क्या है सच्चाई: ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, मनोज तिवारी की खैर नहीं’, जानिए

बेंगलुरू। बीजेपी आलाकमान ने अभी तक दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी को दिल्ली के भावी सीएम कैंडीडेट के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया है, लेकिन चुनाव से पहले ही दिल्ली में बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा लगाए जा रहे नारे बीजेपी की हालत खराब कर सकती हैं। दिल्ली में रविवार को मनोज तिवारी के विरोध में लगाए गए नारे, ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, मनोज तिवारी की खैर नहीं’ बहुत कुछ संकेत करते हैं।

दरअसल, मनोज तिवारी के खिलाफ नारे लगाने वाले बीजेपी कार्यकर्ता कोई और नहीं बल्कि पूर्वाचंली है, जिन्हें साधने के लिए बीजेपी ने मनोज तिवारी को दिल्ली बीजेपी का अध्यक्ष बनाया था। हालांकि यह विरोधी दलों की साजिश का हिस्सा भी हो सकता है, क्योंकि इससे पहले भी मनोज तिवारी के विरोधियों ने सीएम कैंडीडेट के रूप में उन्हें प्रोजेक्ट करके ऐसा कुछ करने की कोशिश की है।

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री केजरीवाल के सामने नई दिल्ली विधानसभा सीट से लड़ने की चुनौती देने को भी विरोधियों की रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। मनोज तिवारी के भोजपुरी फिल्मों के डॉयलॉग्स और उनके ऊपर फिल्माएं गए गानों के मीम्स बनाकर आजकल सोशल मीडिया पर खूब शेयर करके भी विरोधी उनकी छवि को मलिन करने की खूब कोशिश कर रहे हैं। अब मनोज तिवारी के खिलाफ शुरू की गई नई मुहिम संकेत है कि आम आदमी पार्टी की आगे की रणनीति क्या हो सकती है।

गौरतलब है 2018 राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी सीएम कैंडीडेट वसुंधरा राजे के खिलाफ ‘मोदी तुझसे बैर नहीं और वसुंधरा तेरी खैर नहीं’ जैसे नारे बुलंद किए गए थे और अंततः राजस्थान में बीजेपी की सरकार सत्ता में दोबारा नहीं लौट सकी थी। दिल्ली में मनोज तिवारी के लिए भी कमोबेश ऐसे ही नारे उछाले जा रहे हैं, जिसमें ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, मनोज तिवारी की खैर नहीं’ के नारे लगाए जा रहे हैं।

राजधानी दिल्ली के प्रवासी वोटरों द्वारा मनोज तिवारी के खिलाफ लगाए गए नारों में अगर जरा भी सच्चाई है, तो बीजेपी आलाकमान को होशियार हो जाना चाहिए, क्योंकि राजस्थान में बीजेपी को इसका नुकसान झेलना पड़ चुका है। मनोज तिवारी के विरोध में उतरे पूर्वाचंली गत रविवार को दिल्ली के पंत मार्ग पर इकट्ठा हुए और जोर-जोर से दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष के खिलाफ नारे लगाने लगे। पूर्वाचंलियों का आरोप के मुताबिक मनोज तिवारी के अध्यक्ष पद पर रहने के कारण ही उनके लोगों की उपेक्षा हुई है।

उल्लेखनीय है भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में उन्हीं पूर्वांचल प्रत्याशियों को टिकट दिया है, जो वर्ष 2013 और 2015 विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की आंधी में बुरी तरह से परास्त हुए थे। पूर्वांचलियों की डिमांड है कि हारे हुए प्रत्याशियों की जगह पार्टी को नए और ऊर्जावान चेहरों को मौका देना चाहिए। मनोज तिवारी के खिलाफ नारेबाजी कर रहे पूर्वांचलियों ने टिकट वितरण में धांधली हुई है और बड़े बीजेपी नेताओं के दवाब में टिकट बांटा गया है।

