पेट्रोल डीजल के पैसे कम करने का अब बस यही उपाय

पूरी दुनिया में क्रूड ऑयल की कीमतों में आई तेजी का असर भारत के घरेलू बाजार में साफतौर पर दिखाई दे रहा है। इसकी वजह से सरकार को इसकी कीमत में रिकॉर्ड तेजी करनी पड़ी है। पिछले चार वर्षों में इस बार यह तेजी सबसे अधिक देखने को मिली है। इसका सबसे ज्‍यादा असर आम आदमी पर पड़ रहा है। इंडियन ऑयल ने महानगरों में अपने नॉन ब्रांडेड पेट्रोल की कीमत में करीब 11-13 पैसे की प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। वहीं डीजल में यह बढ़ोतरी 13-14 पैसे प्रति लीटर है। इसके बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73.95 रुपये प्रति लीटर, कोलकाता में पेट्रोल की कीमत 76.66 रुपये प्रति लीटर, मुंबई में 81.8 प्रति लीटर और चेन्‍नई में 76.72 प्रति लीटर हो गई है। वर्ष 2013 के बाद से यह सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। इसके अलावा यदि डीजल की बात करें तो दिल्ली में इसकी कीमत 64.69 रुपए प्रति लीटर, कोलकाता में 67.51 रुपए प्रति लीटर, मुंबई में 69.02 रुपए प्रति लीटर और चेन्‍नई में 68.38 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गई है।

इन सभी के बीच सरकार की मानें तो वह इस पर बराबर नजर बनाए हुए है। सरकार ने आम जन को राहत देने के लिए तत्काल प्रभाव से एक्साइज़ ड्यूटी में बदलाव करने तक की बात कही है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का इस बाबत कहना है कि यदि इसको जीएसटी के दायरे में ले आया जाए तो इसका फायदा ग्राहकों को जरूर मिल सकता है। लेकिन फिलहाल ये जीएसटी के दायरे से बाहर है। बहरहाल जानकार भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हुई तेजी की बड़ी वजह क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल को ही मानते हैं। लेकिन उनका यह भी कहना है कि इनकी कीमतों में अब पहले जैसी गिरावट आना मुश्किल है।

क्रूड ऑयल की कीमत

इस बारे में पत्रकारों से से बात करते हुए इस मामले के विशेषज्ञ नीरज तनेजा का साफ कहना था कि ओपेक देशों के अलावा रूस, ईरान और सऊदी अरब इस बात को तय कर चुके हैं कि क्रूड ऑयल की कीमत को अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में 60 डॉलर से नीचे नहीं लेकर जाना है। उनके मुताबिक तेल और उसकी कीमत पर हमेशा से ही राजनीति हावी रही है। इसके अलावा सऊदी अरब, ईरान और रूस की अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ भी तेल ही है, जिसकी वजह से कीमतें इनके इशारे पर प्रभावित होती हैं। जब क्रूड ऑयल की कीमत कम होती है तो उत्‍पादन को कम कर इसकी कीमतों को प्रभावित किया जाता है। वहीं अब इसकी कीमत 70 डॉलर तक पहुंच चुकी है। बीते चार माह के अंदर ही इसमें काफी उछाल देखा गया है।

आपको यहां पर बता दें कि भारत अपनी जरूरत का करीब 83 फीसद दूसरे देशों से खरीदता है। यही वजह है कि अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ने का खामियाजा हमें उठाना पड़ता है। इसके अलावा ईरान से बढ़ता तनाव और अमेरिका द्वारा लगातार उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाने की कोशिश भी इसकी एक बड़ी वजहों में से एक है। नीरज तेल की बढ़ती कीमतों के पीछे तीसरी वजह पूर्व सरकार के फैसले को भी मानते हैं। उनका कहना है कि पूर्व की मनमोहन सिंह सरकार ने तेल की कीमत को बाजार के हवाले कर दिया था, इससे सरकार का नियंत्रण खत्‍म हो गया था।

कर को कम करना एक उपाय

उनके मुताबिक सरकार के पास बढ़ी तेल की कीमतों को कम करने का एक उपाय इस पर लगने वाले कर को कम करना हो सकता है। आपको बता दें कि तेल की कीमत पर करीब 48 फीसद कर लगता है। इसमें केंद्र सरकार द्वारा एक्‍साइज ड्यूटी और राज्‍य सरकार द्वारा वैट लगाया जाता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि सरकार कर कम ग्राहकों को सीधेतौर पर राहत दे सकती है। हालांकि नीरज मानते हैं कि सरकार तेल का आयात कम नहीं कर सकती है, लिहाजा कर कम करने से सीधेतौर पर उसकी आमदनी पर असर पड़ता है, जिससे अन्‍य चीजें भी प्रभावित होती हैं।

सरकार कर रही इंतजार

यह पूछे जाने पर की क्‍या सरकार ऐसा कदम उठाएगी, तनेजा का कहना था कि वह मानते हैं कि सरकार इस बात का इंतजार कर रही है कि शायद कुछ दिनों में तेल की कीमत 65 डॉलर तक पहुंच जाए। फिलहाल सोमवार को क्रूड ऑयल कीमत 68-69 डॉलर तक पहुंच गई थी। उनका सीधेतौर पर कहना था कि चूंकि तेल उत्‍पादक देशों के संगठन ओपेक के अलावा ईरान और रूस में तेल की कीमतों में गिरावट ने करने के लेकर संधि हो चुकी है, लिहाजा अब पहले की बराबर कीमतें कम नहीं होंगी। आपको यहां पर ये भी बात दें कि भारत सरकार ने 2014 से 2016 के बीच 9 बार एक्साइज ड्यूटी में इज़ाफा किया था लेकिन पिछले साल अक्टूबर में सिर्फ 1 बार 2 रुपए प्रति लीटर टैक्स कम कर दिया था। वहीं अक्टूबर 2017 में एक्साइज़ ड्यूटी कम करने से उसको सालाना आम‍दनी में 26,000 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा था।

दूसरे देश भी इससे प्रभावित

आपको बता दें कि तेल के अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में भाव बढ़ने का खामियाजा सिर्फ भारत को ही नहीं उठाना पड़ रहा है बल्कि कई दूसरे देश भी इससे प्रभावित हैं। दुनिया के कुछ देश तो ऐसे भी हैं जहां पर तेल की घरेलू कीमतें आपकी सोच से कहीं आगे हैं। हालांकि इन देशों की आर्थिक हालत भी कोई ज्‍यादा अच्‍छी नहीं है।

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