जंग के 23 साल बाद आज कैसी दिखती है कारगिल, जिन्हें देखने भर से मिलता है सुकून

भारत की तीन तरफ की सीमाएं अक्सर दो पड़ोसियों की वजह से खतरे में रहती हैं। भारत सरकार और भारतीय सेना को पश्चिमी क्षेत्र, पूर्वोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्र और उत्तर क्षेत्र पर विशेष निगाह रखनी पड़ती है। चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी लगातार भारत पर युद्ध थोपता रहा है, मगर भारत के जाबांज सैनिकों ने हर बार उन्हें मुंह तोड़ जवाब दिया है। करीब 23 साल पहले शुरू हुई कारगिल की लड़ाई भी ऐसी ही जंग थी, जो पाकिस्तान सेना की तरफ से शुरू की गई थी, मगर भारतीयों ने उन्हें अच्छा सबक सिखाते हुए न सिर्फ खदेड़ दिया बल्कि, ऐसी स्थिति बना दी कि पाकिस्तान अपनी नापाक हरकत तब से अब तक नहीं दोहराया पाया। आइए तस्वीरों के जरिए जानते हैं कारगिल विजय दिवस से जुड़े रोचक तथ्य।

कारगिल युद्ध की शुरुआत 8 मई 1999 को भारत और पाकिस्तान के बीच हुई। इस दिन ही पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था।


दावा किया जाता है कि कारगिल से करीब 60 किलोमीटर दूर गाकौन गांव के रहने वाले ताशी नामग्याल अपने याक की खोज करते हुए कारगिल की चोटी पर पहुंच गए और यहीं उन्होंने संदिग्ध गतिविधियां देखी थीं।


इसके बाद ताशी नामग्याल भागते हुए भारतीय सेना के सबसे नजदीकी कैंप पहुंचे और संदिग्ध गतिविधियों की सूचना दी। इसके बाद भारतीय सेना के अधिकारियों ने जगह का दौरा किया और पाकिस्तानी सेना के आने की पुष्टि की।


बताया जाता है कि पाकिस्तान कारगिल में युद्ध के लिए तैयारी करीब एक साल पहले यानी 1998 से ही कर रहा था। उसने वहां आने-जाने के लिए रास्ते बना लिए थे और कुछ बंकरों का निर्माण भी कर लिया था।


8 मई 1999 को शुरू हुई कारगिल जंग 14 जुलाई तक चलती रही। इस जंग में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के कई सैनिकों को मौत के घाट उतारा, जबकि भारतीय सैनिक भी इस युद्ध में शहीद हुए थे।


यही नहीं, 14 जुलाई 1999 को भारत और पाकिस्तान के सैनिकों ने युद्ध की कार्रवाई रोक दी थी। इसके बाद पाकिस्तान ने हार मानते हुए 26 जुलाई को समझौता कर लिया था। इसलिए हर साल 26 जुलाई कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।


दरअसल, कारगिल की जंग शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले ही इस सेक्टर में जनरल परवेज मुशर्रफ ने हेलिकॉप्टर के जरिए नियंत्रण रेखा पार की थी और पाकिस्तानी सेना व आतंकियों द्वारा की जा रही तैयारी का जायजा लिया था। दावा यह भी किया जाता है कि हेलिकॉप्टर से नियंत्रण सीमा के करीब 11 किलोमीटर अंदर भारतीय क्षेत्र में आकर मुशर्रफ ने एक पूरी रात वहां मौके पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों के साथ बिताई थी। इस युद्ध से पहले परवेज मुशर्रफ के साथ पाकिस्तान के 80 ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद आलम भी थे। मुशर्रफ और मसूद ने जिकारिया मुस्तकार जगह पर रात गुजारी थी। इस दौरान जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सैनिकों और आंतकियों को युद्ध से जुड़ी प्लानिंग बताई और उन्हें कुछ जरूरी टिप्स भी दिए। हालांकि, यह बात अलग है कि मुशर्रफ की कोई टिप्स उनके गुर्गों के काम नहीं आई और वे हारकर लौट गए।

 

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