सावधान: दूध, यानी पैसा खर्च कर बीमारी ले रहे मोल

मथुरा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक भारत में आधे से ज्यादा लोग कैंसर के शिकार होंगे। मिलावटी दूध को इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार बताया गया है। आप सोच रहे होंगे कि इस तरह की अनेक जानकारी व्हाट्सएप पर भी देखी हैं। आपने पैसा कमाने के लिए पानी मिला खून बेचने की खबर भी अखबार में पढ़ी होगी। मसलन पैसे की भूख में आदमी क्या कुछ नहीं कर रहा, सोच कर घिन आती है।

Related image
मैं अब मुद्दे पर आता हू। दिल्ली जैसे महानगरों में लाखों लोगो ने दूध पीना छोड़ दिया है। मावा की मिठाई भी यहां लोग नहीं खाते। यह बात अलग है कि बाजारू खाने में वह मिलावटी दूध से ज्यादा हानिकारक चीजें खा जाते हैं। यदि आप दूध की शु़द्धता को परखने लायक समझ नहीं रखते तो मेरी सालह है कि आप भी दूध पीना छोड़ दें। पैसा खर्च कर बीमारी मोल लेने में कतई बुद्धिमानी नहीं है।
गर्मियों में भैंसों का अस्सी फीसदी दूध कम हो जाता है। गाय गर्मियों में और भैंस जाड़ों में सर्वाधित दूध देती हैं। आप किसी डेयरी या दूूध की दुकान पर चले जाएं और चाहे जितना दूध मांगें, मिल जाता है। आखिर यह सब कहां से आता है। यह बात चिंतनीय है।

Related image
घरों मं माताओं को मोटी मलाई और उस मलाई से घी बनाकर दूध की कीमत निकालने का लालच होता है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि वर्तमान में शुद्व दूध से ज्यादा मोटी मलाई मिलावटी दूध में पड़ जाती है। इसे गर्म कपड़े धोने के लिए प्रयोग में आने वाले ईजी, रिफाइंड आदि न जाने क्या-क्या मिलाकर बनाया जाता है। अब आप इसी से समझ लीजिए कि अब लागों को कई ब्रांडेड कंपनियों के घी में स्वाद नहीं आता जबकि खाद्य विभाग के मानकों पर उस घी में वह सारे तत्व हैं जो सेंपिल पास होने के लिए जरूरी हैं। आखिर यह सब क्या है। मेरा अनुभव तो यहां तक रहा है कि घर की भैंस जिसे सोयाबीन जैसा रिच प्रोटीन वाला अन्न, हरा चारा व बेहतरीन दाना दिया गया से प्राप्त दूध से निर्मित घी का नमूना भी फेल आया क्योंकि तत्वों की कमी जमीन में हो रही है और उसका असर चारे-दाने और दूध सभी में आ रहा है।
भरोसे की आढ़ में लोग आपके और आपके नौनिहालों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। में दाबे के साथ कह रहा हंू कि बाजार में बिक रहे दूध को ही किसी व्यक्ति के लिए दो तीन दिन आहार बना दिया जाए तो अच्छा खासा आदमी बीमार हो जाए। गली गली में दर्जनों डेयरी हैं लेकिन खाद्य विभाग को समय-समय पर नमूने लेने की फुुर्सत ही नहीं। हर शहर में दूध दूर दराज के गांवों से आता है। सुबह जल्दी दूध की डिलीवरी देने के लिए दूधिए दूध को फटने से बचाने के लिए हाइड्रो, फाॅर्मलीन नामक रसायनों का प्रयोग अंदाजे से करते हैं। रसायनों की मात्रा दूध को कितने दिन तक फटने से रोकना है के आधार पर निर्धारित की जाती है। जरा इनके दुष्प्रभावों के विषय में गूगल में सर्च करके पढ़ लीजिएगा। इसके बाद भी आठ बजे से पहले दूध लाने वाले दूधिए से दूध लीजिएगा।

Image result for मिलावटी दूध
इतना ही नहीं जिसमें जीवन है वह गलेगा और सडे़गा। जिसमें जीव-जीवन नहीं वह नहीं। नमक, यूरिया या किसी भी तरह का रसायन नहीं सड़ता। जो नहीं सड़ता वह निर्जीव है। यह सब भैंस के दूध उत्पादन की कमी और बढ़ती मांग के चलते हो रहा है। आप अगर कुछ हद तक शुद्धता चाहते हैं तो गाय का दूध मांगें। दूधियों को वह सस्ता पड़ता है और उनके खर्चे भी निकल आते हैं। भारत गौ प्रधान देश है। गौ माता भी समृद्ध होगी और पैसा देकर बीमारी मोल लेने से आप भी बचेंगे। लोगों तक शुद्ध दूध, जैविक मसाले, दालें, अन्न, गुड़, तेल, सब्जियां आदि पहुंचाने का एक लघु प्रयास हमारे द्वारा मथुरा में किया जा रहा है। यहां से सीधे किसानों से शुद्ध चीजें प्राप्त कर लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए महाविद्या चैराहे पर गिरिराज मंदिर के पास मधु वृन्दावन के नाम से काउंटर स्थापित किया गया है।

अधिक जानकारी और गाय-भैंस आदि के शुद्ध दूध तथा जैविक वस्तुओं के लिए संपर्क करें- दिलीप कुमार यादव भारत सरकार द्वारा सम्मानित कृषि पत्रकार-9808059700

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*