भारत ताकत के नए युग का प्रारंभ: देश का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम—एस लॉन्च

श्रीहरिकोट। भारत की सैन्य ताकत में एक और ईजाफा हुआ है। भारत में पहली बार प्राइवेट स्पेस कंपनी का रॉकेट ‘विक्रम एस- शुक्रवार को सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया। हैदराबाद के स्पेस स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस के इस प्राइवेट रॉकेट को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा लॉन्च पैड से छोड़ा गया। इसके साथ ही भारत इस मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शुमार हो गया है। इस मिशन को ‘प्रारंभ’ नाम दिया गया। यह देश की स्पेस इंडस्ट्री में प्राइवेट सेक्टर की एंट्री को एक नई ऊंचाई तक ले जाएगा।

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प्राइवेट रॉकेट विक्रम-S आवाज की स्पीड से पांच गुना ज्यादा फोर्स से अंतरिक्ष की ओर गया। करीब 81.5 किमी की ऊंचाई पर तीन पेलोड सफलता से इजेक्ट किए। इस सफलता के साथ ही इसे बनाने वाले 4 साल पुराने स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस को एक बड़ी उपलब्धि मिली है। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2018 में हुई थी। ISRO के साइंटिस्ट पवन कुमार चंदना और नागा भरत डका ने नौकरी छोड़ने के बाद अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ी अपनी कंपनी खोलने का प्लान किया था। तब भारत में कोई प्राइवेट प्लेयर नहीं था, ऐसे में IIT के इन दोनों पूर्व छात्रों के मिशन पर भी संशय के बादल थे।

चंदना बताते हैं कि उन्हें रॉकेटरी में दिलचस्पी IIT खड़गपुर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान लगी थी। यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद चंदना ने ISRO ज्वॉइन किया था। चंदना ने ISRO में 6 साल काम किया। उनकी तैनाती केरल के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में रही। यहां वे GSLV-Mk-3 प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे। ISRO में ही चंदना की मुलाकात IITian नागा भरत डका से हुई थी। दोनों की ट्यूनिंग अच्छी रही तो, नौकरी छोड़कर 2018 में स्काईरूट एयरोस्पेस की शुरुआत की। इस लॉन्चिंग की सफलता के साथ ही स्काईरूट एयरोस्पेस भारत की पहली प्राइवेट सेक्ट की कंपनी बन गई है। बता दें कि 2020 में मोदी सरकार ने स्पेस इंडस्ट्री को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोले जाने का ऐलान किया था।

विक्रम-एस रॉकेट का नाम भारत के मशहूर वैज्ञानिक और इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। मिशन का नाम ‘प्रारंभ’ यानी शुरुआत है। इस लॉन्च के लिए स्काईरूट और इसरो के बीच एक समझौता हुआ किया गया था। स्काईरूट के सीईओ चांदना का कहना है कि इसरो और की मदद के चलते ही हम इतने कम समय में विक्रम-एस रॉकेट मिशन को तैयार कर सके हैं।

 

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