425 लोगों को इस गांव में एक साथ क्यों मार दी गई थी गोली?

नई दिल्ली. मेवात का नाम लेते ही पहली बार में ही एक ऐसे क्षेत्र की तस्वीर उभरती है जहां गायों की तस्करी होती है. लेकिन क्या इस इलाके का यही परिचय हो सकता है? राष्ट्रीय राजधानी से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित मुस्लिम बहुल इस एरिया की इमेज हमने ऐसे ही कालखंड की घटनाओं से गढ़ी है, जबकि यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि यहां के डेढ़ हजार से अधिक जांबाज प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में देश की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. अंग्रेजी हुकूमत से बगावत की वजह से आज से ठीक 162 साल पहले एक ही दिन रूपडाका गांव के 425 वीरों को ब्रिटिश आर्मी ने गोली मार दी थी.

इन शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए इतिहास के पन्नों को पलटिए तो यहां के ज्यादातर गांवों में वतनपरस्ती की एक से बढ़कर एक मिसाल मिलेंगी. मेवात में रणबांकुरों की देशभक्ति और कुर्बानियों की गाथाएं भरी पड़ी हैं.

इस गांव में हुआ था ‘जलियांवाला बाग’ जैसा नरसंहार 

रूपडाका गांव के 425 लोगों को तो अंग्रेजों ने गोली मार दी थी, जबकि अलग-अलग घटनाओं में विद्रोह की वजह से 470 मेवातियों को उनके अपने गावों में फांसी पर लटका दिया गया. दस गांवों को अंग्रेजों ने जला दिया था. उन शहीदों की याद में यहां के गई गांवों में मीनारें बनवाई गई हैं, जो आज भी यहां के लोगों की देशभक्ति की गौरवगाथा बयां कर रही हैं.

1857 में आजादी की पहली लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के संघर्ष में यहां के लोगों ने अपना बलिदान देते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया है. लेकिन, इस वक्त यहां के लोगों को सिर्फ खास चश्मे से देखा जाता है. इस क्षेत्र के रहने वाले पहलू खान, उमर मोहम्मद, तालिम और अकबर उर्फ रकबर को गो-रक्षा के नाम पर पीट-पीटकर मार डाला गया.

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गुड़गांव गजेटियर के मुताबिक में मेव मुसलमानों  ने साल 1800  के शुरुआत से ही अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. वर्ष 1803 में अंग्रेज-मराठों के बीच हुए लसवाड़ी के युद्ध में मेव छापामारों ने दोनों ही सेनाओं को नुकसान पहुंचाया और लूटपाट की थी. अंग्रेज इससे काफी नाराज थे, तभी से मेवातियों को सबक सिखाने के लिए मौके का इंतजार कर रहे थे.

 

साल 1806 में नगीना के नौटकी गांव के रहने वाले मेवातियों ने मौलवी ऐवज खां के नेतृत्व में अंग्रेज सेना को काफी नुकसान पहुंचाया. इस हार से अंग्रेज घबरा गए और दिल्ली के रेजीडेंट मिस्टर सेक्टन को सन 1807 में अपने अधिकारियों को एक पत्र के जरिए समझाया कि मेवातियों के साथ समझौता कर लेना चाहिए. हालांकि, यह अंग्रेजों की चाल थी और वो सही समय का इंतजार कर रहे थे, जो मौका उन्हें नवंबर 1857 में मिल गया. बताया जाता है कि 10 मई 1857 को चांद खान नामक मेवाती सैनिक ने अंग्रेजों पर गोलियां बरसा दी थीं. बाद में विरोध की यह आग पूरे देश में फैल गई. दरअसल, साल 1806 की  लड़ाई के बाद से ही मेवात के किसानों पर अंग्रेजों के जुल्म बढ़ने लगे थे.

हुड्डा ने अपनी किताब में किया है जिक्र

संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य रहे स्वतंत्रता सेनानी रणवीर सिंह हुड्डा के पुत्र एवं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह ने अपनी पुस्तक ‘विकास की उड़ान अभी बाकी है’ में मेवातियों की वीरता का विस्तार से जिक्र किया है. हुड्डा लिखते हैं, ‘मई 1857 की जो क्रांति बैरकपुर से शुरू हुई थी वो 12 मई को मेवात पहुंच चुकी थी. तावडू, घासेड़ा, नूंह, पिनगवां और पुन्हाना में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का आगाज हुआ. मेवात के आसपास के दर्जनों गांवों के लोगों ने अंग्रजों के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया. इस बात की भनक जब अंग्रजी हुकूमत को लगी तो वायसराय ने कैप्टन डूमंड नायक की अगुवाई में रूपडाका गांव को घेरने के लिए फौज भेज दी. 19 नवंबर 1857 को फौज ने गांव पर धावा बोल दिया, लेकिन यहां के जांबाजों ने डटकर मुकाबला किया. इस गांव के 400 से अधिक शहीद हो गए.’

