महिलाएं क्यों लगाती हैं सिंदूर, यहां जानें रोचक तथ्य

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‘सिंदूर’ शब्द सुनते ही सबसे पहले दो दृश्य आंखों के सामने उपस्थित होने लगते हैं, एक स्त्री की मांग और दूसरा लाल या पीला रंग। यह लाल रंग एक स्त्री की खुशियां, ताकत, स्वास्थ्य, सुंदरता आदि से सीधे जुड़ा है। हजारों-हजार वर्षों से यह रंग विवाहित स्त्री की पहचान और उसके सामाजिक रुतबे का पर्याय बना हुआ है। एक दौर ऐसा भी आया, जब इसे दकियानूसी और आउटडेटेड मान लिया गया, जिसे सिर्फ रीति-रिवाज मानने वाली स्त्रियां ही लगाती हैं, लेकिन देखा जाए तो इसका चलन कम जरूर हुआ था, मगर खत्म कभी नहीं हुआ। अब इसे हर तबके की स्त्रियां लगाती हैं। किसी के लिए यह स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक ताकत से जुड़ा है, तो वहीं सेलिब्रिटीज के लिए यह एक फैशन स्टेटमेंट बन चुका है। दूसरी ओर एक आम स्त्री के लिए यह एक अनिवार्य परंपरा है, जिसे उसे हर हाल में निभाना है।

क्यों लगाती हैं सिंदूर स्त्रियां

सिंदूर लगाने या सिंदूरदान का इतिहास लगभग पांच हजार साल पहले का माना जाता है। धार्मिक और पौराणिक कथाओं में भी इसका वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार देवी माता पार्वती और मां सीता भी सिंदूर से मांग भरती थीं। ऐसा कहा जाता है कि पार्वती अपने पति शिवजी को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए सिंदूर लगाती थीं। मां सीता अपने पति राम की लंबी उम्र की कामना तथा मन की खुशी के लिए सिंदूर लगाती थीं। महाभारत महाकाव्य में द्रौपदी नफरत और निराशा में अपने माथे का सिंदूर पोंछ देती हैं। एक अन्य मान्यता भी है कि लक्ष्मी का पृथ्वी पर पांच स्थानों पर वास है। इनमें से एक स्थान सिर भी है, इसलिए विवाहित  महिलाएं मांग में सिंदूर भरती हैं, ताकि उनके घर में लक्ष्मी का वास हो और सुख-समृद्धि आए।

सिंदूर का चलन भले ही पौराणिक समय से रहा हो, लेकिन तब से आज के आधुनिक युग तक इसका सबसे बड़ा महत्व एक स्त्री के लिए उसके पति की लंबी उम्र की कामना और विवाहित होने के दर्जे से ही है। जब एक लड़की की मांग में सिंदूर भर जाता है, तो उसकी एक अलग सामाजिक पहचान कायम हो जाती है। अतः सिंदूर स्त्रियां विवाह के बाद ही लगा सकती हैं। विवाह एक पवित्र बंधन है। इस पवित्र बंधन में बंधने से पहले कई रस्में संपन्न होती हैं। इनमें सबसे अहम सिंदूरदान है।

हिंदू समाज में जब एक लड़की की शादी होती है, तो उसकी मांग में सिंदूर भरा जाता है। यह सिंदूर पति भरता है। वहीं कई-कई जगहों में पति की मां यानी विवाहिता की सास भी अपनी बहू की मांग भरती हैं।   इस प्रकार, जो पहचान बनती है उसका अटूट संबंध पति से होता है। मान्यता है कि विवाहित स्त्री जितनी लंबी मांग भरती है पति की आयु भी उतनी लंबी होती है। इसलिए ज्यादातर महिलाएं मांग भरकर सिंदूर लगाती हैं। सिंदूर का संबंध जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना और अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही, पत्नी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ भी है।

मांग में सिंदूर भर जाने के बाद एक स्त्री का नया जन्म होता है। इस नए जीवन के साथ उसको कई नई जिम्मेदारियां और दायित्व विरासत में मिलता है। जीवन की इस नई पारी में उसको खुशियों के साथ-साथ मानसिक तनाव भी मिलता है। कहते हैं कि सिंदूर तनाव को भी कम करता है। लाल रंग शक्ति और स्फूर्ति का भी परिचायक माना जाता है। अतः इससे ताकत का एहसास होता है। ज्योतिष के अनुसार मेष राशि का स्थान माथे पर माना जाता है, जिसका स्वामी मंगल है। मंगल का रंग सिंदूरी है, जिसे शुभ मानते हैं। इसी शुभ की कामना के लिए स्त्रियां माथे पर सिंदूर सजाती हैं। आपको बता दें कि भगवान हनुमान की पूजा सिंंदूर से की जाती है। उनके शरीर पर यही लाल सिंदूर लगाया जाता है। मंदिरों में बहुत-सी देवियों को सिंदूर लगाया जाता है। हमारे देश में, कई पर्व हैं जिनमें सिंदूरदान की परंपरा रही है। छठ पूजा, नवरात्रि, तीज, करवाचौथ आदि त्योहारों पर स्त्रियों की मांग में सिंदूर भरा जाता है। छठ पूजा में तो स्त्रियां नाक से लेकर सिर तक लंबा सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि इससे पति की आयु लंबी होती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है। छठ पर्व पर स्त्रियां पीला सिंदूर लगाती हैं।

