यूक्रेन संकट: रूस से दोस्ती का भारत को क्या होगा भविष्य में फायदा, जानिए

नई दिल्ली। यूक्रेन ही नहीं बल्कि अमरीका और तमाम पश्चिम इस बात पर आश्चर्य कर रहे हैं शांतिप्रिय भारत अभी तक रूस के रवैए पर शांत कैसे है। यहां तक कि यूएन में रूस के खिलाफ आए प्रस्तावों पर भारत ने अपनी दूरी बनाई हुई है। भारत सरकार पूरी दुनिया को यह दिखाने का प्रयास कर रही है कि वो इस मामले में पूरी तरह से न्यूट्रल है, लेकिन अमरीका (US), यूक्रेन आैर पश्चिमी देशों का गुट नाटो इस बात को पूरी तरह से समझ रहा है कि भारत इस मामले में रूस के साथ खड़ा हुआ है। जानकारों मानें तो अगर भारत का रवैया इस तरह का दिख भी रहा है तो इसमें कोई गलत भी नहीं है। भारत अपने पिछले एक्सपीरयंस और आने वाले भविष्य को साफ तौर पर देख रहा है। आइए आपको भी बताते हैं कि अगर भारत रूस के साथ इसी तरह से खड़ा रहता है तो भविष्य में उसे किस तरह के फायदे हो सकते हैं।

मौजूदा समय में भारत ओर रूस के रिश्ते भले काफी अच्छे हों, लेकिन कारोबार के मामले में रूस की लिस्ट में भारत उन देशों की लिस्ट में शामिल नहीं जिससे वो सबसे ज्यादा कारोबार करता है। दिसंबर 2021 में रूस ने भारत को 72 अरब रुपए का सामान बेचा था, जो दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले काफी कम है। पड़ोसी देश चीन के साथ उसका कारोबार सबसे ज्यादा 6.2 फीसदी हैं। इस लिस्ट में बेलारूस, नीदरलैंड ओर तुर्की को 5 फीसदी से ज्यादा निर्यात करता ह। यहां तक कि अमरीका को 4.5 फीसदी निर्यात करता है। अब अमरीका और कई यूरोपीय देशों ने जो कारोबारी और आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं, उसमें भारत को इसका फायदा देखने को मिल सकता है। भविष्य में इसमें रूस की ओर से भारत को निर्यात में 35 फीसदी से ज्यादा की तेजी देखने को मिल सकती है।

भारत अपने क्रूड ऑयल की जरुरत का 85 फीसदी हिस्सा आयात करता है। उसके बाद भी भारत को रूस क्रूड ऑयल का निर्यात काफी कम है। आंकड़ों की मानें तो रूस यूरोप की प्राकृतिक गैस का एक तिहाई और वैश्विक तेल उत्पादन का लगभग 10 फीसदी प्रोड्यूस करता है। यूरोप को लगभग एक तिहाई रूसी गैस आपूर्ति आमतौर पर यूक्रेन को पार करने वाली पाइपलाइनों के माध्यम से यात्रा करती है। लेकिन भारत के लिए, रूसी आपूर्ति का प्रतिशत बहुत कम है। भारत ने 2021 में रूस से प्रति दिन 43,400 बैरल तेल का आयात किया (इसके कुल आयात का लगभग 1 फीसदी), 2021 में रूस से 1.8 मिलियन टन कोयले का आयात सभी कोयला आयातों का 1.3 फीसदी था। भारत रूस के गजप्रोम से सालाना 25 लाख टन एलएनजी भी खरीदता है। अब जब रूस प्रतिबंध लगे हुए हैं और यूरोप कोकारी सप्लाई बंद हो गई है तो रूस की ओर से क्रूड की सप्लाई भारत तो बढ़ सकती है, वो भी रियायती दरों पर।

दुनियाभर में हथियारों के आयात-निर्यात पर नजर रखने वाली स्वीडिश संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के मुताबिक, भारत अपने आधे से ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है। हालांकि, हथियारों के लिए भारत की रूस पर निर्भरता कम भी हुई हे। 2011 से 2015 तक भारत ने 70 फीसदी हथियार रूस से खरीदे थे, वहीं 2016 से 2020 के बीच ये आंकड़ा कम होकर 49 फीसदी पर आ गया। रूस का साथ भारत को और ज्यादा मजबूत कर सकता ह। रूस की ओर से भारत को सप्लाई और टेक्नोलॉजी बढ़ सकती है।

