कमाई का नया जरिया, सोलर प्लांट लगाकर उठा सकते हैं ये फायदे

सोलर प्लांट। अब आप अपने घर की छत से भी कमाई कर सकते हैं। आप अपने घर की छत पर सोलर एनर्जी प्लांट के उपकरणों को लगाकर बिजली पैदा कर सकते हैं। इससे आपकी बिजली की जरूरतें पूरी हो सकती हैं जिससे हर महीने आने वाला बिजली का बिल शून्य या कम हो सकता है। एक बार प्लांट लगाने के बाद 25 सालों तक यह काम करता रहता है और लगातार आपकी बचत होती रहती है। केंद्र और राज्य सरकारें सोलर प्लांट्स लगाने के लिए आर्थिक और तकनीकी सहयोग भी दे रही हैं जिसके कारण इसे लगाना अब कम खर्चीला और आसान हो गया है।

कितनी आती है लागत
आज हर घर में बिजली से चलने वाले टीवी, एसी, फ्रिज और पंखे जैसे उपकरण होते ही हैं। इसके कारण चार से पांच सदस्यों के एक सामान्य परिवार में बिजली का बिल प्रतिमाह दो हजार रुपये के आसपास आ जाता है। इस बिल को कम करने के लिए आपको लगभग दो किलोवाट का सोलर एनर्जी सिस्टम अपने छत पर लगवाना पड़ता है।

एक किलोवाट का सिस्टम लगाने के लिए ऑन ग्रिड सिस्टम में 54,000 रुपये और ऑफ ग्रिड सिस्टम में 90,000 रुपये की लागत आती है। इस प्रकार दो किलोवाट के लिए यह लागत 1,08,000 रुपये से 1,80,000 रुपये आ सकती है। लेकिन यह सिस्टम लगाने के लिए केंद्र और राज्यों की तरफ से आर्थिक सहयोग (एक से तीन किलोवाट के लिए 21,600 रुपये) भी दिया जाता है जिससे यह लागत कम हो जाती है।

कैसे काम करता है सिस्टम
सोलर पैनल के सिस्टम तीन तरह के आते हैं- ऑन ग्रिड सिस्टम, ऑफ ग्रिड सिस्टम और हाइब्रिड सिस्टम। ऑन ग्रिड सिस्टम में सोलर पैनल का सिस्टम सीधे बिजली के कनेक्शन से जुड़ा होता है। इस सिस्टम में बैटरी नहीं होती जिससे इसे लगाने की कीमत कम आती है। (लेकिन बैटरी न होने के कारण बिजली आपूर्ति बाधित होने पर इस माध्यम से बिजली उपकरण नहीं चलाये जा सकते, इसलिए यह सिस्टम शहरी क्षेत्र में ज्यादा कारगर है जहां बिजली की लगातार सप्लाई होती रहती है।)

बिजली आपूर्ति के दौरान सिस्टम बिजली पैदा कर वापस ग्रिड को भेजता रहता है। इस तरीके से नियमानुसार आप 80 फीसदी बिजली का बिल कम कर सकते हैं। (नियमों के मुताबिक ऑन ग्रिड सिस्टम में 20 फीसदी बिजली ग्रिड से लेना अनिवार्य है) ऑन ग्रिड सिस्टम में सामान्य मीटर की जगह नेट मीटर लगाया जाता है जो उपभोक्ता के द्वारा उपयोग की गई बिजली और पैदा कर ग्रिड को भेजी गई बिजली का ब्यौरा बताता है।

अगर किसी उपभोक्ता ने 300 यूनिट बिजली का उपभोग किया और उसके सोलर पैनल ने 240 यूनिट बिजली ग्रिड को भेजा तो उसके बिल में सिर्फ शेष 60 यूनिट बिजली का ही बिल (फिक्स चार्ज अतिरिक्त) आता है। उज्जल विकास कम्पनी के सोलर सिस्टम विशेषज्ञ निर्मल श्रीवास्तव ने अमर उजाला को बताया कि बिजली बिल में बचत के द्वारा चार से पांच साल के भीतर सिस्टम लगाने की पूरी कीमत निकल जाती है।  इसके बाद हर महीने की आय लगाई गई रकम का 18 से 20 फीसदी होती है जो किसी भी अन्य बचत के तरीकों से ज्यादा अच्छा होता है।

