कैसे अब स्मार्टफोन कैमरा ही पहचान लेगा कोरोना वायरस को

नई दिल्ली।कोरोना वायरस के टेस्ट पर बहुत सारे शोधों के बाद फिलहाल पीसीआर टेस्ट ही मानक टेस्ट के तौर पर सामने आया है. स्मार्टफोन से ही कोरोना वायरस की मौजूदगी की पहचान करने पर बहुत से अध्ययन हुए हैं अब शोधकर्ताओं ने एक ऐसा तरीका विकसित करने में सफलता पाई है जिससे एक नेजल स्वैब  में सार्सकोव-2 की मौजूदगी का पता ऐसे उपकरण से लग सकता है जो सामान्य मोबाइल फोनसे जुड़ा हो

पहले इस बीमारी के लिए हो रहा था यह शोध
दो साल पहले सैनफ्रांसिसको की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया और ग्लैडस्टोन इंस्टीट्यूट की वायरलॉजिस्ट मेलैनी ओट और डेनियल फ्लेचर के साथ नोबेल पुरस्कार विजेता जेनिफर डोउंडा ने घर पर ही एचआईवी का टेस्ट करने की विधि विकसित करने पर काम शुरू किया था. अब उन्होंने अपना शोध कोविड-19 के वायरस के टेस्ट पर केंद्रित कर लिया है. उन्होंने बड़े स्तर पर उपयोग होने वाली उपभोगता इलेक्ट्रॉनिक्स की मदद से जांचने का तरीका निकाल लिया है.

PCR तकनीक से अलग
सेल जर्नल में प्रकाशित यह शोध प्रचलित पीसीआर तकनीक से थोड़ा अलग है. यह जांच प्रक्रिया  तकनीक का उपयोग करती है. इसमें नमूनों में ऐसे RNA की पहचान की जाती है जिसमें Cas13 एंजाइम होता है. इससे में आरएनए को वापस डीएनमें की में बदलने (Reverse Transcription) और फिर विस्तार करने (amplification) की जरूरत नहीं होती है. यह पूरी प्रक्रिया वर्तमान में पीसीआर तकनीक में उपयोग में लाई जाती है जो अभी मानक जांच प्रक्रिया है.

एक चमक के जरिए
जब Cas13 वायरस के जरिए पास के किसी भी आरएनए सीक्वेंस से जुड़ने की कोशिश करता है. इसीलिए शोधकर्ताओं ने आरएनए आधारित जांच के तरीके निकाले जिससे की Cas13 से प्रतिक्रिया कर एक चमक पैदा करे जो किसी कैमरे से पकड़ी जा सके. शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी जांच केवल 30 मिनट में ही अपनी नतीजे दे देती है.

एक कोशिश पर काम जारी
इस अध्ययन में नेजल स्वैब सार्स कोव -2 के आरएनसे जोड़े गए. शोधकर्ता अब इस समाधान पर काम कर रहे हैं कि जिसमें वायरस आरएनए से एक ही बार में निकल आए और उसके लिए शुद्धिकरण की जरूरत न पड़े. चूंकि इस मामले में एम्प्लिफिकेशन की जरबरत नहीं होती हैं, इस जांच में नमूने में वायरस की मात्रा निर्धारित की जा सकती है.

बहुत संभावनाएं हैं इसमें
ओट का कहना है, “जांच का मात्रा निर्धारित करने वाला पक्ष रोचक है. पीसीआर मानक टेस्ट है, लेकिन इसमें बहुत सारे काम करने होते हैं. पैथोजन और जीवविज्ञान में सामान्य तौर पर आरएनए की सटीक मात्रा निर्धारण की बहुत सारी संभावनाएं हैं.

फोन की भूमिका
फ्लेचर की लैब में इससे पहले के शोध से फोन आधारित उपकरण बनाए गए थे जो खून और अन्य नमूनों में परजीवी को देखकर उनकी पहचान कर सकते थे. फोन को फ्लोरेसेंस डिटेक्टर के ऊपर रखा जाता है जिसमें एक लेजर होती है जिससे चकम पैदा होती है और वह प्लोरोसेंस को उत्तेजित करता है. इसके साथ ही एक लेंस लौटने वाले प्रकाश को देखने के लिए अलग से होता है. ओट का कहना है कि फोन कैमरा प्लेट रीडर से दस गुना बेहतर है.यह एक बेहतर निदान पकड़ने वाला हो सकता है.

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