मौजूदा समय में भारत खाने के तेल की महंगाई से जूझ रहा है। रूस इस में मामले में दुनिया के सबसे बड़े देशों में एक है। दुनिया को 70 फीसदी सनफ्लावर रूस ही देता है। भारत-रूस के संबंध इसी तरह के रहते हैं तो आने वाले दिनों में भारत को खाने के तेल की महंगाई से निजात मिल सकती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत 20 मिलियन डॉलर से ज्यादा क्रूड इडिबल ऑयल इंपोर्ट करता है। केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडया के अनुसार भारत में एडिबल लगातार मंहगा हो जा रहा है। अगर रूस का साथ मिला तो इसमें गिरावट देखने को मिल रही है। वैसे भारत इसमें खुद भी आत्मनिर्भर होने का प्रयास कर रहा है।

जब से स्विफ्ट से रूस को बाहर किया गया है तब से भारत इसके ऑप्शन तलाशने में जुट गई है। जानकारों की मानें तो रूस भारत से सीधा रुपए में कारोबार कर सकता है। भारत अपना काफी आयात रूस से करता है। जिसके बदले में उसे डॉलर देने पड़ते हैं। अगर रूस सीधा रुपया भारत से लेता है तो इसका फायदा भारत को सकता है। पहला भारत के विदेशी मुद्रा भंडार कम नहीं होगा। वहीं रुपए में भारत के कारोबारियों को भुगतान करने में आसानी होगी। जिससेे नए कारोबार भी आगे आएंगे। मौजूदा समय में रूस से निर्यात होने वाले सामान में 40 फीसदी हिस्सेदारी एमएसएमई सेक्टर की है।

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत और चीन के बीच अरुणाचल मुद्दे पर एक दूूसरे के आमने सामने हैं। चीनी सैनिक लगातार उत्तर-पूर्व भारत में अपनी दखल बढ़ाते जा रहे हैं। ऐसे मे अब भारत रूस का साथ देकर चीन पर पुतीन हाथों दबाव बनवा सकता हैं। मौजूदा समय में चीन और रूस के संबंध भी काफी बेहतर हो चले हैं। ऐसे में रूस की बातों का चीन पर असर भी देखनेे को मिल सकता है। इसके विपरीत अमरीका और पश्चिमी देशों की ओर से चीन के साथ सीमा विवाद मामले में कोई खास सपोर्ट देखने को नहीं मिला है।

रूस का पक्के तौर पर भारत का साथ मिल जाने से यूएन में कश्मीर मामले में भारत को और मजबूती मिलेगी और पाकिस्तान पर दबाव देखने को मिलेगा। रूस हमेशा से इस मामले में भारत का सपोर्ट करता हुआ दिखाई दिया है। जबकि अमरीका और पश्विमी देशों का रुख पाकिस्तान की ओर ज्यादा झुका हुआ दिखाई दिया। अतीत में तो अमरीका पाकिस्तान के साथ पूरी तरह से खड़ा हुआ दिखाई दिया है। पाकिस्तान की हरकतों की अमरीका ने कभी इस तरह से निंदा नहीं कि जिस तरह से रूस की कर रहा है और उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहा है। बल्कि अमरीका ने पाकिस्तान की हमेशा से आर्थिक मदद की है।

भारत काफी समय से यूएन में स्थाई सदस्यता का प्रयास कर रहा है। अगर रूस का साथ मिलता है तो भारत की यूएन में स्थाई सदस्यता को मजबूती मिल सकती है। रूस के कहने पर चीन भी यूएनएसी में भारत का सपोर्ट करता हुआ दिख सकता है। वैसे भारत को इसके थोड़ा लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। विदेश मामलों के जानकार सतीश कुमार पांडे के अनुसार रूस का साथ हमेशा से भारत के साथ रहा है। मौजूदा परिस्थितियों में अगर चीन और रूस भविष्य में साथ रहते हैं तो भारत को इसका फायदा यूएनएससी में देखने को मिल सकता है।

 

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