कैसे बनता है सिंदूर

‘सिंदूर’ दो रंग का और दो तरह का होता है। लाल और पीला सिंदूर यह अलग-अलग अवसरों पर उपयोग में लाया जाता है। आजकल सिंथेटिक सिंदूर अधिक मिलता है, जिसमें पारा या शीशा होता है। इसमें सिंथेटिक डाइ और सल्फेट भी मिलाया जाता है, जो शरीर के लिए नुकसानदायक है। इससे बाल झड़ने लगते हैं, त्वचा में जलन होती है और कैंसर जैसे जानलेवा रोग का भी खतरा बढ़ जाता है। बड़ी-बड़ी कंपनियां सिंदूर या कुमकुम बनाने में, जो धातुएं और रसायन इस्तेमाल करती हैं, उनका खुलासा नहीं करतीं। अरारोट, सफेद पत्थर, गिन्नार फिर उसमें नकली लाल, पीला या नारंगी रंग मिलाकर सिंथेटिक सिंदूर बनाकर बाजार में बेच दिया जाता है। वहीं, प्राकृतिक और ऑर्गेनिक तरीके से तैयार सिंदूर का कोई कुप्रभाव नहीं होता। यह हल्दी, फिटकरी, सुहागा और नींबू के रस से घर पर भी तैयार किया जा सकता है। आजकल तरल(लिक्विड) सिंदूर भी आने लगे हैं।

लाल या पीला सिंदूर

सिंदूरदान एक परंपरा है, एक विश्वास है, एक पहचान है और पत्नी की कामनाओं की अभिव्यक्ति भी है। ऐसी मान्यता है कि माता सती और पार्वती की शक्ति और ऊर्जा लाल रंग से व्यक्त हुई है, इसीलिए अधिकतर स्त्रियां लाल रंग का सिंदूर लगाती हैं, जबकि विवाह में पीले सिंदूर का भी चलन है। छठ पूजा में तो पीले रंग का ही सिंदूर इस्तेमाल होता है। इस पर्व पर स्त्रियां लंबा सिंदूर लगाती हैं, नाक से लेकर माथे तक। लंबा पीला सिंदूर लगाने के पीछे यही कामना होती है कि पति की भी उतनी ही लंबी उम्र हो और वह उतनी ही तरक्की करे।

नवरात्रि में आखिरी दिन स्त्रियां पांडाल में विराजमान देवी दुर्गा को भी सिंदूर लगाती हैं। इसे सिंदूर खेला कहा जाता है। कुछ समय पहले तक वर्षों पुरानी इस परंपरा में केवल विवाहित स्त्रियां ही भाग लेती थीं, जिसमें लाल रंग की साड़ी पहनकर माथे पर एक-दूसरे को सिंदूर लगाया जाता था। हालांकि, अब इस सिंदूर खेला में सभी महिलाएं हिस्सा लेती हैं। यहां पर भी सिंदूर खेला स्त्री की एक सामाजिक पहचान से जुड़ा हुआ है। एक चुटकी सिंदूर की कीमत कोई नहीं जान सकता, न रमेश बाबू और न ही कोई और! क्योंकि एक चुटकी सिंदूर औरत के लिए हकीकत में बदला एक सपना है, एक ताकत है, एक विश्वास है, एक परंपरा है, एक सौभाग्य है, एक रिवाज है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह एक नारी की पहचान है, एक सम्मान है।

वैज्ञानिक महत्व

पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अलावा, कुछ अन्य मान्यताएं भी हैं, जिनके आधार पर सिंदूर का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है। इनका संबंध मन और शरीर से है। शरीर के जिस हिस्से यानी सिर पर सिंदूर लगाया जाता है, वह बहुत ही कोमल होता है। इस स्थान को ‘ब्रह्मरंध्र’ कहते हैं। सिंदूर में पारा होता है, जो एक दवा का काम करता है। यह रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) को नियंत्रण में रखता है, जिससे तनाव और अनिद्रा दूर भागते हैं। साथ ही यह चेहरे पर झुर्रियां भी नहीं पड़ने देता है।

वास्तु के अनुसार सिंदूर

आपने देखा होगा कि कुछ लोग अपने दरवाजे पर सरसों का तेल और सिंदूर का टीका लगा कर रखते हैं। खासतौर पर दिवाली के दिन तो जरूर ही तेल और सिंदूर लगाते हैं। क्या आप जानती हैं इसके पीछे क्या कारण है। वास्तु विज्ञान के अनुसार दरवाजे पर सिंदूर और तेल लगाने से घर में नकारात्मक उर्जा का प्रवेश नहीं होता है। यह घर में मौजूद वास्तुदोष को भी दूर करने में कारगर माना जाता है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से दरवाजे पर तेल लगाने से दरवाजा लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। इसलिए दरवाजे पर सिंदूर लगाने की परंपरा रही है।

जब एक लड़की की मांग में सिंदूर भर जाता है, तो उसकी एक अलग सामाजिक पहचान कायम हो जाती है। अतः सिंदूर स्त्रियां विवाह के बाद ही लगा सकती हैं। छठ पूजा, नवरात्रि, तीज और करवाचौथ आदि त्योहारों पर स्त्रियों की मांग में सिंदूर भरे जाने की परंपरा है।

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