सेक्स रेशियो का दंश, कुंवारी पूजन को कम पड़ रहीं बेटियां

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मोहल्ले में 10 साल तक की बच्चियों के परिवार से संपर्क कर समय ले रहे व्रते, नवरात्र पर व्रत करने वाले कन्या पूजन कर अनुष्ठान को मानते हैं सफल

यूनिक समय, मथुरा। पुरुष और महिलाओं की संख्या में अंतर का दंश अब झेलना पड़ रहा है। नवरात्र में व्रतधारकों को कन्या पूजन के लिए बेटियां नहीं मिल रही हैं। गांव से लेकर शहर तक में कन्या पूजन के लिए बेटियां कम पड़ गई हैं। जिस टोले-मोहल्ले में 10-12 साल की बेटियां उपलब्ध हैं। वहां से दूसरे मोहल्ले में भी उनकी डिमांड बढ़ गई है। इसके अलावा मंदिरों में भी कन्या पूजन के लिए टोटा पड़ने के हालात हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक मथुरा में 1000 पुरुषों पर मात्र 880 महिलाएं हैं। यानी 120 कम। जाहिर है महिलाओं की इस संख्या का असर आने वाले दिनों में और पड़ेगा।
पहले 21 कन्या पूजते थे, अब होती खानापूर्ति
रामकुमार ने बताया कि नवरात्र व्रत में कन्या पूजन ही अनुष्ठान की सफलता है। पहले मोहल्ले में 11 से 21 की संख्या तक कन्या पूजन होता था। अब यह आंकड़ा घटता जा रहा है। अब तो पांच भी पूरी नहीं हो पाती हैं। सिर्फ कोरम के लिए उपलब्ध बच्चियां ही कन्या पूजन में आ पाती हैं। उन्होंने बताया कि पहले कन्या पूजन का रिवाज मंदिरों में ही होता था। लेकिन अब तो घर-घर में व्रत रखा जा रहा है और कन्या पूजन के बाद ही हवन आदि किया जा रहा है। ऐसे में कई लोगों को पड़ोस के मोहल्लों से भी बच्चियां बुलानी पड़ रही हैं।
छोटी बच्चियों की मांग मंदिरों में भी बढ़ी
सुनीता देवी ने बताया कि कन्या पूजन का हाल यह है कि सगे-संबंधियों का फोन आने लगा है कि उनके यहां जो बच्चियां आएंगी उसे उनके मोहल्ले में भी भेजने के लिए अभिभावकों से संपर्क करें। कई अभिभावक दूसरे मोहल्लों में बच्चियां भेजने से मना भी करते हैं। उन्हें मनाने में घर के बुजुर्ग आगे आते हैं कि वे अपने रिस्क पर बच्चियां ले जाएंगे और ले आएंगे। कुछ जगहों पर बच्चियों को रिझाने के लिए खिलौने, उपहार, कपड़े आदि तक दिए जाते हैं।

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