राजस्थान: क्या गहलोत की जीत से भाजपा चेहरा दिखाने लायक नहीं रही?

गहलोत की जीत से भाजपा चेहरा दिखाने लायक नहीं रही
गहलोत की जीत से भाजपा चेहरा दिखाने लायक नहीं रही

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल में राजनीतिक पूंजी अर्जित की है लेकिन कैसे! 14 अगस्त को उन्होंने सफलतापूर्वक विश्वास मत को राज्य विधानसभा में पारित करा लिया और 200 में से 123 वोट हासिल कर अपनी सरकार पर महीने भर से मंडरा रहे खतरे को भी मजबूती से समाप्त कर दिया. उन्होंने खुद को चुनौती दे रहे युवा नेता सचिन पायलट को उनकी हैसियत बताने के साथ पायलट की वापसे के दरवाजे भी खुले रखे. और अंत में उन्होंने अपना महत्व साबित करते हुए खुद को एक चतुर राजनेता और प्रशासक के रूप में स्थापित किया, ऐसी काबिलियत कांग्रेस में बहुत कम नेता रखते हैं. इस बात को सब लोग कहते हैं कि अगर आज की तारीख में राजस्थान में चुनाव होते तो गहलोत पार्टी को एकतरफा जीत दिलाने की काबिलियत रखते हैं.

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एक तथ्य यह भी है कि गहलोत कोविड-19 से बेहतर तरीके निपट रहे हैं और उन्होंने राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग रोककर अपने खिलाफ साजिश कर रहे लोगों में दहशत पैदा कर दी थी. हालांकि भाजपा-पायलट ने उनकी सरकार को गिराने की तब चेष्टा की जब वे पूरी दुनिया की तरह कोविड-19 महामारी से जूझ रहे थे, इससे जनसाधारण में गहलोत के प्रति सहानुभूति जागी जबकि बागियों और भाजपा की स्थिति हास्यास्पद हो गई. गहलोत पहले दिन से कहते चले आ रहे थे कि उनकी सरकार बच जाएगी लेकिन बागियों के समर्पण ने उनका काम और आसान बना दिया.

पूरे संकट के दौरान यानी पायलट की बगावत पर उतरने और सुलह करने तक गहलोत ने सरकार का कामकाज सुचारु रूप से किया. उन्होंने बैठकें की ताकि वित्तीय मुश्किलों के बीच विकास के काम तेजी से चलते रहें. प्रशासन सुचारु रूप से चलाने के लिए उन्होंने पायलट की बगावत से ठीक पहले बड़े पैमाने पर नौकरशाहों के तबादले किए.

उन्होंने 5 जुलाई को प्रमुख सचिव को बदल दिया और कई बेकार अफसरों को कम महत्व के पदों पर तैनात किया. पायलट की बगावत के दौरान गहलोत ने अपने मंत्रियों और विधायकों के साथ समय बिताया. इससे सीएम को उनकी मांगें विस्तार से सुनने का मौका मिला और उनकी मांगों को देखते हुए काम न करने वाले अफसरों को हटाया गया.
हालांकि, पायलट की बगावत के पीछे अपना हाथ होने से लगातार इनकार कर रही भाजपा की इस पूरे प्रकरण में छवि अच्छी नहीं रही. 13 अगस्त को विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने घोषणा की कि पार्टी गहलोत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी लेकिन हार का एहसास होते ही यह विचार त्याग दिया गया. विश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान अपने जवाब में गहलोत ने कहा कि साजिश में भाजपा की भूमिका के बारे में वे काफी कुछ जानते हैं. उन्होंने पहली बार के विधायक और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और सदन में उप नेता राजेंद्र राठौड़ के नामों का संकेत देते हुए बगावत के दौरान इनके गुरुग्राम/दिल्ली में सचिन पायलट से मिलने का जिक्र इशारों में कर दिया. उन्होंने सरकार गिराने की पूरी साजिश का सूत्रधार केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बताया. गहलोत ने फिर कहा कि उनके पास साजिश के टेप रिकॉर्डेड दस्तावेज हैं तथा इन तीनों और भाजपा हाइकमान ने इस सबकी जानकारी से कटारिया को अलग रखा. स्पष्ट है कि चुनाव के रास्ते के बजाय जोड़-तोड़ से सत्ता हथियाने की जुगत में लगी भाजपा को जनता को बहुत कुछ बताना होगा, अपनी धूमिल हुई छवि को तर्कसंगत ठहराना उसके लिए काफी मुश्किल होगा.

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