छह बीवियों और 54 बच्चों का बोझ नहीं उठा सके पाकिस्तानी अब्बू, करना पड़ा मरते दम तक काम

इस्लामाबाद। पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है, उस पर ‘जनसंख्या विस्फोट’ ने गरीबी में और आटा गीला कर दिया है। अब इन अब्दुल मजीद चच्चा को ही देखिए! इस्लाम में एक से अधिक निकाह करने की आजादी का इन्होंने खूब फायदा उठाया। दो-तीन नहीं, सीधे 6 निकाह किए। इनसे 54 बच्चे जन्मे। लेकिन इतने बड़े परिवार के बावजूद मजीद मियां जिंदगीभर काम की चक्की में पिसते रहे। अब पता चला है कि बुधवार (7 दिसंबर) को वे चल बसे। अब्दुल मजीद की कार्डियक अरेस्ट यानी दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। नोशकी जिले के रहने वाले 75 साल के अब्दुल ट्रक ड्राइवर थे। घर-गृहस्थी का बोझ इतना अधिक था कि उन्हें इस बुढ़ापे में भी ट्रक चलाना पड़ा। उनके बेटे शाह वली के अनुसार, अब्बू मौत से 5 दिन पहले तक ट्रक चला रहे थे।

पाकिस्तान की बढ़ती जनसंख्या सामाजिक आर्थिक विकास में रोड़ा बन रही है। नतीजा यह है कि लोगों को रोजगार तक नसीब नहीं हो पा रहा है। अब्दुल मजीद के बेटे शाह वली ने कहा कि उनके परिवार में कई लोग बेकार बैठे हैं। उनके पिता लंबे समय से बीमार थे, लेकिन पैसा नहीं होने से इलाज नहीं करवाया जा सका। वहीं, पिछले दिनों आई बाढ़ ने रही-सही कसर पूरी कर दी और घर बह गया। परिजन बताते हैं कि अब्दुल मजीद ने ताउम्र ट्रक चलाया। वे हर महीने मुश्किल से 15 से 25 हजार पाकिस्तानी रुपए ही कमा पाते थे। इन पैसों में इतने बड़े परिवार का खर्च कैसे चलता होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। अब्दुल के बेटे शाह 37 साल के हैं। वे भी ट्रक चलाते हैं।

2017 में जब पाकिस्तान की जनगणना कराई गई थी, तब अब्दुल मजीद मीडिया की सुर्खियों में आए थे। पाकिस्तान में 19 साल बाद जनसंख्या गणना हुई थी। उस समय अब्दुल 4 बीवियों और 42 बच्चों के साथ रहते मिले थे। मालूम चला कि 2 बीवियां और 12 बच्चों की मौत हो गई थी। अब्दुल मजीद का 18 साल की उम्र में निकाह हुआ था। उनके 22 बेटे और 20 बेटियां मात्र 7 कमरों के घर में जैसे-तैसे एडजस्ट होते थे। हैरानी की बात यह है कि अब्दुल मजीद को अपने बच्चों से ही बारी-बारी से मिलना पड़ता था। अब्दुल मजीद के ज्यादातर बच्चों की उम्र 15 साल से कम है। सबसे छोटी बेटी 7 साल की बताई जाती है।

2017 में एक इंटरव्यू के दौरान अब्दुल मजीद ने बताया था कि पैसों के अभाव में वे अपने बच्चों को दूध तक नहीं पिला सके। लिहाजा कई बच्चे ठीक से पोषण नहीं हो पाने से मर गए। जहां तक शिक्षा की बात है, मजीद सिर्फ अपने बड़े बेटे को ही ठीक से पढ़ा-लिखा पाए। जैसे-जैसे उम्र ढलती गई, परेशानियां बढ़ती चली गईं।

भारत की बात बता दें। पिछले दिनों असम की पॉलिटिकल पार्टी के प्रेसिडेंट और धुबरी से सांसद बदरुद्दीन अजमलने बयान दिया था कि “वो (हिंदू) 40 साल से पहले गैरकानूनी तरीके से 2-3 बीवियां रखते हैं। 40 साल के बाद उनमें बच्चा पैदा करने की क्षमता कहां रहती है। उनको मुसलमानों के फॉर्मूले को अपनाकर अपने बच्चों की 18-20 साल की उम्र में शादी करा देनी चाहिए।” यानी वे एक से अधिक शादियों के फेवर में थे। हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान पर माफी मांग ली थी। वहीं, भारत में अब समान नागरिकता की दिशा में सरकारें काम कर रही हैं। यानी भारत में रहने वाले हर हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता जहां भी लागू की जाएगी वहां, शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।

 

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