सावन का पहला सोमवार: कपालेश्वर महादेव मंदिर में नंदी क्यों नहीं हैं शिव के साथ, जानें रोचक कथा

नई दिल्ली। विश्व भर भर में नासिक अपने कुंभ की वजह से मशहूर है लेकिन यहां पर एक शिव मंदिर ऐसा है जिसमें शिव के प्रिय वाहन नंदी उनके साथ मौजूद नहीं हैं। इस मंदिर को लोग कपालेश्वर महादेव मंदिर के रूप में जानते हैं। इसके पीछे कई तरह के कारण सामने आए हैं। लोगों में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं.।सावन महीने के सोमवार में यहां पर शिव जी को जल चढ़ाने के लिए भक्तों की जबरदस्त भीड़ लगती है। हालांकि इस बार कोरोना महामारी की वजह से ये मंदर भक्तों के लिए बंद रहेगा। आइए जानते हैं। क्यों इस मंदिर में भगवान के प्रिय वाहन नंदी उनके साथ नहीं हैं। बात उस समय की है जब ब्रह्म देव के पांच मुख थे। चार मुख तो भगवान की अर्चना करते थे लेकिन एक मुख सदैव बुराई करता था। तब भगवान शिव ने उनके उस मुख को ब्रह्मदेव के शरीर से अलग कर दिया था, जिसकी वजह से भगवान शिव को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था।

बछड़े के रूप में नंदी थे
इस पाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड में घूमे लेकिन उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति का उपाय नहीं मिल सका. जब वह घूमते हुए सोमेश्वर गए तो एक बछड़े द्वारा न केवल भगवान शिव को मुक्ति का उपाय बताया गया बल्कि उनको साथ लेकर गए. बछड़े के रूप में और कोई नहीं नंदी थे. उन्होंने भगवान शिव को गोदावरी के रामकुंड में स्नान करने को कहा. वहां स्नान करते ही भगवान शिव ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके. नंदी की वजह से भगवान शिव ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए।

गोदावरी तट के पास कपालेश्वर महादेव मंदिर स्थित है
इस वजह से भगवान शिव ने उन्हें अपना गुरु माना. चूंकि अब नंदी महादेव के गुरु बन गए इसीलिए उन्होंने इस मंदिर में नंदी को स्वयं के सामने बैठने से मना कर दिया. नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी इलाके में गोदावरी तट के पास कपालेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. पुराणों में कहा गया है कि भगवान शिवजी ने यहां निवास किया था. यह देश में पहला मंदिर है जहां भगवान शिवजी के सामने नंदी नहीं बैठे हैं. यही इसकी विशेषता है।

एक दूसरी कथा के अनुसार
एक दिन वह सोमेश्वर में बैठे थे, तब उनके सामने ही एक गाय और उसका बछड़ा एक ब्राह्मण के घर के सामने खड़ा था. वह ब्राह्मण बछड़े के नाक में रस्सी डालने वाला था. बछड़ा उसके विरोध में था. ब्राह्मण की कृती के विरोध में बछड़ा उसे मारना चाहता था. उस वक्त गाय ने उसे कहा कि बेटे, ऐसा मत करो, तुम्हें ब्रह्म हत्या का पाप लग जाएगा. बछड़े ने उत्तर दिया कि ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति का उपाय मुझे मालूम है. यह संवाद सुन रहे शिव जी के मन में उत्सुकता जागृत हुई. बछ़डे ने नाक में रस्सी डालने के लिए आए ब्राह्मण को अपने सींग से मारा. ब्राह्मण मर गया. ब्रह्म हत्या से बछड़े का अंग काला पड़ गया. उसके बाद बछड़ा निकल पड़ा. शिव जी भी उसके पीछे पीछे चलते गए।

गोदावरी नदी के पास एक टेकरी थी
बछड़ा गोदावरी नदी के रामकुंड में आया. उस ने वहां स्नान किया. उस स्नान से ब्रह्म हत्या के पाप का अंत हो गया. बछड़े को अपना सफेद रंग पुनः मिल गया. उसके बाद शिवजी ने भी रामकुंड में स्नान किया. उन्हें भी ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली. इसी गोदावरी नदी के पास एक टेकरी थी. शिवजी वहां चले गए. उन्हे वहां जाते देख गाय का बछड़ा (नंदी) भी वहां आया. नंदी के कारण ही शिवजी की ब्रह्म हत्या से मुक्ति हुई थी. इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने से मना किया।

नंदी गोदावरी के रामकुंड में ही स्थित हैं
इसी कारण इस मंदिर में नंदी नहीं हैं. ऐसा कहा जाता है की यह नंदी गोदावरी के रामकुंड में ही स्थित हैं. इस मंदिर का बड़ा महत्व है. पुरातन काल में इस टेकरी पर शिवजी की पिंडी थी लेकिन अब वहां एक विशाल मंदिर है. पेशवाओं के कार्यकाल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ. मंदिर की सीढ़ियां उतरते ही सामने गोदावरी नदी बहती नजर आती है. उसी में प्रसिद्ध रामकुंड है. भगवान राम ने भी इसी कुंड में अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था. इसके अलावा इस परिसर में काफी मंदिर हैं।

हरिहर महोत्सव होता है
कपालेश्वर मंदिर के ठीक सामने गोदावरी नदी के पार प्राचीन सुंदर नारायण मंदिर है। साल में एक बार हरिहर महोत्सव होता है। उस वक्त कपालेश्वर और सुंदर नारायण दोनों भगवानों के मुखौटे गोदावरी नदी पर लाए जाते है, वहां उन्हें एक दुसरे से मिलाया जाता है। अभिषेक होता है। इसके अलावा महाशिवरात्री को कपालेश्वर मंदिर में बड़ा उत्सव होता है. सावन के सोमवार को यहां काफी भीड़ रहती है। हालांकि लॉकडाउन की वजह से ये सब फिलहाल बंद है।

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