राजनीति में उलटफेर: महागठबंधन से बाहर हो सकता है राजद, इशारों में हो रही बात

पटना. बिहार की सियासत में आने वाले दिनों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है. जी हां, महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा है कि 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले लोगों को महागठबंधन का बदला स्वरूप देखने को मिलेगा. गठबंधन की सहयोगी पार्टी कांग्रेस की ओर से भी कुछ ऐसा ही इशारा दिया जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लालू प्रसाद के बगैर महागठबंधन की गांठ खुलने लगी है? क्योंकि 9 दिसंबर को पटना में हुई राजद (RJD) की कार्यसमिति में तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता बताते हुए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताया गया. लेकिन कांग्रेस और रालोसपा के साथ हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) को यह बात हजम नहीं हुई. तीनों दलों के नेताओं ने कहा कि यह चुनाव के बाद तय होगा कि महागठबंधन की ओर से सीएम का उम्मीदवार कौन होगा. यानी फिलहाल महागठबंधन के घटक दलों को ही मुख्यमंत्री के तौर पर तेजस्वी यादव को प्रोजेक्ट किया जाना रास नहीं आया.

बीमार पड़ चुके हैं महागठबंधन के घटक दल

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तेजी से बदलते सियासी घटनाक्रम के बीच महागठबंधन खेमे से आई खबर पर सत्तारूढ़ पार्टियों ने हमला शुरू कर दिया है. बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन का दावा है कि स्वार्थ के लिए बना महागठबंधन अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाला. जदयू नेता निखिल मंडल का कहना है कि उपचुनाव के दौरान राजद ने अपने सहयोगियों के साथ जैसा व्यवहार किया, उससे आहत बाकी दलों ने अब राजद को महागठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाने का इंतजाम कर लिया है. इधर, भाजपा का भी यही दावा है. प्रदेश के सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह ने कहा कि जदयू के निकलने के बाद महागठबंधन सिर्फ स्वार्थी दलों का मंच बनकर रह गया है. 2019 में मिली हार के बाद इसमें फूट पड़ गई, जो हालिया उपचुनावों में भी देखने को मिली. लगातार चुनावी हार से महागठबंधन के घटक दल बीमार पड़ चुके हैं. जल्द ही बिखर कर वे इलाज के लिए नए हकीम की तलाश में जुटेंगे.

इशारों में कर रहे बात

आपको याद दिला दें कि हाल ही में रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा ने केंद्रीय विद्यालय की मांग को लेकर अनशन किया था. तब उन्हें ‘भाव’ न देने वाले तेजस्वी यादव भी कुशवाहा से मिलने पहुंचे थे. बाद में न्यूज 18 से बातचीत में कुशवाहा ने कहा कि महागठबंधन का बदला स्वरूप जल्द ही लोगों को दिखेगा, जो 2020 के चुनाव में एनडीए को पटखनी देगा. नया स्वरूप क्या ‘माईनस राजद’ होगा, इस सवाल पर कुशवाहा ने कहा कि फिलहाल राजद के साथ सभी दलों की मंशा गैर-एनडीए कुनबे को बढ़ाना है. लेकिन आने वाले समय में बदला रूप नजर आएगा. इधर, कांग्रेस पार्टी की तरफ से ऐसी ही बात कही गई है. AICC सदस्य और विधान परिषद के नेता प्रेमचंद मिश्रा ने महागठबंधन के ‘माईनस राजद’ वाले स्वरूप से जुड़े सवाल को पहले नकार दिया, लेकिन फिर कहा, ‘आलाकमान की ओर से अगर ऐसा आदेश आया, तो कौन रोक सकता है.’ यानी न तो रालोसपा और न ही कांग्रेस अभी खुलकर इस मामले पर बोलना चाह रहे हैं.

राजद ने कहा- रीढ़ नहीं रहेगा तो तो शरीर कैसे बचेगा

महागठबंधन का स्वरूप जैसा भी दिखे, लेकिन सहयोगी दलों का रुख और एनडीए के हमलों से राजद परेशान जरूर है. राजद ने इन प्रश्नों पर कहा है कि 2020 में जदयू-भाजपा रहेगी या नहीं, इसकी गारंटी नहीं है. इसलिए दोनों पार्टियां ‘माईनस राजद’ वाले महागठबंधन की हवा उड़ा रही हैं. राजद का कहना है कि वह महागठबंधन की रीढ़ है, अगर रीढ़ ही नहीं रहेगा तो शरीर कैसे बचेगा. दूसरी ओर, रालोसपा बचाओ अभियान चला रहे सत्यानंद दांगी का कहना है कि 2020 में उपेंद्र कुशवाहा, महागठबंधन से बाहर हो जाएंगे. उनका कहना है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव ने भी रालोसपा के बजाये राजद से कुशवाहा जाति के लोगों को चुनाव लड़ाने की बात कही है. ऐसे में सीएम पद का सपना देखने वाले उपेंद्र कुशवाहा, पहले एनडीए से बाहर आए, अब महागठबंधन से जाने का रास्ता तलाश रहे हैं.

अंदरखाने कुछ तो पक रहा है

बिहार के दोनों गठबंधनों के नेताओं की बात सुनने के बाद इतना तो तय है कि महागठबंधन के अंदरखाने कुछ खिचड़ी पक तो रही है, लेकिन वक्त से पहले न तो रालोसपा और न ही कांग्रेस अपना पत्ता खोलने के मूड में हैं. ऑफ द रिकॉर्ड उपेंद्र कुशवाहा और कांग्रेस नेता यह मानते हैं कि 15 साल बाद भी बिहार के लोग राजद के शासनकाल को नहीं भूल पाए हैं. दूसरी तरफ लालू यादव के न रहने से ‘एमवाई’ समीकरण भी टूट चुका है. ऐसे में जब न्यूज 18 ने कुशवाहा से महागठबंधन के नए स्वरूप में उनको मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने को लेकर सवाल किया, तो वे सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए. बहरहाल, आने वाले चुनाव को लेकर सियासी जानकार यह कयास लगाने लगे हैं कि संभवतः एनडीए बनाम महागठबंधन की लड़ाई में नीतीश कुमार के सामने उपेंद्र कुशवाहा ‘कप्तानी’ संभाल सकते हैं, लेकिन यह सब अभी समय के गर्भ में है.

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