कृष्‍ण के ये सुंदर रूप, हर दुख करेंगे दूर

कान्हा, गोविंद, कन्हैया, माधव, श्याम, अच्युत, द्वारिकाधीश, श्यामसुंदर, हरि, विष्णु, ऋषिकेश, जगन्नाथ, कंजलोचन, मोहन, मुरलीधर, नारायण, साक्षी, गोपाल, मथुरानाथ, बैकुंठनाथ… भगवान श्रीकृष्ण के रूप अनंत हैं। उनकी लीलाएं अनंत हैं और इसी आधार पर उनके नाम भी अनंत हैं। भगवान की इस मनमोहक और सर्वआकर्षक विग्रह या मूरत का चाहे हम जिस नाम से स्मरण करें, हम उन्हें बुलाते हैं तो वे साक्षात प्रकट हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि वो हमें दिखाई इन भौतिक आंखों से दिखाई नहीं दे रहे, तो दोष इन आंखों का है जो उनके दर्शन कर पाने में सक्षम नहीं। लेकिन हम उनके दर्शन कर सकते हैं – कानों से। है ना हैरान कर देनी वाली बात। सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों में मनुष्य हवन, यज्ञ, अनुष्ठान से देवता प्रसन्न हो कर प्रकट होते थे और मन मांगी मुरादें पूरी करते थे। लेकिन आज के इस कलियुग में मनुष्य के लिए इन अनुष्ठानों को संपन्न करना बहुत परिश्रम और समय की मांग करता है। कृष्णभावना का पूरी दुनिया में प्रसार के लिए श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति एसी भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ने अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन (ISKCON- International Society for Krishna Consciousness) की स्थापना की थी। प्रभुपाद कहते हैं कि जैसे कि एक परिवार में यदि सबको पता है कि पिता भोजना आपूर्ति कर रहे हैं। हम सब भाई हैं, तो हम झगड़ा क्यों करें? उसी तरह यदि हम भगवद भावनाभावित हो जाते हैं, कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं, तो यह झगड़े खत्म हो जाएंगे।श्रीमद् भागवतम् के 12.3.51 श्लोक में लिखा है –
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत।।
अर्थ: हे राजा! भले ही कलियुग दोषों के भंडार है, फिर भी इस युग में एक महान गुण है- केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य की सारी आसक्तियाँ छूट जाती हैं और वह भवबंधन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है। नाम का जाप
करीब 500 साल पहले बंगाल के नवद्वीप में प्रकट हुए हरे कृष्ण आंदोलन की शुरुआत करने वाले श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा था कि कलयुग में सिर्फ हरिनाम के उच्चारण से ही सभी यज्ञों और अनुष्ठानों का फल मिल जाता है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
इस महामंत्र के कीर्तन के द्वारा स्थापित की गई अप्राकृत शब्द-ध्वनि हमारी दिव्य चेतना को जागृत करने की सबसे उत्कृष्ट विधि है। और कलयुग में मोक्ष पाने के लिए हरे कृष्ण महामंत्र के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। अक्षय तृतीया पर चंदन यात्रा उत्सव
वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 18 अप्रैल को थी। इस दिन से शुरू होने वाला यह चंदन यात्रा महोत्सव अगले 20 द‍िन तक मनाया जाता है। भगवान के शरीर पर चंदन और विभिन्न प्रकार के लेप लगाना भी भगवान की सेवा और भक्ति की एक अभिव्यक्ति है। इन लेपों में चंदन का लेप सबसे अच्छा माना जाता है। इस महीने में गर्मी पड़ने लगती है। इसलिए चंदन का लेप लगाकर भगवान को शीतलता प्रदान की जाती है। यह उत्सव दुनियाभर में इस्कॉन के सभी मंदिरों में भी मनाया जाता है। चंदन के लेप के बाद भगवान गौर वर्ण में दर्शन देते हैं। आप भी चंदन यात्रा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के अद्वितीय दर्शन का लाभ उठाएं। दुनिया में किसी वस्तु का अभाव नहीं
प्रभुपाद ने एक बार अपने शिष्य को सुबह की सैर के दौरान बताया – मेरे गुरु महाराज कहा करते थे कि संसार में किसी भी वस्तु का कोई अभाव नहीं है, बल्कि अभाव है तो केवल यह कि लोग कृष्ण भावनामृत से अवगत नहीं हैं। सम्पूर्ण संसार केवल इस महान कृपा से वंचित होने के कारण दुख भोग रहा है। इसलिए भगवान श्री चैतन्य की कृपा से हमने इस आंदोलन का मूल्य समझा है और यह बहुत बड़ी उपलब्धि है, जैसा कि भगवद्-गीता में वर्णन किया गया है कि कृष्ण-भावनामृत में किया गया छोटा सा कार्य भी मानव समाज को जीवन के महानतम भय से बचा लेगा।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*