मच्छर इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि इनके कट्टर दुश्मन मेंढक को इंसान खत्म कर रहे हैं

लखनऊ। आपने आखिर बार मेंढ़क को अपने आस-पास कब देखा था आखिर बार मेंढ़क की आवाज ‘टर्र-टर्र’ कब सुनी थी। डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के वाहक मच्छरों और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खाने वाले मेंढक की संख्या कम होती जा रही है। खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग और बढ़ते प्रदूषण में इनकी आवाज अब विलुप्त होने की कगार पर है। मेंढक उभयचर वर्ग का जंतु है जो पानी तथा जमीन पर दोनों जगह रह सकता है। मेढ़क लगभग दुनिया के सभी कोनों में पाए जाते है। बरसात के दौरान मच्छर, मच्छरों के लार्वा, टिड्डे, बीटल्स, कनखजूरा, चींटी, दीमक और मकड़ी बहुतायत में होते हैं। यह मेंढक इन कीटों को खाते है। लेकिन कुछ दशकों से इन पर खतरा मडराने लगा है। “पिछले कुछ दशक में इंसानों के हस्तक्षेप से जलीय जंतुओं पर असर पड़ा है। जलीय जंतुओं के साथ विदेशी प्रजातियों को रखना भी खतरनाक साबित हुआ है। कृषि में कीटनाशकों के प्रयोग भी मेढ़क जैसे उभयचर जंतुओं की मौत का एक बड़ा कारण है।” ऐसा बताते हैं, पुणे के आबासाहेब गरवारे महाविद्यालय में जीव विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और हेड डॉ आनंद पाध्ये। डॉ आनंद पाध्ये आगे बताते हें,”काइटरिजियोमायकोसिस नामक का घातक फंगल इन्फेक्शन देश में फैल गया, जो मेंढ़कों को कम करने में बड़ा खतरनाक साबित हुआ। नदियों, झीलों और महासागरों में बढ़ते प्रदूषण, जलीय जंतुओं के रहने वाले स्थान पर इंसानों के दखल, उसे खेत में बदलना, ऐसी जगह से सड़क और पुलों का निर्माण करना भी इन जलीय जंतुओं के लिए खतरा बना है। सामान्यता, पिछले कुछ दशकों में उभयचरों के की कमी, उनके घरों पर इंसानों का दखल ही है।” यह भी पढ़ें- इस आदमी ने अकेले रेगिस्तान में बनाया 1360 एकड़ का जंगल, जहां रहते हैं हजारों वन्य जीव मेढ़क के शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। यह ठंड से बचने के लिए पोखर आदि की निचली सतह की मिट्टी लगभग दो फुट की गहराई तक खोदकर उसी में बिना कुछ खाए रहता है। मेंढक के चार पैर होते हैं पिछले दो पैर अगले पैरों से बड़े होतें हैं, जिसके कारण यह लम्बी उछाल लेता है। अगले पैरों में चार-चार तथा पिछले पैरों में पांच-पांच झिल्लीदार उंगलिया होतीं हैं, जो इसे तैरने में सहायता करती हैं। जमीन और पानी में रहने वाले जानवरों की प्रजातियां तेजी से खत्म हो रही हैं। पिछले कई वर्षों दलदली भूमि में रहने वाले जीव-जंतुओं पर काम कर रहे टर्टल रेस्क्यू स्पेशलिस्ट डॉ शैलेंद्र सिंह, बताते हैं, “मेढ़क पर्यावरण संतुलन की अहम कड़ी है। मेढ़क कई प्रकार के कीट पंतगों को खाकर बीमारियों से रक्षा करता है। उत्तर प्रदेश में 12 प्रजाति के मेंढ़क है , जिसमें से बुलफ्राग ही दिखता है। इन जीवों की घटती संख्या का की वजह प्रदूषित पानी में फफूदीं से होने वाली बीमारियां हैं। दलदली भूमि में रहने वाले में ” ‘जल-थलचर’ जानवरों की में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। अब तब मेढ़कों की करीब 5 हजार से अधिक प्रजातियां पहचानी जा चुकी है। सबसे छोटा मेढ़क 9.8 मिलीमीटर का है। मेढ़क अपनी लंबाई से 20 गुना लंबी छलांग लगा सकते है। नर मेढ़क मादा मेढ़क से आकार में छोटे होते है। मेंढ़क अपनी त्वचा के द्वारा पानी पीते है।

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