राहुल गांधी दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने की है तैयारी!

नई दिल्ली। राहुल गांधी एक बार फिर से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 87वें अध्यक्ष के रूप में वापसी की तैयारी कर रहे हैं। हाल के दिनों में राहुल ने किसानों के मुद्दे को संसद में जोरशोर से उठाने की कोशिश की। इसके अलावा उन्होंने चीन और दूसरे मुद्दों को भी लगातार उठाया। ये इस बात के संकेत हैं कि युवा गांधी नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक लोकप्रिय चेहरे के बजाय ध्रुवीकरण करने वाले नेता के तौर पर सामने आ रहे हैं। राहुल को ऐसा करने की सलाह साल 2012 में प्रतिष्ठित राजनीतिक सलाहकार स्टेफ़न कटर ने दी थी। वो बराक ओबामा के चुनाव अभियान के मैनेजर थे। उस वक्त उन्होंने कांग्रेस के ऑफिस में राहुल से मुलाकात की थी। दरअसल उन दिनों केंद्र में यूपीए की सरकार थी और राहुल तक उनकी सलाह पर गौर नहीं कर सके थे।

इसके अलावा प्रियंका गांधी वाड्रा भी पार्टी में एक बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में हैं। राहुल-प्रियंका की जोड़ी अब लगभग सोनिया-राहुल के सत्ता समीकरण को बदलने के लिए तैयार है, जो काफी हद तक अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा द्वारा तय किया गया था। राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने पर प्रियंका कई भूमिकाएं निभा सकती हैं। वो काम जो पहले पटेल और वोरा करते थे। यानी प्रियंका गांधी राहुल और पार्टी के बीच एक पुल का काम कर सकती हैं। एक ऐसे मैनेजर की भूमिका जो पार्टी को मुश्किल हालात में काम आए. यानी पार्टी में नंबर दो की भूमिका. कांग्रेस के कई नेताओं को लगता है कि प्रियंका गांधी के ‘मिशन उत्तर प्रदेश’ कैंपेन ने उनकी अहमियित को बढ़ा दिया है. जबकि मीडिया का एक वर्ग ऐसा नहीं मानता है। प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में एक नेता या मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं जताई है।

अगर कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में कामयाबी मिलती है तो फिर प्रियंका गांधी इसका श्रेय उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख अजय कुमार लल्लू को देंगी। ऐसा करके वो ये दिखाना चाहती हैं कि कैसे क्षेत्रीय स्तर पर नींव तैयार की जा सकती है और उसका फायदा मिल सकता है। कांग्रेस के समकालीन इतिहास के छात्र के रूप में, प्रियंका गांधी अच्छी तरह से जानती हैं कि कांग्रेस के ‘अच्छे पुराने दिन’ को केवल तभी पुनर्जीवित किया जा सकता है, जब अजय लल्लू की तरह दूसरे नेता देश के दूसरे राज्य और जिले में तैयार किए जाएं।

अजय कुमार लल्लू एक मेहनती हिंदी भाषी ओबीसी नेता है. उनकी जमीनी जमीनी स्तर पर अच्छी पकड़ है. पिछले पांच वर्षों में, लल्लू ने आजादी के बाद के यूपीसीसी प्रमुखों की तुलना में अधिक समय जेल में बिताया है.

पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद, AICC संगठनात्मक चुनावों की घोषणा जून और अगस्त 2021 के बीच पूरी होने वाली है. यदि कांग्रेस केरल में अच्छा प्रदर्शन करती है और जीत का हिस्सा बन जाती है. साथ ही तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी गठबंधन की सत्ता बरकरार रहती है तो फिर राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने की मुहिम तेज हो सकती है. लेकिन पांच राज्यों में हारने पर कांग्रेस में बेचैनी बढ़ सकती है.

नए अध्यक्ष का कार्यकाल दिसंबर 2022 तक चलेगा. कांग्रेस संविधान के अनुच्छेद XVIII [H] के अनुसार, एक ‘नियमित अध्यक्ष’ को निर्वाचक मंडल द्वारा चुने जाने की आवश्यकता है, जिसमें AICC प्रतिनिधियों की संख्या लगभग 1300 है. राहुल गांधी दिसंबर 2017 में पांच सालों के लिए AICC के 87 वें अध्यक्ष चुने गए थे. उन्होंने मई 2019 में लोकसभा चुनाव की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था. तब से अंतरिम अंतिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी पार्टी की कमान संभाल रही हैं.

कांग्रेस के नेताओं की नजर उन 23 नेताओं के ग्रुप पर भी टिकी हैं जिन्होंने पिछले साल अगस्त में गांधी परिवार के खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद किए थे. हालांकि कुछ असंतुष्ट नेताओं को दोबारा जिम्मेदारी दे दी गई है. गांधी परिवार को कथित तौर पर पता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे की राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर नियुक्ति से कुछ नेता खुश नहीं हैं. आनंद शर्मा, जो राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता हैं उन्हें इस पद की उम्मीद थी.

सूत्रों का कहना है कि असंतुष्टों ने कांग्रेस के नेता (जो कि LoP भी हैं) के लिए चुनाव लड़ने का मौका गंवा दिया. अगर शर्मा, कपिल सिब्बल और अन्य लोगों ने सोनिया गांधी, जो कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की चेयरपर्सन हैं, से आग्रह किया कि होता कि LoP के लिए सदन में 37 पार्टी सांसदों के बीच चुनाव कराएं, तो उन्हें उनकी मांग पर विचार करना होता. सोनिया गांधी ने शर्मा को खड़गे के डिप्टी के रूप में बनाए रखने का फैसला किया है. शर्मा का कार्यकाल अप्रैल 2022 में समाप्त हो रहा है. माना जा रहा है कि इसके बाद शक्तिसिंह गोहिल ये जिम्मेदारी मिल सकती है.

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