पशुओं में फैल रही लंपी बीमारी के बचाव में जुटे वेटनरी विवि के वैज्ञानिक

  •  सेमिनार में बीमारी के लक्षण व बचाव पर वक्ताओं ने व्यक्त किए विचार
  •  वैज्ञानिकों के सुझाव भेजे जाएंगे प्रदेश सरकार के पास

वरिष्ठ संवाददाता
मथुरा।  प. दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा लंपी स्किन डिजीज के प्रकोप से पशु पालकों के पशुओं के बचाव के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार में बीमारी के लक्षण, रोग से बचाव, उपचार व सावधानियांे पर गहन चिंतन कर एडवाइजरी तैयार की गयी। संगोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति एके श्रीवास्तव द्वारा की गयी।
श्रीवास्तव ने कहा कि पशुओं को रोगमुक्त रखकर किसान को पशुपालन के माध्यम से समृद्ध बनाना विश्वविद्यालय का एक महत्वपूर्ण दायित्व है। विश्वविद्यालय पशुपालन से जुडी विभिन्न महामारी एवं बीमारियां के उपचार तक ही सीमित नहीं है अपितु बीमारियों की होने की सम्भावना, लक्षण, नवीनतम उपचार व उनके निदान के विषय में आधुनिक व्यवहारिक, वैज्ञानिक समाधान पर शोध कर पशु चिकित्सकों एवं किसानों को उपलब्ध कराना नैतिक दायित्व है। अतः सभी विभागों के वैज्ञानिकों द्वारा लंपी स्किन डिजीज के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा कर एडवाइजरी तैयार कर जनमानस को उपलब्ध कराना वर्तमान समय की आवश्यकता है जिसे हमें शीघ्रता शीघ्र पूर्ण करना होगा।
अधिष्ठाता प्रो. पीके शुक्ला ने कहाकि विवि वर्तमान में लंपी स्किन डिजीज से हो रही समस्या उनके लक्षणों तथा बीमारी से होने वाली आर्थिक हानि व पशुपालकों पर प्रभाव के विषय में जानकारी उपलब्ध कराएगा। सूक्ष्म जीवाणु विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डा. अजय प्रताप द्वारा लंपी स्किन डिजीज की गंभीरता, मनुष्य पर होने वाले प्रभाव व कारणों के विषय में सभी शिक्षकों को जानकारी उपलब्ध कराई।
वैज्ञानिकों द्वारा लंपी स्किन डिजीज के रोकथाम हेतु सुझाव प्रस्तुत किये गये वैज्ञानिकों से मिले सुझावों को एडवाइजरी के रूप मे तैयार किया गया
वक्ताओं ने कहा कि लंपी बीमारी गाय एवं भैंस में होने वाला एक संक्रामक रोग है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड राज्यों में मवेशियों में लंपी बीमारी का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। जिससे भारी तादाद में पशु बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। इस बीमारी से मवेशियों की सभी उम्र और नस्लें प्रभावित होती हैं। लेकिन विशेष रूप से कम उम्र के दुधारू मवेशी अधिक प्रभावित होते हैं। इस रोग से पशुधन उत्पादन में भारी कमी आती है। ऐसे में यह अनुदेश प्रदेश के पशुपालकों को एवं समय रहते बीमारी की पहचान एवं बचने के उपाय से अवगत कराने में सहायक सिद्ध होगी।

बीमारी के लक्षण
लंपी बीमारी को लेकर वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि इस बीमारी में 41 डिग्री सेल्सियस तक तेज बुखार आना, आँख एवं नाक से पानी गिरना, पैरों में सूजन, वायरल संक्रमण के 7 से 19 दिनों के बाद पूरे शरीर में कठोर चपटे गांठ उभार आना, गाभिन पशुओं के गर्भपात, दुधारू गायें में दुग्ध उत्पादन काफी कम, पशुओं में वजन घटना शारीरिक कमजोरी लक्षण हैं।

 

बीमारी से बचाव के लिए उपचार
वैज्ञानिकों ने बताया कि लंपी एक विषाणुजनित रोग है। जिसका कोई उचित अनुशंसित उपचार नहीं है। इसके लिए पशु चिकित्सक की सलाह पर लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा सकता है। बुखार की स्थिति में ज्वरनाशक दवा का प्रयोग किया जाना चाहिए। सूजन एवं चर्मरोग की स्थिति में पशु चिकित्सक की सलाह से दवाइयां तथा द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने हेतु 3-5 दिनों तक एंटीबायोटिक्स दवाइयों का प्रयोग किया जाना चाहिए। घावों को मक्खियों से बचाने हेतु नीम की पत्ती, मेंहदी पत्ती, लहसुन, हल्दी पाउडर को नारियल या सीसम तेल में लेप बनाकर घाव पर लेप का प्रयोग करें।

बीमारी से बचाव के उपाय  
बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे अच्छा तरीका है। इंडियन इम्युनोलोजिकल अथवा हेस्टर बायोसाइंस द्वारा निर्मित गॉटपॉक्स टीका पशुओं को बीमारी से बचाने में अत्यंत कारगर है। इस टीके को 3.5 एमएल मात्रा पशुओं में दिए जाने से एक वर्ष तक प्रभावी प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

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