बताया जाता है कि गलत टिकट वितरण के आरोप में दिल्ली के मॉडल टाउन, करावल नगर, पटपड़गंज और गांधी नगर में बीजेपी को विरोध का सामना करना पड़ा है। चूंकि बीजेपी में अमित शाह के बाद अब जेपी नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त हो चुके है इसलिए दिल्ली में पूर्वाचंलियों के विरोध का सुर और ऊंचा हो गया है। उन्हें उम्मीद है कि जेपी नड्डा के कार्यभार संभालने के बाद टिकट वितरण का पुर्नमूल्यांकन जरूर किया जाएगा।

मालूम हो, बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जेपी नड्डा के लिए दिल्ली बड़ी चुनौती है और खुद को साबित करने के लिए उन्हें पूर्वांचली वोटरों को एकजुट रखना जरूरी होगा। जेपी नड्डा को सबसे पहले दिल्ली बीजेपी कैंडीडेट के चुनाव में शीघ्रता बरतनी चाहिए, क्योंकि बिना चेहरे वाले बीजेपी को दिल्ली की जनता तब तक घास नहीं डालेगी जब तक उसके सामने केजरीवाल से बेहतर चेहरा कोई नहीं आएगा।

दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी दिल्ली में सीएम कैंडीडेट नहीं होंगे, इसकी घोषणा बीजेपी आलाकमान नहीं की है, इसी वजह से बीजेपी वोटर और कार्यकर्ता भी पशोपेश में हैं। बीजेपी के पास दिल्ली में डा. हर्ष वर्धन के रूप में एक बड़ा चेहरा है, जिसे बीजेपी केजरीवाल के सामने खड़ा करके अच्छी टक्कर दे सकती है। हालांकि बीजेपी के प्रवेश सिंह वर्मा जैसा एक युवा चेहरा भी मौजूद है, जिसे बीजेपी आगे कर सकती है। प्रवेश सिंह वर्मा पूर्व दिल्ली मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र हैं।

दिल्ली विधानसभा का चुनाव को अब ज्यादा दिन नहीं रहे हैं। चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक आगामी 8 फरवरी को एक साथ दिल्ली के 70 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा और 11 फरवरी को मतगणना होगी। बीजेपी ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से सीएम केजरीवाल के सामने बड़ा कैंडीडेट नहीं खड़ा करके कुछ संकेत देने की कोशिश की है, जिसे आम आदमी पार्टी ने बोगस करार दिया है।

हालांकि अगर बीजेपी निर्भया गैंगरेप पीड़िता की मां आशा देवी को केजरीवाल के खिलाफ कैंडीडेट के रूप में मैदान में लाने में कामयाब हो जाती है तो आम आदमी पार्टी संयोजक केजरीवाल को अच्छा टक्कर दिया जा सकता है। चूकिं निर्भया के दोषियों की फांसी में हो रही देरी से पूरे देश में उबाल है और कहीं न कहीं निर्भया की मां भी फांसी में हो रही देरी के लिए सरकार को जिम्मेदार मान रही हैं।

चूंकि दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी की छवि अभी भी उनके पुराने कैरियर की संगत नहीं छोड़ पाई है और अगर बीजेपी दिल्ली सीएम कैंडीडेट की घोषणा नहीं करती है और चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल हुआ तो दिल्ली की जनता केजरीवाल को प्राथमिकता देगी, क्योंकि दिल्ली की जनता में इससे यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि मोदी के नाम पर वोट लेकर बीजेपी मनोज तिवारी या किसी और को दिल्ली को थोप देगी।

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डा. हर्ष वर्धन दिला सकते हैं बीजेपी को दिल्ली की सत्ता

मौजूदा समय में दिल्ली बीजेपी में डा. हर्ष वर्धन से बेहतर सीएम कैंडीडेट मैटेरियल बीजेपी के पास नहीं है, जिन्होंने वर्ष 2013 में तब बीजेपी को 32 सीट दिलाने में सफल हुए जब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी उफान पर थी, लेकिन वर्ष 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा में बीजेपी जब 3 सीटों पर सिमट गई तो माना गया कि अचानक पैराशूट के जरिए उतारी गई सीएम कैंडीडेट किरण बेदी का दांव उल्टा पड़ गया। हालांकि वर्ष 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की दुर्गति के कई बड़े कारण थे, जिनमें निगेटिव पब्लिसिटी प्रमुख था। फलस्वरूप बीजेपी को दिल्ली में मोदी मैजिक और मोदी लहर भी नहीं बचा पाई थी।

क्या मोदी बनाम केजरीवाल से दिल्ली जीत पाएगी बीजेपी?

