जानें क्यों हर पूजा में रखा जाता है कलश और क्या है तरीका

kalash
हिंदू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ में कलश की स्थापना मुख्य रूप से की जाती है। कलश को लेकर ऐसी मान्यता है कि ये सभी तीर्थों का प्रतीक होता है। कलश में सभी देवी-देवताओं की मातृ शक्तियां होती हैं। इसके बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं हो पाती है। इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं कलश से जुड़ी रोचक बातें।

कलश से प्राप्त हुई थीं मां सीता

त्रेता युग में राजा जनक जब खेत में हल चला रहे थे। इस दौरान भूमि के अंदर गड़े हुए कलश से हल टकरा गया। राजा ने कलश निकाला तो उसमें से कन्या प्राप्त हुई थी। इसी कन्या का नाम सीता रखा गया। इसके अलावा एक और कथा प्रचलित यह है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश प्राप्त हुआ था। मां लक्ष्मी के सभी तस्वीरों में कलश मुख्य रूप से दर्शाया जाता है। इन्हीं वजहों से पूजा में कलश की स्थापना करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है।
जब पूजा में कलश स्थापित किया जाता है तो ऐसा माना जाता है कि कलश में त्रिदेव और शक्तियां विराजमान हैं। साथ ही कलश में सभी तीर्थों का और सभी पवित्र नदियों का ध्यान भी किया जाता है। सभी शुभ कामों में कलश स्थापित करने का विधान है।
पूजा में सोने, चांदी, मिट्टी और तांबे का कलश रख सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि पूजा के दौरान लोहे का कलश नहीं रखना चाहिए। कलश को लाल कपड़े, नारियल, आम के पत्तों और कुश की मदद से तैयार किया जाता है। पूजा करते समय कलश जहां स्थापित करना हो, वहां हल्दी से अष्टदल बनाया जाता है। उसके ऊपर चावल रखे जाते हैं। चावल के ऊपर कलश रखाजाता है।
कलश में जल, दूर्वा, चंदन, पंचामृत, सुपारी, हल्दी चावल, सिक्का, लौंग, इलायची, पान, सुपारी आदि शुभ चीजें डाली जाती हैं। इसके बाद कलश के ऊपर स्वास्तिक बनाया जाता है। कलश के ऊपर आम के पत्तों के साथ नारियल रखा जाता है। इसके बाद धूप-दीप जलाकर कलश का पूजन किया जाता है।

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