लॉकडाउन: घर जा रहे पैदल मजदूरों को लूटने आए थे, तकलीफ सुनीं और 5 हजार रुपये देकर चले गए!

नई दिल्ली। मुन्ना हरियाणा के रोहतक में रहकर एक फैक्ट्री में काम करता था। दूसरे मजदूरों की तरह मुन्ना भी तीसरे लॉकडाउन में घर के लिए पैदल ही चल पड़ा। तीन बच्चे और पत्नी साथ में थी। आराम करते हुए सफर जारी था. बीच-बीच में पुलिस के डंडे और फटकार भी मिली. लेकिन रास्ते में केले और बिस्किट बांटने वाले पेट भरने की पूरी कोशिश कर रहे थे। मथुरा के पास पत्नी की तबीयत बिगड़ी तो ऐसा लगा कि कोई अनहोनी न हो जाए। लेकिन आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर जो हुआ उससे सफर की आने वाली दुश्वारियां भी कमजोर पड़ गईं।

मुन्ना बताता है, “कुछ लोग आए तो थे हमसे माल-पट्टा झपटने, लेकिन जब हमारे दर्द को सुना तो उल्टे 5 हजार रुपए देकर चले गए। यह उस रकम का हिस्सा थी, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले ही किसी और से छीनी थी।” इसी तरह के कुछ और किस्सों के साथ लखनऊ से पहले किसी गांव में रहने वाले मुन्ना ने खुद पूरी दास्तान के साथ साझा की।

पैदल सफर करने की हिम्मत 10 दिन में आई
पहले लॉकडाउन में तो हमने वो सब खर्च कर डाला जो हमारे पास था. लेकिन दूसरे लॉकडाउन से मुसलमानों के रोजे शुरू हो गए, तो हमारे इलाके में हर शाम हमें एक वक्त का खाना मिलने लगा. जब उन्हें पता चला कि हमारा पूरा परिवार है, तो वो राशन दे जाते थे. लेकिन ऐसे कब तक चलेगा. इधर मैं दूसरे मजदूरों को पैदल घर जाते हुए देख रहा था. तीन छोटे बच्चों और बीमार पत्नी की वजह से मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी. पैदल निकलूं या नहीं यह सोचते-सोचते 8-9 दिन बीत गए. लेकिन 11 मई को अचानक से एक बैग में कुछ कपड़े रखे और साइिकल लेकर परिवार के साथ निकल पड़ा।

नोएडा आते-आते खाना खत्म हो गया
रास्ते में चलते हुए पुलिस के डंडे और उनकी फटकार भी खानी पड़ी. लेकिन चूंकि घर से निकल आया था, तो वापस जा नहीं सकता था. इसलिए कभी खाली पड़े खेत से होकर भी निकलना पड़ा. घर पर जो थोड़ा सा राशन बचा था, वही साथ ले आया था. लेकिन यमुना एक्सप्रेस-वे पर पहुंचते-पहुंचते वह भी खत्म हो गया. लेकिन अच्छी बात यह थी कि वहां कुछ लोग केले और बिस्किट बांट रहे थे.

मथुरा टोल से आगे बिगड़ गई बीवी की तबीयत
बच्चों और बीमार बीवी के चलते हम थोड़ी-थोड़ी दूर चलने के बाद आराम करने के लिए बैठ जाते थे. ऐसे ही हम मथुरा टोल के आगे एक जगह आराम कर रहे थे. तभी बीवी की तबीयत और बिगड़ गई. हाथ-पैर ठंडे पड़ गए. बेहोश भी हो गई. हम भगवान से दुआ करने लगे कि हमें किसी भी अनहोनी से बचा लेना. हम अकेले घर नहीं जाएंगे. बीवी की आंखों पर पानी के छींटे मारे और हाथ-पैरों की मालिश की. राह चलती एक औरत ने भी हमारी मदद की. किसी तरह दो घंटे बाद बीवी कुछ नॉर्मल हो गई. लेकिन फिर भी हमने पूरी रात वहीं आराम किया.

जो कुछ भी हो रहा था वो फिल्मों जैसा था
रात के कोई 1.30 बजे का वक्त था. लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर ही हम सब आराम कर रहे थे. दिन में काफी चल लिए थे तो बीवी को और ज़्यादा नहीं चलाना चाहता था. हमसे थोड़े ही फासले पर चार-पांच लड़के कुछ लोगों से हाथापाई कर रहे थे. जिनके साथ हाथापाई हो रही थी वो खाते-पीते घर के लग रहे थे.

इसके बाद वो लड़के हमारे पास आ गए. तेज आवाज़ में चीखते हुए मुझसे पूछा- कौन हो और कहां जा रहे हो. क्या है तुम्हारे पास. मैं समझ गया कि यह सामान लूटने आए हैं. मैंने रोते हुए बटन वाला पुराना सा मोबाइल उन्हें दे दिया और कहा- मजदूर आदमी हूं, बस यही है मेरे पास.

मुझे रोता देख उसमें से बड़े वाले लड़के ने मुझसे पूरी बात पूछी. मैंने उसे बताया कि कैसे मैं रोहतक से चला और लखनऊ के पास तक जाना है. बीवी बीमार है और हम भूखे हैं. तभी उसमें से एक बोला- यार मजदूरों की खबर तो बहुत आ रही है टीवी पर. इसी बीच पता नहीं उनमें से एक ने क्या इशारा किया कि दूसरे लड़के ने मेरे हाथ में 500-500 के कई नोट रख दिए. मैंने गिने तो वह पूरे 5 हजार रुपए थे. बोला रास्ते में कुछ खा-पी लेना और अब पैदल नहीं जाना. किसी ट्रक वाले को दो-चार सौ रुपए दे देना. एक ने तो मेरी सबसे छोटी बेटी के सिर पर हाथ भी फेरा था.

इसके बाद तो एक बार भी मेरे दिमाग ने दर्द को महसूस नहीं किया. पूरे रास्ते उन्हीं लोगों की बातें बीवी के साथ होती रहीं और उन लोगों का चेहरा आंखों के सामने घूमता रहा. लखनऊ तक के रास्ते में किसी ट्रक वाले ने हमें नहीं बैठाया, लेकिन उन लड़कों की वजह से रास्ते में बच्चों को खिलाता-पिलाता ले गया.

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