दिल्ली विधानसभा का चुनाव 8 फरवरी होना तय है और 11 फरवरी को मतदान के नतीजे आएंगे। आम आदमी पार्टी जहां पिछले छह महीनों में विज्ञापन पर किए खर्च करके माहौल अपने पक्ष में बनाने में सफल होती दिख रही है। वहीं, दिल्ली बीजेपी एक फिर प्रधानमंत्री मोदी के कंधे पर सवार होकर दिल्ली के सत्ता पर काबिज होने का सपना पाले हुए है। दिल्ली में बीजेपी के पास सीएम कैंडीडेट नहीं होना सबसे बड़ी परेशानी का सबब हो सकता है, क्योंकि दिल्ली की जनता केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी के सीएम कैंडीडेट को वोट देते समय परखेगी।

युवा नेता प्रवेश सिंह वर्मा हो सकते थे बेहतर विकल्प

दिल्ली में सीएम कैंडीडेट के लिए बीजेपी के विकल्पों पर गौर करेंगे, तो डा. हर्ष वर्धन के बाद एक और बड़ा चेहरा मौजूद था, जिसे बीजेपी पिछले 7 वर्षों में तैयार कर सकती थी और वो हैं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहेब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश सिंह वर्मा। दिल्ली के युवा चेहरे में शामिल प्रवेश वर्मा वर्ष 2014 लोकसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में लगातार दो बार संसद के लिए चुने गए हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में महरौली लोकसभा सीट से प्रवेश वर्मा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को रिकॉर्ड 578486 मतों से हराया था। यही नहीं, वर्ष 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव में युवा नेता और सांसद प्रवेश वर्मा ने दिल्ली विधानसभा के स्पीकर और वरिष्ठ कांग्रेस नेता योगानंद शास्त्री को महरौली विधानसभा में हराया था।

मनोज तिवारी की तुलना में अरविंद केजरीवाल की छवि बेहतर है

दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी के प्रशासक वाली छवि अभी दिल्ली में नहीं बन पाई है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली के सातों लोकसभा सीट जीतने का श्रेय मनोज तिवारी को इसलिए नहीं दे सकती है, क्योंकि पूरे देश में मोदी के पक्ष में वोट किया है और दिल्ली से अछूता नही है, लेकिन जब बात मुख्यमंत्री चुनने की आएगी तो दिल्ली शख्सियत चुनेगी और ऐसे में मनोज तिवारी की तुलना में अरविंद केजरीवाल की छवि बेहतर है। बीजेपी द्वारा सीएम कैंडीडेट का नाम नहीं घोषित करने से भी आम आदमी पार्टी को फायदा हो रहा है। अगर बीजेपी डा. हर्ष वर्धन और प्रवेश सिंह वर्मा में से किसी एक सीएम कैंडीडेट घोषित कर देती है, तो केजरीवाल की चुनावी स्ट्रेटेजी बदलनी पड़ सकती है।

मोदी के सहारे दिल्ली में बीजेपी को कितनी सीट दिला पाएंगे मनोज तिवारी

कमोबेश दिल्ली बीजेपी में मनोज तिवारी की भी रघुवर दास जैसी हालत है। मनोज तिवारी भी दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने की रणनीति प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज और राष्ट्रवाद के नाम पर जीतने की है। मनोज तिवारी अच्छी तरह जानते होंगे कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली में मिली बड़ी जीत का कारण वो खुद नहीं थे, लेकिन मनोज तिवारी दिल्ली विधानसभा का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल करने पर इसलिए भी अमादा है, क्योंकि उन्होंने पिछले पांच वर्ष उन्होंने दिल्ली के लिए क्या किया है, उन्हें खुद नही पता है। मोदी फैक्टर के सहारे मनोज तिवारी दिल्ली विधानसभा में बीजेपी को कितनी सीट दिला पाएंगे, यह तो 11 फरवरी को आने वाले नतीजो से पता चलेगा, लेकिन अगर बीजेपी अभी नहीं चेती तो दिल्ली की सत्ता एक बार उससे दूर ही रहने वाली है।

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