बीजेपी में जयप्रकाश नड्डा को इसलिए चुना गया अध्यक्ष, ये सारी बातें बनाती हैं उन्हें ख़ास

नई दिल्ली. पटना में जन्मे और छात्र राजनीति में बिहार की मिट्टी से सबक लेने वाले जगत प्रकाश नड्डा बीजेपी के शीर्ष तक पहुंचेंगे इसका कोई अंदाजा तो नही लगा सकता था लेकिन इससे एक बात तो और पुख्ता हो गयी कि एक सामान्य कार्यकर्ता भी अपनी लगन और मेहनत से पार्टी का अध्यक्ष बन सकता है. एक से बढ़कर एक चुनौतियां हैं नड्डा साहेब के सामने. एक तो पीएम मोदी और अमित शाह के साथ कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ना है और साथ ही अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे की विरासत को ऊंचाइयों तक भी ले जाना है.

जाहिर है जब वो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष पद पर पहुंचे हैं तो जेपी नड्डा की शख्सियत और राजनीति में दम खम रहा है होगा. सही है. धीरे धीरे छात्र राजनीति, विद्यार्थी परिषद, हिमाचल प्रदेश में विधायकी और मंत्री पद और फिर अध्यक्ष बनने के बाद नितिन गडकरी जब उन्हें दिल्ली कर आये तो फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नही देखा. आखिर नड्डा जी में ऐसी क्या खूबियां हैं ? हम सिलसिलेवार इस से परत हटाने की कोशिश करते हैं.

सरल स्वभाव
मृदु भाषी जे पी नड्डा अपने सरल स्वभाव के कारण कार्यकर्ताओं और नेताओं से लगातार संवाद बना कर रखते हैं. राजनीति जीवन की शुरुआत से ही संवाद बनाये रखने की कला ही उन्हें तमाम मसले सुलझाने में मदद देती आयी है. चाहे बीजेपी (BJP) का कोई भी कार्यकर्ता हो या फिर पदाधिकारी जो भी उनसे मिलता है उनसे गरमजोशी से मिलना और उनके नाम याद रखना उनकी खासियत है. तभी तो कोई भी उनसे मिलने जाए उससे सम्मान देना और उन्हें नाम से बुला कर उन्हें अभिभूत कर जाते हैं.

संवाद बनाये रखने की कला में माहिर
मोदी सरकार में बतौर स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की संवाद की इसी कला ने आयुष्मान भारत जैसी महत्वाकांक्षी योजना को लागू करने में सफलता दिलाई थी. जब विपक्ष शाषित राज्य और हॉस्पिटल्स इस पर सवाल उठा रहे थे तब नड्डा लगे रहे सबसे बात कर उन्हें आश्वस्त करने में. योजना लागू भी हुई और लाखों की संख्या में गरीब इलाज का फायदा उठा रहे हैं.

मृदुभाषी यानी मीठा बोलने की उनकी कला 2019 के लोक सभा चुनावों यूपी के विधान सभा चुनावों में काम आयी. जब सहयोगी दल और जिनके टिकट काटने थे सब तलवार ताने खड़े थे. लेकिन बवाल नही हुआ न कोई खबर बाहर आई. दिन रात प्रभारी नड्डा लगे रहे. किसी को मनाया. किसी को बिठाया. और नतीजा लोगों के सामने था.उम्मीद है कि संवाद बनाये रखने की ये कला आने वाले दिनों में बीजेपी (BJP) को आगे ले जाएगी.

फिजूल की बयानबाजी नही करते
नड्डा की शख्शियत का ये एक ऐसा पहलु है जो उन्हें आला नेताओं का भी प्रिय बनाता है. चाहे वो किसी के साथ आमने सामने बात हो या फिर कोई गंभीर बैठक, नड्डा जी का रिकॉर्ड रहा है कि वो कोई भी बात न बाहर करते हैं और न ही इधर की बात उधर करते हैं. जो कमिटमेंट पार्टी (Party) के लिए है वो किसी से कम नही है.

6 महीने हो गए कार्यकारी अध्यक्ष बने लेकिन उन्होंने किसी भी प्रेस को इंटरव्यू (Interview) नहीं दिया. न ही कोई बयान दिया जिससे विवाद पनपे. सिर्फ पार्टी के प्लेटफार्म पर बोलते रहे. यही बात तो पीएम मोदी बार बार अपने बयानवीरों को कहते है कि फिजूल बोलने से बचो. यही उदाहरण तो पार्टी अध्यक्ष के तौर जेपी नड्डा अपने कार्यकर्ताओं के सामने पेश करेंगे. फिजूल की बयानबाजी से अपने नेताओं को रोकता उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगा.

व्यर्थ का तनाव अपने सर नहीं लेते
चाहे कोई भी संगठन या सरकार से संबंधित कोई परेशानी सामने आ जाये, किसी भी बात को वो दिल पर नही लेते हैं. सिर्फ और सिर्फ उस समस्या का हल निकलने की कोशिश में लग जाते हैं. इधर
की बात उधर न करना उनका मूल स्वभाव है तो उसके साथ साथ चुगलियों से कन्नी काटने में भी वो माहिर हैं. इस लिए किसी के बहकावे में आये बिना पूरी पार्टी के साथ आगे बढ़ने की कला में सक्षम हैं.

नियमों और कायदों पर चलना
पार्टी लाइन से नही भटकना, हर वक़्त नियमो का पालन करना उनकी शख्शियत के अटूट हिस्से हैं. इस लिए जिस रोल में रहे उसके बाहर के मुद्दों पर कभी बात नही की. उनके इसी कमिटमेंट के कारण गड़करीजी, राजनाथजी, अमित शाह सरीखे अध्यक्षों की टीम के अभिन्न हिस्से बने रहे और पीएम मोदी (PM Modi) की कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री. उनकी बेदाग छवि का ही असर था कि पीएम मोदी ने उन पर भरोसा करते हुए उन्हें इतना बड़ा पद सौंपा.

लड़ाई लंबी है. चुनावी हारों के बाद सवाल उठने लगे है. लेकिन नड्डा बेफिक्र हैं. वो जानते हैं कि उनके स्वभाव से अपनो के साथ सख्त विरोधियों का दिल भी जीत लेंगें.

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