मधुकरी कर भूखों को तृप्ति देती है वृंदावन की सुदामा कुटी

वृंदावन के स्वामी गोपी कृष्ण जी से जब यहां के लुप्त होते प्राचीन स्वरूप पर बात की तो उनका कहना था,  दरअसल सब नजरों का फेर है। तुम यहां जो देखना चाहोगी, वहीं देखोगी। यहां आज भी बहुत कुछ अमिट है। तुम्हें भाव मिलेगा, भक्ति मिलेगी, सेवा मिलेगी… ये तुम्हारे ऊपर है तुम क्या देखो। सुदामा कुटी में आकर उन महात्मा की बात अनायास ही जेहन में चली आई। इस कटी में पिछले आठ दशक से सेवा की अखंड ज्योति जल रही है। परमार्थ की बाती समय के साथ बढ़ती ही जाती है। सुदामा कुटी स्वयं मधुकरी कर दूसरों को तृप्त करती है। इसके द्वार पर कोई किसी भी पहर आ जाए, भूखा नहीं जाता। अपने सुदामा बाबा की परंपरा को निभाने के लिए कुटी के साधु-संत दामन पसार कर मधुकरी करने जाते हैं और फिर उसे प्रेम भाव से दूसरों को खिलाते हैं। सुदामा कुटी सही मायने में सेवा का पर्याय है।

वंशीवट क्षेत्र में स्थित इस आश्रम में प्रतिदिन 500-600 लोग भोजन पाते हैं। आश्रम में रहने वाले संत भोजन बनाने व परसने की व्यवस्था संभालते हैं। प्रांगण में स्थित मंदिर में राम दरबार की सुंदर झांकी है। साथ ही सुदामा बाबा द्वारा सेवित रामलला भी विराजमान हैं।

आश्रम महंत भगवानदास कहते हैं कि “सुदामा बाबा जीव सेवा नींव रखी थी। वहीं इस कुटी के संस्थापक थे। एक वर्ष रामबाग में रहने के बाद महाराज जी यमुना किनारे इस स्थान पर कुटी बनाकर भगवद् भजन करने लगे। माधुकरी करना,  प्रसाद बनाना और साधु संतों को खिलाना सुदामा बाबा नित्य नियम था। खुद भूखे रहकर वह दूसरों सेवा करते थे। एक बार मध्यरात्रि में एक महात्मा कुटिया में आए। बाबा ने उन्हें दोपहर रखी रोटी दी। तब महात्मा कहा, तुम अपने संकल्प से मत डिगना, यहां से कोई भूखा नहीं जाएगा।” कुटी में सुबह, दोपहर, शाम तीन समय भोजन बनता है। श्रावण मास में करीब तीन हजार लोग प्रतिदिन प्रसाद पाते हैं। आश्रम में 300 संत रहते हैं। वहीं सारी सेवा संभालते हैं। यहां आज भी माधुकरी की जाती है। गर्मियों में आश्रम के साधु भिक्षाटन को जाते हैं। देश भर में सुदामा कुटी के 20 आश्रम है। अखंड हरिनाम संकीर्तन, राम चरित मानस का अखंड पाठ,  अखंड तीन दीपक सुदामा कुटी की अमूल्य निधि हैं। इसके अलावा नित्य रासलीला व भागवत कथा होती है। कुटी में स्थापित रामानंद पुस्तकालय से ही नाभाजी कृत भक्तमाल का प्रकाशन हुआ। वर्तमान में भी पुस्तक यहीं से प्रकाशित कराई जाती है।

सुदामा बाबा

सन् 1899 में बिहार में जन्मे सुदामा बाबा ने 14 वर्ष की उम्र में दीक्षा ले ली थी। उनके गुरू रामसेवक दास थे। सुदामा बाबा कुछ वर्ष अयोध्या में रहे और सन् 1926 के आसपास वृंदावन आ गए। रामलला को वह अयोध्या से लाए। उन्हीं की छत्र छाया में संत सेवा हुई। 1972 में बड़े रामजी की प्रतिष्ठा हुई| बाबा को कई बार युगल साक्षात्कार हुआ। उन्हीं के कहने पर बाबा ने कुटी में रासलीला आरंभ की। 1 अगस्त 2005 की रात्रि को बाबा ने निकुंज प्रवेश किया।

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