वनचन्द्र जी के डोल ते कोऊ नाय बोले मीठे बोल

कबहुं कबहुं चंदन तरू निर्मित तरल हिंडोल । चढ़ि दोऊ जन झूलत फूलत करत कलोल ।।
वर हिंडोल झकरोनि कामि निअधिक डरात । पुलिक पुलिक वेपथ अंग प्रीतम उर लपटात ।।
हित चिंतक निज चेरिनु उर आनंद न समाता । निरखि निकट नैननि सुख तृण तोरति बलि जात।।
अति उदार विवि सुंदर सुरत सुकुमार जै जै हित हरिवंश करौ दिन दोऊ अचल विहार ।। [ हित हरिवंश जी ]

राधे-राधे वृंदावन में भक्तन की बड़ी चहल-पहल रहवै । सबेरे सै संजा तक लीला स्थालिन के पट हंस-हंस खोलैं पर वनचंद्र के डोल ते कोऊ तो हिलन मिल ही नाय दियौ । ताह के लिये जे अल्पज्ञात स्था बनकै रह गयौ । ढूंढ़ते- ढूंढ़ते दि छिप गयौ तब वन चंद्र जी के डोल मिले । याए बेरंग,बेबस और बेकल देख वेदना भई। इतै प्रचार कौ प्रकाश नाय पर प्रिया प्रीतम के प्रेम कौ उजास है । वनचंद्र के डोल नै बदहाल मै ऊ अपई परंपरा नाय छोड़ी । गौधूलि बेला मै इतै नित्य रास होवै ।
राधावल्लभ मंदिर-सेवाकुंज मार्ग में यमुना पुलिन के पास स्थित वचंद्र के डोल को छोटा रासमंडल भी कहा जाता है । रसोपासक हित हरिवंश जो को यहां विहार विहारिणी के हिंडोल दर्शन हुए थे । उनके पुत्र वनचंद्र जी के शिष्य राम रतन राठौर ने इस भवन का निर्माण कराया । तब से यह वनचंद्र ज के डोल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । कहने को यह राधावल्लभ संप्रदाय की संपत्ति है पर इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है । पत्थरों से निर्मित कलात्मक डोल जर्जर पड़ा है । भवन के अधिकांश हिससे पर अतिक्रमण हो चुका है । प्रांगण में स्थित मंदिर में राधा रानी की मुखाकृति और ध्यान करते वनचंद्र ज के दर्शन हैं ।
मंदिर के सेवायत शिव शंकर दास ने बताया कि “ चैत्र सुदि ग्यारस के दिन वनचंद्र जी राधावल्लभ लाल यहां लाकर झुलाते थे । जब वह साधि में बैठे थे, उस समय उन्हें किशोरी जी के दर्शन हुए थो ।य़ 18-20 साल पहले तक यहां कोई नहीं आता था । अब भी गिने चुने लोग यहां आते है । इसके प्रचार-प्रसार की कोशिश कर रहे हैं । हमारी रास मंडलि प्रतिदिन रास करत है ।”
भवन के समीप वनचंद्र ज क समाधि सथल है । उनके जन्मदिन चैत्र सुदी चौदस , राधा अष्टमी ,प्राकट्य उतसव और कार्तिक सुद त्रयोदश को वनचंद्र जी की समाधि के दर्शन होते हैं ।

इतिहास

यह लीला स्थली हिताचार्य द्वारा स्थापित है। इस स्थान पर विहारी विहारिणी होली खेलने के बाद लता निर्मित हिडोल पर झूलते थे। हित हरिवंश जी ने संभवतः हित चौरासी में पद कबहुं चंदन तरू निर्मित तरल हिडोल… में इस स्थान की ओर संकेत किया है। उनके काल में राधावल्लभ लाल यहां पर बने डोल पर झूलते थे। इसका उल्लेख गोपाल कवि ने वृंदावन धामानुरागावली में किया है। जहं अठखंभा तहं कोई दिन राधावल्लभ झूले, सुंदरदासहि की निवास सो रहत भजन में फूले। कालांतर में वनचंद्र जी के शिष्य राम रतन राठौर ने इस हिडोल स्थल को नवीन रुप प्रदान किया इसी के पास रामरतन राठौर के गुरूवर गोस्वामी वनचंद्र जी का स्मारक स्थल है ।

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