ब्रजभ्रमण: एकमात्र ऐसे विग्रह जो राधारानी के हृदय से प्रकट हुये

यशोदा के लाल की मोहिनी मूरत तौ तुमने सब मंदिरन मैं देखी होगी पर कहुं देखौ है लाली कौ लौहरों सौ लाल । तौ हमाए संग राधा श्याम सुंदर मंदिर मै आऔ। इतै किशोरी के हृदय कमल ते प्रकटे कान्हा की श्यामल छवि है। सांची मै जे लाडिली के लाल हैं। इन्है निरख-निरख नयन हरषामैं।

सेवाकुंज समाजबाड़ी स्थित प्राचीन राधा श्याम सुंदर मंदिर का विश्व में अद्वितीय स्थान है। संपूर्ण सृष्टि में लालाजी एकमात्र ऐसे विग्रह है।जो जनश्रुति के अनुसार राधा रानी के हृदय से प्रकट हुए हैं। श्यामानंद प्रभुपाद द्वारा सेवित लाला के दाईं ओर भरतपुर रियासत के तत्कालीन महाराजा के कोष भंडार से स्वयं प्रकट श्रीजी विराजमान हैं। मुख्य सिंहासन पर श्री राधा श्याम सुंदर के विग्रह शोभायमान हैं। नीचे दाईं ओर राधा कुंज बिहारी के दर्शन हैं। यह विग्रह ब्रजानंद देव गोस्वामी को नंदगांव से प्राप्त हुआ था।

मंदिर के प्रचार प्रसार से जुड़ी ललिता ने बताया कि “राधा रानी ने श्यामानंद प्रभु को श्याम जी का विग्रह प्रदान किया था किशोरी जी का विग्रह भरतपुर से यहां आया। प्रेम से राधा श्याम सुंदर को लाला-लाली कहते हैं। मंदिर में सात आरती व पांच भोग की सेवा है। प्रतिदिन शाम को नरोत्तम ठाकुर, श्यामानंद प्रभु आदि गौड़ीय भक्तों की पदावली गाई जाती है।”

श्यामानंद

प्रेम विलास ग्रंथ में श्यामानंद प्रभु को अद्वैताचार्य जी का भावावेशावतार कहा गया है । पश्चिमी बंगाल के धारेंदा गांव में जन्मे श्यामानंद को बचपन में घरवाले दुखी नाम से पुकारते थे। सन् 1554 ईसवी की फाल्गुन पूर्णिमा को श्री हृदय चैतन्य अधिकारी ठाकुर जी ने इन्हें कृष्ण मंत्र की दीक्षा देकर इनका नाम कृष्णदास रखा। सन् 1566 में वह सदा के लिए बस गए। उन दिनों श्रीधाम वृंदावन में जीव गोस्वामी की बड़ी मान्यता थी। श्री कृष्णदास की साधना, भक्ति से होकर जीव गोस्वामी ने इन्हें राधा कृष्ण की नित्य रासस्थली निधुवन के मार्जन (बुहारी) का अधिकार दिया प्रतिदिन सोहनी और खुरपे से पुण्य भूमि की सफाई करने लगे।

यहां मिला राधा रानी का नूपुर

 

मंदिर से कुछ कदम की दूरी पर विपरीत दिशा में नूपुर प्रप्ति स्थल और श्यामानंद की समाधि है । पहले राधा श्याम मंदिर की ओर वाला क्षेत्र सेवाकुंज व नूपुर प्राप्ति स्थल निधिवन के अंतर्गत स्थल के अंतर्गत आते थे । एक बार श्री कृष्णदास को सोहिनी सेवा करते हुए दुर्लभ रत्न जटित राधा रानी का स्वर्ण नूपुर मिला । रस रासेश्वरी ने ललिता को नूपुर लाने के लिये भेजा । वृद्धा के वेश में नूपुर लेने आयी ललिता सखी को कृष्णदास ने नूपुर नहीं दिया । ललिता जी व नूपुर का रहस्य जानने के बाद कृष्णदास राधा रानी के दर्शन और उन्हें स्वयं नूपुर पहनाने की प्रार्थना करने लगे । ललिता जी ने कृष्णदास को राधा मंत्र प्रदान किया । उस महामंत्र को जपते हुये राधाकुड में स्नान करते ही कृष्णदास अप्राकृत मंजरी स्वरूप बन गये ।उन्होंने राधारानी के मंदिर में प्रवेश किया । ललिता जी ने जैसे ही उस नूपुर को कृष्णदास के मस्तक पर अंकित तिलक के मध्य अपने हाथ से एक उज्ज्वल बिंदु लगाया ।इससे तिलक का यह विशिष्ट स्वरूप श्याम मोहन के नाम से प्रसिद्ध हो गया । ललिता सखी ने कृष्णदास का नया नाम श्यामनंनद रखा । राधा रानी ने जब यह  जब श्यानंद को मृत्यपलोक जाने को कहा तो वे दुखी हो गया । तब श्यामा जू ने उन्हें अपने हृदय से अप्राकृत , दिव्य श्यामसुंदर का विग्रग प्रकट कर प्रदान किया । सन् 1578 में बसंत पंचमी के दिन श्यामसुंदर का प्राकटय हुआ था । सन् 1850 में भरतपुर रियासत के तत्कालीन महाराज ने अपने खजाने से स्वयं प्रकटित राधा रानी के विग्रह का बसंत पंचमी के शुभ मुहुर्त में लाला जी संग विवाह कर उनके लिये विशाल मंदिर का निर्माण कराया ।

 

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*