कर दें। इसलिए देवेंद्र फडणवीस के सामने सरकार बनाने के रास्ते बंद नहीं हुए हैं। महाराष्ट्र में सरकार गठन के कई फॉर्मूले हैं, जिनके तहत देवेंद्र फडणवीस एक बार फिर सरकार बनाने में सफल हो सकते हैं।

बता दें हरियाणा चुनाव के नतीजों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत ना मिलने के बाद त्रिशंकु विधानसभा की अटकलों के बीच भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने महज 24 घंटों के भीतर प्रदेश की राजनीति के सारे समीकरण बदल दिए थे। अमित शाह ने दिल्ली में जननायक जनता पार्टी के अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला से मुलाकात की और इस मुलाकात के ठीक बाद हरियाणा में भाजपा-जेजेपी के गठबंधन की सरकार बनाने का ऐलान कर दिया। इससे पहले कयास लगाए जा रहे थे कि हरियाणा में भाजपा की वापसी में जेजेपी ही सबसे बड़ा रोड़ा बन सकती है और कांग्रेस दुष्यंत चौटाला को साथ लेकर प्रदेश की कुर्सी की तरफ कदम बढ़ा सकती है। लेकिन, भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने एक खास प्लानिंग से हरियाणा का पूरा गेम ही पलट डाला।

दरअसल, हरियाणा में भाजपा 40 सीटें पाकर बहुमत के आंकड़े से 6 सीट दूर थी। कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का था, जिसे 31 सीटें मिलीं। यानी दोनों पार्टियां अपने दम पर सरकार बनाने की हालत में नहीं थी। यहां किंगमेकर की भूमिका में जेजेपी के दुष्यंत चौटाला उभरे, जिनके खाते में 10 सीटें गईं। इसी उधेड़बुन के बीच हरियाणा की सिरसा विधानसभा सीट से जीते गोपाल कांडा ने ऐलान कर दिया कि उनका और उनके साथ बाकी 6 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भाजपा के लिए हैं और खबरें आने लगीं कि भाजपा निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर सरकार बना लेगी। खबर यह भी आई कि निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर मनोहर लाल खट्टर शनिवार सुबह सीएम पद की शपथ ले सकते हैं।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है। इसके बावजूद शिवसेना ने 50-50 फॉर्मूले की शर्त रखकर मामले को अधर में लटका दिया है। शिवसेना दोनों पार्टियों के लिए ढाई-ढाई साल के लिए सीएम पद की मांग कर रही है, जिसके लिए बीजेपी तैयार नहीं है. इसी के चलते महाराष्ट्र में सरकार गठन नहीं हो सका। देवेंद्र फडणवीस ने दावा किया कि अगले पांच साल राज्य की बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार में वही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। अगर शिवसेना मुख्‍यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर अड़ी रही और इस पर भी नहीं मानी तो भाजपा अपने प्‍लान बी के तहत देवेन्‍द् फडणवीज को मुख्‍यमंत्री बनाते हुए महाराष्‍ट्र में जोड़ तोड़ की राजनीति करके भाजपा की सरकार बनाने की घोषणा कर देंगी।

जोड़ तोड़ करके भाजपा बना सकती है सरकार

याद रहें कि महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद शिवसेना के 50:50 की रट के बीच बीजेपी महाराष्ट्र की विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें देवेंद्र फडणवीस को एक बार फिर से विधायक दल का नेता चुना गया था। इसी बीच निर्दलीय विधायक रवि राणा ने दावा किया था कि यदि भाजपा, शिवसेना के बिना सरकार बनाती है तो शिवसेना के करीब 25 विधायक भाजपा में शामिल हो सकते हैं। महाराष्‍ट्र के अमरावती जिले की बदनेरा सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए रवि राणा भाजपा को समर्थन देने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं।

इतना ही नहीं महाराष्‍ट्र में 15 सीटों पर भाजपा के बागी विधायक चुनकर आए हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में टिकट के बंटवारे के समय टिकट न मिलने पर कई नराज बागी उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत कर आए और जब हरियाणा में भाजपा की सरकार बनाने में संकट बन कर आया तो ये ही निर्दलीय विधायक संकटमोचन बन गए और वहां पर मनोहर खट्टर ने सरकार बनाने की घोषणा कर दी थी। हालांकि बाद में वहां अमित शाह के गेम पटलने के बाद भापजा और जेजेपी की सरकार बनी। गौरतलब है कि 21 अक्टूबर को 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए हुए चुनावों में भाजपा ने 105 सीटों, शिवसेना ने 56, राकांपा ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की। भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए कुल 145 सीटें चाहिए। ऐसे हालात में शिवसेना के बिना भाजपा के लिए सरकार बनाना मुश्किल नहीं दिख रहा है।

