पाकिस्तान गधों की आबादी वाला तीसरा सबसे बड़ा देश बना, क्या है इसका चीन से कनेक्शन

नई दिल्ली। पहले से ही खस्ताहाल चल रहे पाकिस्तान में कोरोना से और मंदी आ गई। इस बीच उसकी अर्थव्यवस्था को अब गधों का सहारा मिल रहा है। आर्थिक सर्वे 2020-21 में पाकिस्तान सरकार ने बताया कि उनके यहां गधों की संख्या में 3 लाख की बढ़त हुई। लेकिन गधों से भला इकनॉमी को मदद कैसे मिलेगी? इसका जबाव है चीनी पारंपरिक चिकित्सा। चीन में मेडिकल वजहों से हर साल पाकिस्तान से भारी संख्या में गधे खरीदे जाते हैं।

सर्वेक्षण के दौरान पाया गया कि पाकिस्तान में बीते दशकभर से किसी दूसरे पशु की संख्या में खास इजाफा नहीं हुआ, जबकि गधों की संख्या लगातार बढ़ी. अब लगभग 56 लाख आबादी के साथ ये देश गधों की आबादी वाला तीसरा सबसे बड़ा देश हो चुका है। बता दें कि पहला नंबर इथियोपिया का है, जहां साढ़े 8 लाख से ज्यादा गधे हैं। जिसके बाद चीन आता है। वहीं भारत गधों की आबादी में 25 नंबर पर खड़ा है। ये आंकड़े ‘ब्लू मार्बल सिटिजन’ वेबसाइट से लिए गए हैं, जो कि पशु-आबादी पर नजर रखती है।

एक समझौते के तहत पाकिस्तान चीन को हर साल 80 हजार गधे भेजता है, जिसके बदले उसे मोटी कीमत मिलती है. यहां तक कि गधों की संख्या और बढ़े, इसके लिए चीन की कंपनियों ने पाकिस्तान में भारी इनवेस्टमेंट किया है। साथ ही पाकिस्तान में गधों के इलाज के लिए अलग से अस्पताल भी बने हैं ताकि उनकी खाल और मांस स्वस्थ रह सके।

ट्रेडिशनल दवाओं पर काफी यकीन करने वाले चीन में गधे के मांस से दवा बनाई जाती है, जो काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा गधे की खाल के अलग इस्तेमाल हैं, जिसकी कीमत पाकिस्तान में लगभग 20 हजार रुपए है, जो चीन पहुंचते तक कई गुना हो जाती है।

गधों के चमड़े से बनने वाले जिलेटिन यानी गोंदनुमा पदार्थ से चीन में एजियाओ (ejiao) नाम की दवा बनाई जाती है. ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन (TCM) के तहत आने वाली ये दवा शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दी जाती है. इसके अलावा जोड़ों के दर्द में भी ये कारगर दवा मानी जाती है. रिप्रोडक्टिव समस्या में भी गधे की चमड़ी से बना जिलेटिन दवा की तरह लेते हैं और साथ में गधे का मांस भी खाया जाता है।

TCM का कारोबार लगभग 130 बिलियन डॉलर का माना जाता है. TCM के तहत आने वाली दूसरी दवाएं भी जानवरों से तैयार होती हैं. दावा किया जाता है कि सांप, बिच्छू, मकड़ी और कॉक्रोच जैसे जीव-जंतुओं से बनने वाली इन दवाओं से कैंसर, स्ट्रोक, पर्किंसन, हार्ट डिसीज और अस्थमा तक का इलाज होता है।

चीन में गधों की डिमांड के कारण कई देश उसे गधों की सप्लाई कर रहे हैं. गधों पर काम करने वाली ब्रिटिश संस्था द डंकी सेंक्च्युरी के अनुसार चीन में हर साल इसी दवा के लिए 50 लाख से ज्यादा गधों की जरूरत होती है. इसी जरूरत को पूरा पाकिस्तान और अफ्रीका जैसे कई देश चीन को गधे भेज रहे हैं। बीते 6 सालों में इसकी जरूरत बढ़ी है और इसके साथ ही गधों की तस्करी भी बढ़ी. चीन में साल 1992 के बाद से गधा पालन उद्योग में कमी आई. इसकी वजह थी यहां लगातार बढ़ता इंडस्ट्रियलाजेशन. इस वजह से खेती और पशुपालन करने वाले भी इंडस्ट्री के काम से जुड़ने लगे और दूसरे पशुओं की तरह गधों की संख्या भी घटने लगी।

china buying donkeys from Pakistan

अब इस मामले में ये देश पूरी तरह से दूसरे देशों पर निर्भर है। इन दिनों पाकिस्तान और अफ्रीका के अलावा ब्राजील से भी गधे चीन भेजे जा रहे हैं। अकेले ब्राजील में ही साल 2007 में गधों की आबादी में लगभग 30 फीसदी तक कमी आ गई. माना जा रहा है कि इसके बाद से यहां भारी संख्या में गधों की तस्करी की जाने लगी।

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गधे सिर्फ दवा बनाने के दौरान नहीं मारे जाते। एक से दूसरे देश की कई दिनों के समुद्री सफर के दौरान 20 फीसदी से ज्यादा गधों की मौत हो जाती है। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक चीन की मांग को पूरा करने के लिए गर्भवती गधे, और यहां तक कि बच्चे गधे और बीमार जानवरों को भी सीमा पार कराई जा रही है।

गधों के प्रजनन की दर दूसरे जानवरों से कम है और गधे के बच्चे को मैच्योर होने और प्रजनन लायक होने में भी काफी वक्त लगता है। यही वजह है कि इसकी संख्या चीन में बढ़ती दवा की लोकप्रियता के साथ बड़ी तेजी से घटी है।

गधों के साथ हो रही बर्बरता को देखते हुए चीन में ट्रेडिशनल दवाओं पर काम कर रही संस्था रजिस्टर ऑफ चाइनीज हर्बल मेडिसिन ने इसपर रोक लगाने की भी कोशिश की। संस्था का मानना है कि बीफ, पोर्क या चिकन के जिलेटिन को भी दवा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही शाकाहारी लोगों के लिए दवा में पेड़ों का जिलेटिन लिया जा सकता है।

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