नीतीश का पलटवार: चिराग पासवान के पीछे BJP की चाल, मिशन में शिद्दत

चिराग पासवान के पीछे BJP की चाल
चिराग पासवान के पीछे BJP की चाल

नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग पासवान अपने मिशन में शिद्दत से लगे हुए हैं – और अब तो बार बार दोहराने लगे हैं कि नीतीश कुमार को तो वो किसी भी हाल में फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे – वो भी तब जबकि बीजेपी (BJP) सार्वजनिक तौर पर चिराग पासवान से दूरी बनाने लगी है.

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बीजेपी के चिराग पासवान से दूरी बनाने के पीछे बाकी जो भी कारण हों, लेकिन सबसे बड़ी वजह तो नीतीश कुमार दबाव ही समझ में आ रहा है – ये नीतीश कुमार का ही दबाव है जो बीजेपी धीरे धीरे चिराग पासवान से दूरी बनाने लगी है. हालांकि, चिराग पासवान के तेवर कम नहीं पड़ रहे हैं.

चिराग के तेवर तेज ही हैं

चिराग पासवान की बातों से तो यही लगता है कि वो भी उद्धव ठाकरे की तरह ही अपने पिता का सपना और उनसे किये गये वादे पूरे करने में जुट गये हैं. महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनने से पहले उद्धव ठाकरे ने कई बार बताया था कि वो शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे से एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर चुके हैं – और काफी उठापटक के बाद उद्धव ठाकरे वादा पूरा करने में कामयाब भी हुए – खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर.

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चिराग पासवान भी अब मीडिया से बातचीत में ऐसी ही कहानी सुनाने लगे हैं. चिराग पासवान के मुताबकि, रामविलास पासवान ने ही उनको अकेले चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया था. चिराग पासवान का कहना है कि ये उनके पिता का सपना है और वो हर हाल में इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे.

एनडीटीवी से बातचीत में चिराग पासवान ने अपने पिता की वो बात भी बतायी. चिराग पासवान के अनुसार, रामविलास पासवान ने उनसे कहा था – जब वो खुद 2005 में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर सकते हैं तो चिराग क्यों नहीं! रामविलास पासवान ने भरोसा दिलाने के लिए कहा था – ‘तुम तो अभी युवा हो!’

रामविलास पासवान ने 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी बनायी थी और 2005 में चुनाव मैदान में उतरे थे. तब लालू यादव की आरजेडी सत्ता में थी और नीतीश कुमार चैलेंज कर रहे थे. 2005 में दो बार चुनाव हुए थे. पहली बार फरवरी में और दूसरी बार अक्टूबर में. फरवरी वाले चुनाव में पासवान की पार्टी को अब तक की सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं – 29 लेकिन बाद में चुनाव हुए तो पार्टी 10 सीटों पर ही सिमट गयी – और उसके बाद तो दहाई का आंकड़ा छूना भी मुश्किल हो गया.

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