2014 के फॉमूले को दोहरा सकती है भाजपा

वहीं यह भी माना जा रहा है कि शिवसेना विरोधी तेवर को देखते हुए बीजेपी 2014 के फॉर्मूले को दोहराने की तैयारी शुरू दी है। बीजेपी का एक हिस्‍सा शिवसेना के बिना सरकार बनाने की राय रख रहा है। विधानसभा के आंकड़ों को देखें तो ये थोड़ा मुश्किल जरूर लगता है, लेकिन यह नामुमकिन भी नहीं है। देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर सरकार बनाएं और विश्वासमत के समय 54 सीटों वाली एनसीपी सदन वॉकआउट कर जाए तो बीजेपी आसानी से अपना बहुमत सिद्ध कर ले जाएगी। दरअसल, एनसीपी ने 2014 में विश्वासमत के समय यही किया था। महाराष्ट्र की कुल 288 सीटें है, जिनमें से एनसीपी के 54 विधायक सदन से वॉकआउट करते हैं तो कुल विधायकों की संख्या 234 रह जाएगी। इस तरह से बहुमत का आकड़ा 118 हो जाएगा, जिसमें बीजेपी 105 विधायकों के साथ अगर 13 निर्दलीय विधायकों का और समर्थन हासिल कर लेती है तो शिवसेना के बिना सरकार बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा। हालांकि एनसीपी ने अभी तक ऐसी कोई मंशा जाहिर नही की है। एनसीपी कभी शिवसेना का साथ देने का संकेत देती है तो कभी विपक्ष में बैठने का। लेकिन राजनीति के धुरंधर नेता कब क्या दांव खेलेगे इसका अंदाजा बड़े बड़े राजनीतिक भी नहीं लगा पाते हैं।

एनसीपी के साथ भी बन सकती है सरकार!

हालांकि एनसीपी अभी भी लगातार विपक्ष में बैठने की बात कह रही है। लेकिन राजनीति विशेषज्ञ अभी भी यही अटकलें लगा रहे है कि शिवसेना ऐसी ही अड़ी रहती है तो महाराष्ट्र में बीजेपी के सामने सरकार गठन का दूसरा रास्ता यह है कि शरद पवार को तैयार कर ले। बीजेपी और एनसीपी मिलकर विधायकों की संख्या 159 का आंकडे तक बहुच जाएगी। इस तरह से बहुमत के आंकड़े ज्यादा दोनों की सीटें होती हैं। हालांकि यह सवाल है कि चुनाव में एक-दूसरे पर जमकर हमला बोलने वाली एनसीपी और बीजेपी क्यों और किन शर्तों पर साथ आ सकते हैं? गौर करने वाली बात ये हैं कि शरद पवार से लेकर एनसीपी के तमाम नेता जांच एजेंसियों के घेरे में हैं। ऐसे में जांच एजेंसियों से राहत के लिए एनसीपी यह कदम उठा सकती है।

शिवसेना हठ करके अपने ही पैर पर मार रही कुल्हाड़ी

शिवसेना मुख्‍यमंत्री पद के लिए अड़ी है जबकि शिवसेना की सीटें भाजपा से लगभग आधी आई हैं। शिवसेना किस तर्क के आधार पर यह मांग कर रही है, यह सभी की समझ से परे है। करीब तीन दशक पुराने शिवसेना-भाजपा गठबंधन के लंबे दौर में 1995 के चुनाव को मानक माना जाए या उसके बाद 2009 तक के किसी भी अन्य विधानसभा चुनाव को, लड़ी गई सीटों पर जीत का प्रतिशत हमेशा भाजपा का ही ज्यादा रहा है। इसके बावजूद 1995 में शिवसेना का मुख्यमंत्री और भाजपा का उपमुख्यमंत्री बना था। वर्ष 1999 के चुनाव के बाद भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे भी ढाई साल के मुख्यमंत्री की ऐसी ही जिद किए बैठे रहे, जैसी आज शिवसेना कर रही है। नतीजा यह रहा कि 11 दिन चले नाटक के बाद मिलकर चुनाव लड़ीं शिवसेना-भाजपा सत्ता से दूर रह गईं, और अलग-अलग चुनाव लड़ीं कांग्रेस राकांपा ने मिलकर ऐसी सरकार बनाई कि अगले 15 वर्षों तक भाजपा-शिवसेना को सत्ता का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ। आज वही गलती एक बार फिर शिवसेना दोहराती दिखाई दे रही है। यह सच है कि चुनाव में भाजपा की सीटें घटी हैं। लेकिन यह भी सच है कि सीटों में यह कमी लोकप्रियता घटने के कारण नहीं, बल्कि लोकप्रियता बढ़ने के कारण आई है। दोनों दलों के बागी उम्मीदवारों की संख्या इस बार अभूतपूर्व रही है।

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