ब्रजभ्रमण: अमिय निमाई की अप्रतिम झांकी

वृंदावन धाम की लुप्त लीला स्थलियों को प्रकट करने वाले गौरांग महाप्रभु की यूम तो यहां अनेक मूर्तियां हैं पर इस मूरत का माधुर्य ही अलग है। अमिय निमाई का यह विग्रह बरसों पहले कलकत्ता से वृंदावन आया। मंदिर प्रांगण में चारों ओर भावावेशी महाप्रभु के चित्र भाव विभोर करने वाले हैं। चलो, अमिय निमाई की अप्रतिम झांकी निरख आते हैं।

गोपीनाथ बाजार में स्थित अमिय निमाई मंदिर में गौरांग महाप्रभु विराजमान हैं। मंदिर में प्रायः सन्नाटा पसरा रहता है। चैतन्य महाप्रभु का यह विग्रह पहले कलकत्ता में एक वैष्णव वे घर में सेवित था। वैष्णव की संतान नहीं थी। दिन रात यह सोचता था कि महाप्रभु की सेवा का क्या होगा। एक दिन निमाई स्वप्न में आकर कहा, मैं वृंदावन जाना चाहता हूं। वैष्णव ने अपने गुरू श्रीकृष्ण चैतन्य गोस्वामी को पत्र लिख भेजा। इसी बीच वृद्ध बंगाली का देहांत हो गया। सरकार ने उसके मकान में ताला डाल दिया। गोस्वामी जी ने अधिकारियों को पत्र दिखाकर महाप्रभु को ले जाने का आदेश प्राप्त किया। उन दिनों बाबा रामदेव जी कलकत्ता में अपने शिष्यों के साथ श्रीनाम का प्रचार कर रहे थे। उनके सहयोग से. गोस्वामी जी अमिय निमाई को वृंदावन लाए। उनके लिए रेल की बोगी आरक्षित कराई गई। संकीर्तन सुनते हुए गौरांग महाप्रभु अपने ठाकुर के धाम आए।

कुछ समय राधारमण मंदिर के सामने रासमंडल की तिवारी में सेवित हुए। उसके बाद बाबा रामदास, गौरांग दास जी के शिष्य व अनेक वैष्णवों की सहायता से सन् 1940 में इस मंदिर का निर्माण कराया।

गौरांग के गोपाल गुरु

गोपीनाथ-वंशीवट मार्ग गौरांग के गोपाल गुरु की भजन स्थली तक ले जाता है। यहां गोपाल गुरु के सेव्य राधाकांत ठाकुर की मनोरम छटा है। संग में राधा रानी और ललिता सखी विराजमान हैं। निचले सिंहासन पर लड्डू गोपाल के प्यारे विग्रह हैं। वक्रेश्वर पंडित के शिष्य गोपाल गुरु श्री राधाकांत ठाकुर की प्रेमपूर्वक सेवा करते थे। उन्होंने मंदिर बनवाकर ठाकुर जी के दोनों तरफ राधरानी व ललिता जी केविग्र प्रतिष्ठित किये। गर्भगृह के सामने गोपाल गुरु की मूर्ति है। मुरारी पंडित के पुत्र मकरध्वज को चैतन्य महाप्रभु गोपाल गुरु पदवी प्रदान की थी। एक दिन महाप्रभु नित्य कर्म के समय अपनी जिह्वा को दांतों से दबाए बैठे थे। महाप्रभु के निवृत्त होने पर मकरध्वज ने पूछा कि उस समय आप ऐसा क्यों कर रहे थे। गौरांग ने कहा कि नित्य कर्म के समय नित्य कर्म के समय बोलना या मुख खोलना निषिद्ध है। मेरी जिह्वा को नामोच्चारण का कुछ ऐसा अभ्यास पड़ गया है कि उस समय भी यह रुकती नहीं। मकरध्वज ने कहा, प्रभु, आप तो स्वतंत्र ईश्वर हैं लेकिन यदि ऐसे समय किसी साधारण मनुष्य के प्राण निकल जाए तो वह नामोच्चारण से वंचित रहकर अधमगति को प्राप्त हो सकता है। महाप्रभु बोले, तूने बड़ी मार्मिक बात की है। आज से तुम्हें हम गोपाल गुरु नाम से पुकारा करेंगे। तब से मकरध्वज गोपाल गुरू कहलाए।

 

 

 

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