मथुरा: श्रीकृष्ण जन्मस्थान में श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने बनवाए थे मंदिर व कुएं

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मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर और ईदगाह प्रकरण इन दिनों चर्चा में हैं। इसको लेकर दोनों पक्षों की तरफ से नित नए दावे किए जाते हैं। दावों की पुष्टि के लिए साक्ष्य भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ द्वारा तैयार कराए मंदिर में विशेष महत्व रखने वाले कुएं आज भी मौजूद हैं। औरंगजेब व अन्य मुस्लिम आक्रांताओं ने श्रीकृष्ण के मंदिरों को बार-बार तोड़ा, लेकिन वह कुओं को नष्ट नहीं कर सके। यह तीन कुएं आज भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में मौजूद हैं और इतिहास का आइना बने हैं। इसी परिसर पर मौजूद ईदगाह को हटाने के लिए विभिन्न पक्षकारों ने अदालत में दावे किए हैं और इस स्थान पर मंदिर के होने के साक्ष्य जुटा रहे हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने जन्मस्थान पर मंदिर व कुओं का भी निर्माण कराया। हूण, कुषाण हमलों में मंदिर ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल में सम्राट विक्रमादित्य ने सनातन हिंदुओं के लिए वृहद मंदिर बनवाया। जिसे महमूद गजनबी ने वर्ष 1017 ईसवी में क्षतिग्रस्त किया। जाजन उर्फ जज्ज सिंह द्वारा वर्ष 1150 ईस्वी में बनवाए मंदिर को मुस्लिम आक्रांता सिकंदर लोधी ने 16वीं सदी में क्षतिग्रस्त कर दिया। जिसे ओरछा के बुंदेला राजा वीर सिंह जूदेव ने 1618 में बनवाया। इसे औरंगजेब ने 1669 में क्षतिग्रस्त कर दिया। मंदिरों की इमारत बार-बार नष्ट होती रही, लेकिन जो कुएं बने थे, वह जस के तस रहे और आज भी मंदिर परिसर में मौजूद हैं।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में एक कुआं गर्भगृह और ईदगाह के एक दम नजदीक उत्तर दिशा में है। वर्तमान में इस पर पुलिस पीएसी तैनात रहती है। आम श्रद्धालु इसे नहीं देख सकते हैं। दूसरा कुआं गिरिराजजी के पास गर्भगृह पश्चिम की तरफ है, जहां पर दर्शनार्थी दर्शन करते हैं। जबकि तीसरा कुआं गर्भगृह के दक्षिण दिशा में है, इसे जन्मस्थान प्रशासन ने चहारदीवारी लगाकर ढक दिया है।

ओरछा राजा वीर सिंह बुंदेला द्वारा बनवाए गए मंदिर में एक कुएं की जानकारी मिलती है, जिसमें बुर्ज के नीचे कुआं बना था और कुएं से पानी की सतह से लगभग 60 फुट ऊंचा उठाकर फव्वारा चलाया जाता था। इसका जिक्र 1650 ईसवी में फांस के यात्री टैवर्नियर के अलावा अन्य लेखकों ने मंदिर के बारे में लिखी गई बातों में भी किया है।

भगवान श्रीकृष्ण ने मंदिर परिसर में मंदिर के प्रवेश से पूर्व स्नान आदि करने के उद्देश्य से एक कुंड का निर्माण भी कराया था। जिसे भी आक्रांता नष्ट नहीं कर सके। कालांतर में इसे बज्रनाथ के प्रपौत्र होने के नाते पौत्र कुंड कहा जाने लगा और बाद में शब्द अपभ्रंश होते हुए अब इसे पोतरा कुंड कहा जाता है।

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श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि  कुएं और पोतरा कुंड को महाराज वज्रनाभ द्वारा ही बनवाया गया था। चूंकि मंदिर में कुओं का विशेष महत्व होता है। इसलिए यह कुएं मंदिर में बनवाए गए। इसके इतिहास में अनेक साक्ष्य मौजूद हैं। दोनों की गहराई लगभग एक समान लगभग 60-70 फुट है। चूंकि उस समय यमुना यहीं बहती थीं, इसलिए जलस्तर भी कम ही रहा होगा। इतना ही पोतरा कुंड में जल रहता था। पोतरा कुंड का असल नाम प्रपौत्र कुंड था जो बाद में पौत्रा कुंड के नाम से जाना जाने लगा।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान प्रकरण के पक्षकार मनीष यादव का कहना है कि हमने अपने दावे में इतिहास की जानकारी दी है और बताया है कि किस तरह से आक्रांताओं ने मंदिरों को बार-बार तोड़ा है। साथ ही इस स्थान पर जो अवशेष कुएं आदि रह गए हैं उनको अदालत में साक्ष्य के तौर पर पेश करेंगे।

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