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मेवातियों ने अंग्रेजों को भगाया

हुड्डा आगे लिखते हैं, ‘बहादुर मेवातियों ने अपने क्षेत्र को फिरंगियों के पंजे से छुड़ा लिया. गुड़गांव का तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर विलियम फोर्ड भौंडसी के रास्ते मथुरा भाग गया. गांव-गांव में मेवातियों को पेड़ों पर फांसी के फंदे डालकर लटका दिया गया. कई गांवों को लूटा और जलाया गया, लेकिन मेवातियों में देशभक्ति का जोश कम नहीं हुआ.’

मेवात के वीरों पर रिसर्च

महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी में इतिहास की शोध छात्रा रहीं शर्मिला यादव ने ‘1857 के विद्रोह के पश्चात दमन चक्र: मेवात का एक अध्ययन’ नाम से अपनी एक रिसर्च में लिखा है कि ‘20 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था और उन्हें हरियाणा में मौजूद मेव विद्रोही खटक रहे थे. दिल्ली पर कब्जे के बाद पूरे एक साल तक अंग्रेजी सेना ने  हरियाणा में दमन किया. 8 नवंबर 1857 को अंग्रेजों ने मेवात के सोहना, तावडू, घासेडा, रायसीना और नूंह सहित सैकड़ों गांवों में कहर बरसाया था.

‘अंग्रेजों की कुमाऊं बटालियन का नेतृत्व लेफ्टिनेंट एच ग्रांट कर रहे थे. यह दस्ता कई गांवों को तबाह करता हुआ गांव घासेड़ा पहुंचा. जहां 8 नवंबर को गांव के खेतों में अंग्रेज और मेवातियों के बीच जबरदस्त लड़ाई हुई. इसमें घासेड़ा के 157 लोग शहीद हुए, लेकिन जवाबी कार्रवाई में उन्होंने अंग्रेज अफसर मेकफर्सन का कत्ल कर दिया.

19 नवंबर 1857 को मेवात के बहादुरों को कुचलने के लिये ब्रिगेडियर जनरल स्वराज, गुड़गांव रेंज के डिप्टी कमिश्नर विलियम फोर्ड और कैप्टन डूमंड के नेतृत्व में टोहाना, जींद प्लाटूनों के अलावा भारी तोपखाना सैनिकों के साथ मेवात के रूपडाका, कोट, चिल्ली, मालपुरी पर जबरदस्त हमला बोल दिया. इस दिन अकेले गांव रूपडाका के 425 मेवाती बहादुरों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया.

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इतिहासकार बताते हैं कि इस दौरान अंग्रेजों ने मेवात के सैकड़ों गांवों में आग भी लगा दी, लेकिन सरकार मानती है कि 10 गांवों को आग के हवाले किया गया था. इनकी सूची मेवात के जिला मुख्यालय नूंह में लगाई गई है. शर्मिला यादव के मुताबिक, इतिहासकारों ने 1857 के दौरान मेवातियों के कुर्बानियों को इतिहास के पन्नों में जगह देने में कंजूसी की है. मेवातियों को अपने देश की स्वाधीनता के बदले भारी जुल्मों को सहना पड़ा. विद्रोह इतना जबरदस्त था कि उसे दबाने के लिए अंग्रेजों को कई बार हार का सामना करना पड़ा और उनके सेनाधिकारी भाग खड़े हुए थे.

1,522 मेवाती मारे गए

यादव के अनुसार, अंग्रजों ने मेवात में क्रांति की ज्वाला को मिटाने के लिए बड़ी क्रूरता का परिचय दिया. उन्होंने कई गांवों को तबाह कर दिया और न जाने कितने व्यक्ति लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. मेवात में अंग्रजों के दमनचक्र के दौरान 20 सितंबर 1857 से सितंबर 1858 तक लगभग 1,522 मेवाती मारे गए, जबकि पूरे हरियाणा से 3,467 व्यक्ति मारे गए थे. दिसंबर 1857 से लेकर सितंबर 1858 के बीच 470 मेवातियों को उनके अपने गावों में फांसी दी गई. विद्रोह को दबाने के लिए गुड़गांव का डिप्टी कलेक्टर विलियम फोर्ड आया, लेकिन लोगों ने उनके साथ कड़ी लड़ाई लड़ी और भाग जाने पर मजबूर कर दिया.

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मेवात के पत्रकार राजुद्दीन कहते हैं, ‘यह दुर्भाग्य ही है कि जिस मेवात के लोग देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों की गोली खाई, फांसी पर झूल गए उसे आज लोग सिर्फ गोतस्तरों के अड्डे के रूप में जानते हैं. चंद गोतस्करों की वजह से यहां के शूरवीरों का बलिदान धूमिल कर दिया गया. अच्छा होता कि मेवात की गौरवगाथा किताबों में पढ़ाई जाती. इससे लोगों को पता चलता कि मेवात ने देश की आजादी के लिए कितनी बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी हैं.’

 

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