निर्मल श्रीवास्तव के मुताबिक ऑफ ग्रिड सिस्टम में सोलर पैनल से बनी विद्युत ऊर्जा को घर के अंदर रखी बैटरियों में सहेज लिया जाता है। इसे तुरंत और बाद में बिजली उपकरणों को चलाने में उपयोग किया जा सकता है। इससे आपके घर के बिजली के बिल को शून्य किया जा सकता है जो प्रत्यक्ष तरीके से आपकी बचत करती है, लेकिन इस तरह की एकत्र बिजली को बिजली कम्पनियों को बेचकर पैसा नहीं कमाया जा सकता। बैटरी लाइफ पांच साल के लगभग होती है। उसके बाद बैटरी को बदलने की जरूरत पड़ती है। हाइब्रिड सिस्टम में ऑन ग्रिड और ऑफ ग्रिड दोनों की विशेषताएं शामिल होती हैं।

कितनी जगह चाहिए

एक सामान्य घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए छत के एक कोने के हिस्से में भी सिस्टम लगाया जा सकता है। सामान्य तौर पर एक किलोवाट के लिए 100 स्क्वायर फीट की जगह चाहिए होती है। 200 से 300 वर्ग फुट में एक परिवार की जरूरत भर की पूरी बिजली पैदा हो जाती है। मामूली अतिरिक्त लागत से सोलर पैनल को इस तरह डिजाईन किया जा सकता है कि जिससे सोलर पैनल एक शेड की तरह दिखता है, यानी इसके नीचे बैठकर आप जरूरी काम भी कर सकते हैं और ऊपर सोलर पैनल पर बिजली का निर्माण होता रहेगा।

रेसको प्रोजेक्ट से होती है मोटी कमाई
ऑन ग्रिड सिस्टम या ऑफ ग्रिड सिस्टम घर की बिजली के बिल को कम करने या शून्य करने के काम आ सकता है, लेकिन अगर इसी माध्यम से मोटी कमाई करनी है तो सोलर सिस्टम के व्यापक तरीके को इस्तेमाल करना होता है। इसे तकनीकी भाषा में रेसको प्रोजेक्ट कहा जाता है। इस माध्यम से ज्यादा बड़े क्षेत्र में बड़े सोलर पैनल लगाकर मोटी कमाई की जा सकती है।

कैसे मिलती है आर्थिक मदद
जैसे ही कोई ग्राहक अपने घर पर सोलर पैनल लगाने के लिए संपर्क करता है, कम्पनी के कर्मचारी ग्राहक के घर का दौरा करते हैं। उसकी बिजली की जरूरतों को समझते हैं और उसकी प्रतिमाह बिजली की खपत का अनुमान लगाते हैं। खपत के मुताबिक ग्राहक को जितने किलोवाट के सिस्टम की जरूरत होती है, उसे लगाने की सलाह दी जाती है।

सिस्टम लगाने के लिए शुरूआती लागत ग्राहक की जेब से भरना होता है, लेकिन जब कम्पनी सिस्टम लगाने की सूचना सरकार की वेबसाइट पर अपलोड करती है तो सरकार की तरफ से नियुक्त कोई कर्मचारी सिस्टम को चेक करता है। सिस्टम ठीक लगने पर ग्राहक के बैंक खाते में सीधे सब्सिडी ट्रांसफर कर दी जाती है। सिस्टम लगाने में किसी तरह की त्रुटी होने पर कम्पनी को उसे ठीक करने का आदेश दिया जाता है। इसका कोई चार्ज ग्राहक के ऊपर नहीं आता है।

सफाई करने की भी जरूरत नहीं
इन उपकरणों की बनावट इतनी सिम्पल है कि इसके रखरखाव पर भी कोई खर्च नहीं आता। आधुनिक सिस्टम में ऑटो क्लीनिंग का विकल्प भी होता है जो आपके सिस्टम की समय-समय पर सफाई करता रहता है। इसके आलावा आजकल कम्पनियां ऑन साईट देखने/रख-रखाव करने के लिए विकल्प भी देती हैं। हालांकि, इसके लिए वे कुछ अतिरिक्त चार्ज कर सकती हैं।

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